Thursday 19 August 2021

खाद्य तेल: उत्पादन बढ़ाने के साथ ही शुद्धता और कीमत पर ध्यान देना भी जरूरी



भारत में हरित क्रांति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न विशेष रूप से गेंहू , धान आदि का उत्पादन तो इतना होने लगा है जिसे हम निर्यात कर सकें | लेकिन दलहन और तिलहन की पैदावार जरूरत से कम रहने पर उनका आयात करना पड़ता है | इससे एक तो  आयात खर्च बढ़ता है और दूसरा देश के किसान को होने वाली कमाई विदेश चली जाती है | केंद्र सरकार बीते कुछ सालों से दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काफी प्रयास कर रही है | जिससे  दालों की पैदावार में तो मामूली ही सही लेकिन बढ़ोतरी हुई परंतु खाने वाले तेल का आयात किया जाता  है | विशेष रूप से पाम ऑयल बड़ी मात्रा में बुलाना पड़ता है , जिसका सबसे बड़ा निर्यातक मलेशिया है | इसे खाद्य तेल में मिलाने के कारण उनकी लागत कम हो जाती  है  | बीते कुछ समय से मलेशिया से हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हैं  | कश्मीर और नागरिकता संशोधन विधेयक पर उसने टर्की के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का खुला विरोध किया | यही नहीं तो  कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले जाकिर नाइक नामक इस्लामी  प्रचारक को अपने यहाँ शरण दे दी जो भारत में  आतंकवादी गतिविधियों का आरोपी है | उसके बाद से ही मोदी सरकार ने मलेशिया से पाम ऑयल का आयात पहले तो बंद कर दिया लेकिन बाद में उसकी मात्रा घटाते  हुए इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे दक्षिण एशियाई देशों से  खरीदी बढ़ा दी  | इस प्रकार केंद्र सरकार ने मलेशिया की अकड़ कम करते हुए पाम ऑयल के आयात हेतु  वैकल्पिक स्रोत तलाश लिए लेकिन अब खाद्य तेल संबंधी आत्मनिर्भरता अर्जित करने हेतु राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन का शुभारम्भ कर 11000 करोड़ की बड़ी राशि का प्रावधान भी कर दिया | भारत के  12 तटीय राज्यों में पाम खेती की संभावनाएं हैं जिनका मौसम दक्षिण एशिया के उक्त देशों जैसा ही है | इस मिशन के अंतर्गत पाम  खेती का  रकबा 10 लाख हेक्टेयर तक किये जाने का लक्ष्य है जिसके लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर मौजूदा 12 हजार रु. प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 29 हजार रु. प्रति हेक्टेयर की सहायता दी जावेगी | खर्च यदि कमाई से ज्यादा हुआ तब उसकी क्षतिपूर्ति का प्रावधान भी रखा गया है | एक अध्ययन से ज्ञात हुआ कि देश में पाम खेती का रकबा 28 लाख हेक्टेयर तक किया जाना संभव है और ऐसा होने के बाद भारत से पाम ऑयल का निर्यात हो सकेगा क्योंकि अफ्रीकी और यूरोपीय देशों को भारत से पाम ऑयल मंगाना दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में सस्ता पड़ेगा  | हालाँकि निर्यात की स्थिति आने में तो फ़िलहाल समय लगेगा लेकिन यदि मिशन की उम्मीद के मुताबिक  2025 तक पाम खेती का रकबा लक्ष्य को छू सके तो खाद्य तेल के आयात से बचने की स्थिति तो बन ही सकती है  | राजनीतिक मुद्दों से परे  हटकर देखें तो इसमें संदेह नहीं है कि केंद्र  सरकार का यह  निर्णय देश के दूरगामी हितों के संरक्षण में सहायक होगा | वैसे भी हमारा देश कृषि प्रधान है और  अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान सर्वविदित है | बीते दो वर्ष में कोरोना जैसी आपदा  के कारण जब समूचा उद्योग और व्यापार तकरीबन ठप्प पड़ गया था तब भारत के किसानों ने खेतों में जो परिश्रम किया उसी के कारण 80 करोड़ लोगों को  मुफ्त और सस्ता अनाज बांटने जैसा जनहितकारी कार्य संभव हो सका  | वरना  बेरोजगार हुए गरीब अराजकता पर उतारू हो  सकते थे  | देश में बीते एक साल के भीतर खाद्य तेल के दाम जिस तेजी से बढ़े उसके मद्देनजर राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन एक क्रन्तिकारी कदम है | पाम के साथ ही  सरसों , तिली , मूंगफली और नारियल आदि के उत्पादन पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए जो खाद्य  तेलों के  परम्परागत स्रोत हैं | वैसे एक शिकायत ये भी है कि आयातित पाम ऑयल की मिलावट स्वीकृत मात्रा से ज्यादा खाद्य तेलों में करते हुए अनाप – शनाप मुनाफा तेल उत्पादकों ने अर्जित किया | वहीं इससे  गुणवत्ता भी घटी | खाद्य तेलों की शुद्धता वाकई बहुत बड़ा मुद्दा है जिसका सीधा  सम्बन्ध जनस्वास्थ्य से है | राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन ने  देश में उत्पादन बढ़ाकर आयात को घटाने का जो संकल्प लिया वह समय की मांग है | लेकिन उसे शुद्धता के बारे में भी सख्ती बरतनी होगी क्योंकि आम तौर पर ये देखने में आया है कि निर्यात के लिए बनाये जाने वाले सामान की गुणवत्ता तो वैश्विक मानकों के अनुरूप रहती है जबकि घरेलू उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जाने वाला वही सामान तुलनात्मक रूप से उतना अच्छा नहीं होता | बहरहाल इस नये प्रयास की शुरुवात शुभ संकेत है | लेकिन इसके साथ ही सरकार को खाद्य तेलों के दामों में हो रही बेतहाशा वृद्धि को भी रोकना चाहिये जिसने आम जनता का बजट बिगाड़  रखा  है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

 

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