Wednesday 25 August 2021

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में जहरीली होती राजनीति



महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री नारायण राणे को गत दिवस महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया | लेकिन रात में ही अदालत ने उनको जमानत भी  दे दी | 15 अगस्त के दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भाषण के दौरान  स्वाधीनता किस साल मिली ये भूल गये थे , जिस पर श्री राणे ने टिप्पणी कर डाली कि वे वहां होते तो उनको जोरदार थप्पड़ मारते | इस पर उनके विरुद्ध थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई और कल जब वे रत्नागिरी में जन आशीर्वाद यात्रा निकालने गये थे तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | इसके बाद हुआ घटनाक्रम राजनीति में बेहद आम है |  बयानों के तीर दोनों तरफ से चले | शिवसेना और भाजपा कार्यकर्ताओं में शक्तिप्रदर्शन और  पार्टी  दफ्तरों में तोड़फोड़ के दृश्य भी दिखाई दिए | सरकार ने कानून के राज का एहसास दिलाया तो भाजपा ने केन्द्रीय मंत्री की गिरफ्तारी को लोकतंत्र विरोधी बताते हुए केंद्र और राज्य के रिश्तों में  खटास पैदा करने वाला कदम निरुपित किया | श्री राणे और उद्धव ठाकरे के बीच मतभेद राजनीतिक प्रतिद्वन्दिता  से बढ़ते  - बढ़ते कटुता और शत्रुता तक जा पहुंचे हैं | शिवसेना से श्री राणे के निकलने के पीछे उद्धव की महत्वाकांक्षा ही बड़ी वजह बताई जाती है  | वरना एक ज़माने में वे स्व. बाल ठाकरे के नजदीकी होने के कारण ही मुख्यमंत्री बन बैठे थे  | शिवसेना छोड़कर पहले उन्होंने कांग्रेस का  दामन थामा और फिर भाजपा की शरण में आकर राज्यसभा पहुंच गये | मोदी मंत्रीमंडल के हालिया पुनर्गठन में उनको कैबनेट मंत्री बना दिया गया | इसके पीछे प्रशासनिक अनुभव अथवा योग्यता से ज्यादा महाराष्ट्र के कोंकण अंचल में उनका प्रभाव और  शिवसेना को उसी की शैली में जवाब देने की क्षमता है | बीते काफी समय से वे उद्धव के बेटे आदित्य के ऊपर तीखे हमले करते आ रहे थे  | अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या वाले प्रकरण में भी  उन्होंने आदित्य पर गम्भीर आरोप लगाये | इन सबसे ठाकरे परिवार बहुत नाराज था | लेकिन जबसे वे केन्द्रीय बनाये गये तबसे शिवसेना को उनसे ज्यादा खतरा महसूस होने लगा | मुम्बई महानगरपालिका के आगामी चुनाव 2022 में  होने वाले हैं जिनमें श्री राणे शिवसेना के लिए गड्ढा खोदने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे | केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाये जाने से उनके  रुतबे  और आभामंडल में भी कुछ  वृद्धि तो  हुई ही है जिससे ठाकरे पारिवार चौकन्ना है | हालांकि जिस बयान को बहाना बनाकर उद्धव सरकार ने श्री राणे को गिरफ्तार करवाया उससे कहीं ज्यादा तीखे बयान वे पूर्व में दे चुके थे | लेकिन उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनकर राज्य की राजनीति में वजनदार माना जाने लगे उसके पहले ही  मुख्यमंत्री  ने उन्हें  कमतर साबित करने के लिए ये कदम उठाया ताकि उनके साथ जुड़ने की सोच रहे  शिवसैनिक हतोत्साहित हो जाएँ | इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि श्री राणे ने जो कुछ मुख्यमंत्री के बारे में कहा वह किसी भी राजनेता को शोभा नहीं देता । राजनीतिक या व्यक्तिगत मतभेद कितने भी गहरे हों किन्तु केंद्र सरकार के एक मंत्री द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री को थप्पड़ मारने जैसी  बात कहना शालीनता के विपरीत है | लेकिन ये भी मानना पड़ेगा कि श्री राणे ने राजनीति की जो शैली शिवसेना में रहते हुए सीखी उसे वे इस उम्र में आने के बाद शायद ही भूल सकेंगे | शिवसेना के  प्रवक्ता संजय राउत तो आये दिन कुछ न कुछ ऐसा बोलते ही रहते हैं जो सार्वजनिक तौर पर  टिप्पणी लायक नहीं होता | अतीत में उ.