Thursday 5 August 2021

विपक्ष अपने ही जाल में फंस रहा : बिना बहस निर्विरोध पारित हो रहे विधेयक



गत दिवस सदन के बाहर पूर्व केन्द्रीय मंत्री और अकाली सांसद हरसिमरत कौर बादल की कांग्रेस सांसद  रवनीत सिंह बिट्टू से तीखी बहस हो गई | हुआ यूँ कि अकाली सांसद सदन के बाहर कृषि कानूनों का विरोध कर रही थीं  |  इसी बीच श्री बिट्टू ने ये तंज कस दिया कि वे  किसान हितैषी होने का  दिखावा कर रही  हैं जबकि उनके मंत्री रहते  हुए ही कृषि कानून पारित हुए थे और तब वे उनकी प्रशंसा कर रही थीं | इस पर श्रीमती बादल बिफर गईं और कानूनों के विरोध में मंत्री पद त्यागने का हवाला देते हुए पूछा कि कानून पारित होते समय राहुल गांधी और कांग्रेसी संसद सदन से उठकर क्यों चले गये थे ? हरसिमरत के सवाल का मकसद दरअसल ये साफ़ करना था श्री गांधी ने उन कानूनों के विरोध में मतदान करने से बचने के लिए सदन से बाहर जाने की नीति अपनाई | हालाँकि इस तरह हरसिमरत कांग्रेस सांसद  द्वारा उठाये सवाल  से बच नहीं सकीं किन्तु  ये बात सामने आ गई कि संसद में बहस की बजाय विपक्ष द्वारा हंगामे और बहिर्गमन जैसे कदमों से वह सत्ता पक्ष के लिए मैदान खाली  छोड़ देता है | यद्यपि इसके लिए केवल मौजदा विपक्ष को ही दोषी ठहराना न्यायोचित नहीं होगा क्योंकि भाजपा ने भी विपक्ष में रहते हुए अनेक सत्र हंगामे की बलि चढ़वाए  जिसे स्व. अरुण जेटली ने उचित भी ठहराया था | लेकिन अब कांग्रेस सहित बाकी विपक्षी पार्टियाँ मौजूदा सत्र को चलने नहीं दे रहीं तब  प्रधानमन्त्री उसे लोकतंत्र विरोधी बताने में संकोच नहीं कर रहे | इस सबके बीच ये खबर भी ध्यान देने योग्य है कि विपक्षी सदस्य आसंदी के पास आकर शोर - शराबा किया करते हैं  और सरकार उसी दौरान बिना किसी बहस अथवा औपचारिक विरोध के एक – दो विधेयक धीरे से पारित करवा लेती है | ऐसे में जब भविष्य में विपक्ष उन पर सवाल उठाएगा तब उससे भी वही पूछा जाएगा जो हरसिमरत कौर बादल ने रवनीत सिंह बिट्टू से पूछा |  उल्लेखनीय है कि संसद के हर सत्र  के पहले सदन के अध्यक्ष सर्वदलीय बैठक आहूत कर सदन को सुचारू रूप से चलाने की अपील करते हैं और उस बैठक में उपस्थित नेतागण  लोकतंत्र की दुहाई देते हुए अच्छी बातें तो  करते हैं लेकिन सत्र की शुरुवात होते ही हंगामा देखने मिलता है | मौजूदा सत्र वैसे भी संक्षिप्त  है , उस पर भी  अधिकतर समय हंगामे में बर्बाद होता रहा तो विपक्ष अपने संवैधानिक संसदीय अधिकार को खुद होकर ही गंवा देगा | वर्तमान में अनेकानेक समस्याएँ हैं जिन पर संसद में लम्बी बहस हो सकती है  | विपक्ष द्वारा सरकार की घेराबंदी  अपनी जगह ठीक है लेकिन  उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि  बहुमत नहीं  होने से वह सरकार को गिरा नहीं सकता और इसलिए उसे बहस के  लिए उपलब्ध हर अवसर को लपक लेना चाहिए | सामान्यतः उसकी कोशिश ऐसे नियम के अंतर्गत बहस की  होती है जिस पर मतदान कराया जा सके | लेकिन सत्ता पक्ष इसके लिए राजी न होकर विपक्ष को उकसा देता है और इस चाल में फंसकर वह हंगामे का सहारा लेते हुए सदन के माध्यम से देश  तक अपनी  बात  पहुँचाने का मौका खो देता है | दुर्भाग्य से वर्तमान सत्र में भी सरकार और विपक्ष के बीच समन्वय नहीं बन पाने के  कारण  बहुत कम समय ही विधायी काम हो पा रहा है | विपक्ष को  केवल उस एक उदहारण से सीख लेनी  चाहिए जब स्व. अटलबिहारी वाजपेयी को  13 दिन चली सरकार के  विश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान ये एहसास हो चला था कि वे बहुमत का इंतजाम नहीं कर सके | लेकिन उन्होंने बड़ी ही  चतुराई से सदन के माध्यम से समूचे देश को जिस तरह संबोधित किया उसने जनमानस पर जबरदस्त छाप छोड़ी और अगले चुनाव में श्री वाजपेयी फिर प्रधानमन्त्री बने | विपक्ष में अनेक वरिष्ठ सांसद  प्रभावशाली वक्ता भी हैं | वे यदि बहस में हिस्सा लें तो जनता को सरकार की गलतियाँ बता सकते हैं | उनके अलावा जो युवा सांसद पहली अथवा दूसरी बार चुनकर आये हैं , सदन नहीं चलने से उनकी प्रतिभा सामने नहीं आ पाती | और भी कई बातें हैं जिनकी वजह से संसद का चलना जनहित में होता है | विपक्ष हंगामे के जरिये क्या करना चाहता है ये तो वही बेहतर बता सकता है लेकिन ऐसा करने से वह हाथ आये अवसर को गंवा रहा  है | रही बात सरकार की तो वह हंगामे के बाद भी  अपना काम तो कर ही लेती है और जो विधेयक इस दौरान पारित होते हैं उनको निर्विरोध पारित माना जाएगा |  

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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