Monday 2 August 2021

सरकारी खजाने के साथ ही जनता की जेब भी भरना चाहिए



जून के निराशाजनक आंकड़ों के बाद जुलाई की समाप्ति पर आई खबर उम्मीदें जगाने वाली है  | जून  में  92 हजार करोड़ के मुकाबले जुलाई में जीएसटी का संग्रह 1. 16 लाख करोड़ जा पहुंचा है |  कोरोना की दूसरी लहर के दौरान  लॉक डाउन में अर्थव्यवस्था की रफ्तार काफी धीमी पड़ गई थी  जिसके कारण आर्थिक विश्लेषण करने वाली  भारतीय और विदेशी एजेंसियों ने वार्षिक विकास दर में काफी कमी कर दी | रिजर्व बैंक ने भी अपने अनुमानों को घटा दिया | हालाँकि पहली लहर से तुलना करें तो दूसरी में उद्योग – व्यापार पूरी तरह रुका नहीं था | निर्माण संबंधी गतिविधियाँ भी कमोबेश जारी रहीं | उत्पादन क्षेत्र भी अपेक्षाकृत सक्रिय रहा | लेकिन बाजार बंद रहने से खुदरा व्यापारी और छोटा कारोबार करने वाले घर बैठने मजबूर थे  | सिनेमा हॉल , रेस्टारेंट और शॉपिंग मॉल के अलावा पर्यटन उद्योग भी बंद रहा | शादियों में   सीमित लोगों की मौजूदगी से उससे जुड़े अन्य कारोबार भी ठन्डे पड़े रहे | लेकिन कृषि जगत ने इस साल भी उम्मीदों से बेहतर परिणाम दिए जिससे खाद्यान्न संकट से देश बचा रहा | वैसे कोरोना की पहली लहर के खत्म होने के संकेत मिलते ही 2020 के अंतिम महीनों में ही आर्थिक गतिविधियों में सुधार के लक्षण नजर आने लगे थे | लेकिन दो महीने के बाद ही समस्या और जटिल हो गई | कोरोना का संक्रमण गत वर्ष की अपेक्षा दोगुनी रफ्तार से फैला और बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की खबरों ने जनता में डर पैदा कर दिया | कुछ दिनों तक तो ऐसा लगा जैसे हालात बेकाबू हो गये हैं | लेकिन जल्द ही स्थिति नियन्त्रण में आ गई  जिसके बाद  लॉक डाउन भी खत्म किया जाने लगा | शुरू में जो  बंदिशें थीं उनको भी क्रमशः घटाया जा रहा है | इस सबका सुपरिणाम अर्थव्यवस्था की सेहत में सुधार के तौर पर सामने आने लगा जिसका पैमाना जीएसटी संग्रह को  माना जाने लगा है | सबसे उत्साहजनक बात ये है कि बीते नौ महीनों में जून को छोड़कर जीएसटी की वसूली लगातार एक लाख करोड़ से  ज्यादा रही | जुलाई में आयात बढ़ने से भी जीएसटी की  आय बढ़ी वहीं घरेलू कारोबार से भी 32 प्रतिशत ज्यादा वसूली उत्साहवर्धक है | उद्योग प्रधान राज्यों में वृद्धि दर काफी अच्छी रही | जिसके कारण  ये आशा जागी  है कि आगामी त्यौहारी मौसम  में जीएसटी संग्रह पिछले कीर्तिमान ध्वस्त कर देगा | अर्थव्यस्था से जुड़े जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनके अनुसार ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट के कारोबार में आई तेजी से विकास दर में गिरावट की आशंका लगातार कम हो रही है | चौपहिया  वाहनों की बिक्री आश्चर्यजंनक तरीके से बढ़ने के कारण उससे जुड़े अनेक छोटे उद्योग भी सक्रिय हो उठे हैं | कच्चे माल के आयात से वाहनों के उत्पादन में आ रही दिक्कतें दूर होने लगी हैं | इसी तरह भवन निर्माण के कारोबार में भी रौनक नजर आ रही  है | आवासीय फ़्लैट और ड्यूप्लेक्स के ग्राहक  तेजी से खरीदी कर रहे हैं | बाजार खुलने के बाद उपभोक्ता चीजों की बिक्री भी बढ़ने लगी है | कुल मिलाकर ये कहना गलत न होगा कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बावजूद अर्थव्यवस्था रंगत पर आ रही है | निश्चित तौर पर ये राहत का विषय है | वैश्विक स्तर पर भी  मान  लिया गया है कि कोरोना के बाद का दौर भारत का होगा और इस दौरान तमाम अवरोधों के बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था प्रतिवर्ष तकरीबन 10 फीसदी की दर से आगे बढ़ेगी | परन्तु उसका संतुलित स्वरूप वही है जिसमें सरकार के साथ ही आम आदमी की भी आय बढ़े जो कम से कम मौजदा स्थितियों में तो नहीं हो रहा | जीएसटी आय में वृद्धि से वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बहुत ही खुश हैं लेकिन सही बात ये है कि बीते एक साल में महंगाई ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं | दाल , खाने के तेल , मसाले जैसी चीजों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होने से घरेलू बजट बिगड़ गया है जिसका प्रमुख कारण पेट्रोल और डीजल के दाम बेरोकटोक बढ़ते जाना है | सरकार इसके लिए वैश्विक कारणों को आधार बता रही है लेकिन उसे इस बात को मानना चाहिए कि उन पर केंद्र और राज्य मिलकर जिस बेरहमी से टैक्स वसूल रहे हैं वह महंगाई का मुख्य कारण है | ऐसे में यदि जीएसटी की वसूली आशानुरूप होने लगी है तो उसका लाभ आम जनता को पेट्रोल , डीजल और रसोई गैस की कीमतें घटाकर  दिया जाना चाहिये | सरकार को ये सोचना होगा कि जीएसटी संग्रह बढ़ने में सबसे बड़ा योगदान उपभोक्ताओं का है और इसीलिये न्यायसंगत  होगा कि केंद्र और राज्य दोनों की सरकार अपना खजाना भरने के साथ ही जनता को भी मालामाल करें क्योंकि बिना उसके अर्थव्यवस्था में उछाल की खुशी अधूरी है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी 



No comments:

Post a Comment