प्र  के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा छत्रपति  शिवाजी महाराज की मूर्ति पर खड़ाऊँ पहिनकर माल्यार्पण किये जाने पर उद्धव ने उनको उसी चप्पल ( खड़ाऊँ ) से मारने की बात कही थी | श्री राणे की टिप्पणी पर आपाराधिक मामला बनता है या नहीं ये तो अदालत और विधि विशेषज्ञ ही  बता सकेंगे किन्तु जहाँ तक बात कानून का एहसास करवाने की है तो श्री ठाकरे और उनके निकटस्थ शिवसेना नेताओं के दर्जनों सार्वजनिक बयान ऐसे मिल जायेंगे जिनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई हो सकती थी | पार्टी के मुखपत्र सामना में तो प्रथम पृष्ठ पर जिस तरह की टिप्पणियाँ देश की बड़ी – बड़ी हस्तियों के विरूद्ध प्रकाशित होती रहीं उनको किसी भी दृष्टि से स्तरीय नहीं कहा जा सकता | महाराष्ट्र के पूर्व  मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के अलावा भाजपा के अनेक नेताओं ने भी  श्री राणे द्वारा प्रयुक्त शब्दावली का समर्थन नहीं किया किन्तु उनको जिस तरह गिरफ्तार किया गया उसकी वजह से केन्द्रीय मंत्री का पलड़ा मजबूत हो गया | हालाँकि ये मान लेना मूर्खता होगी  कि इस घटना के बाद राजनीतिक बयानबाजी में शालीनता और मर्यादा का पालन होने लगेगा क्योंकि न तो ठाकरे एंड कम्पनी को उनका ध्यान है और न ही श्री राणे से ये उम्मीद  कि  गत दिवस जो हुआ उसके बाद वे सोच समझकर बोलने लगेंगे परन्तु इस सबसे  एक विषबेल देश में फ़ैल रही है जो   केंद्र और राज्यों के रिश्तों में जहर घोलकर संघीय ढांचे को कमजोर करने में कामयाब हो सकती है | प. बंगाल इसका ताजा उदाहरण है और अब वही सब महाराष्ट्र में देखने मिल रहा है | राजनीतिक चश्मे  से इस घटना को देखें तो उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर अपरिपक्वता का परिचय देते हुए अपने कट्टर विरोधी को बेवजह प्रसिद्धि और सहानभूति हासिल करने का अवसर दे दिया |  श्री राणे ने श्री ठाकरे  के बारे में जो कुछ कहा उसे आम तौर पर किसी ने पसंद नहीं किया लेकिन ये भी सही है कि मुख्यमंत्री को स्वाधीनता प्राप्ति का साल याद नहीं रहना साधारण गलती नहीं थी | यदि उद्धव ने केन्द्रीय  मंत्री की बात को उपेक्षित कर दिया होता तब शायद लोग इस बात को ही भूल जाते कि उसके पीछे का कारण क्या था ? अब जबकि श्री राणे गिरफ्तार होने के बाद रिहा भी हो चुके हैं तब उनके हाथ में बैठे - बिठाये एक मुद्दा आ गया | बहरहाल जो कुछ भी हुआ उसे कोई भी समझदार व्यक्ति पसंद नहीं करेगा | इसका राजनीतिक लाभ उद्धव ठाकरे को मिलेगा या नारायण राणे को ये उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना ये कि राजनीति में शालीनता , सौजन्यता और सहिष्णुता जैसे तत्व धीरे – धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं | आजादी के  अमृत महोत्सव वर्ष में इस बारे में विचार नहीं हुआ तो जिस तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित फिल्मों में वास्तविकता के नाम पर अश्लील गालियों की भरमार की जा रही है उसी तरह के नज़ारे राजनेता सड़कों पर पेश करते दिखेंगे |

 - रवीन्द्र वाजपेयी


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