Monday 9 August 2021

खेलों का उज्जवल भविष्य : बशर्ते पूरा ध्यान पदक रूपी चिड़िया की आंख पर रहे



टोक्यो ओलम्पिक गत दिवस संपन्न हो गए | कोरोना के कारण यह आयोजन एक वर्ष विलम्ब से  हुआ और वह भी  बिना दर्शकों के  खाली पड़े स्टेडियम में | हालाँकि टीवी के जरिये पूरी दुनिया में विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं का प्रसारण  खेल प्रेमियों ने देखा किन्तु खिलाड़ियों को  दर्शकों की  अनुपस्थिति में अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन करना अटपटा लगता है क्योंकि उनकी तालियाँ उनका उत्साह्वर्धन करती हैं  | गत वर्ष तो ये लगा था कि ये शायद नहीं हो सकेगा लेकिन जापान की संकल्पशक्ति आभिनंदन की  पात्र है  जिसकी वजह से बहुत ही विषम परिस्थितियों में विश्व का सबसे बड़ा गैर पेशेवर आयोजन सफलतापूर्वक हो सका | कोरोना की दूसरी लहर के कारण ये आशंका भी थी कि विभिन्न देश खिलाड़ियों को संक्रमण से बचाने के लिए  टोक्यो जाने की अनुमति नहीं देंगे किन्तु ऐसा करने से अनेक ऐसे खिलाड़ी ओलम्पिक में भाग लेने से वंचित हो सकते थे जो बढ़ती आयु की वजह से 2024 में फ्रांस  की राजधानी पेरिस में होने वाले ओलम्पिक खेल में नहीं जा पाते | इसके अलावा जो  खिलाड़ी बीते चार – पांच साल से कठोर  परिश्रम करते  आ रहे थे उनके लिए भी ओलम्पिक  रद्द होना किसी सपने के टूटने जैसा हो जाता | ये सब देखते हुए टोक्यो ओलम्पिक का सफल आयोजन दुनिया भर के खेल प्रेमियों और खिलाड़ियों  के लिए उत्साहवर्धक साबित हुआ | अपवाद स्वरूप कोई विवाद हुआ हुआ तो बात अलग वरना पूरे आयोजन में बेहतर प्रबन्धन और खेल भावना ने प्रभावित किया | अमेरिका ने जहां पदक तालिका में अपना वर्चस्व बनाये रखा वहीं चीन ने दूसरा स्थान हासिल कर ये दिखा दिया कि आर्थिक प्रगति के साथ ही उसने खेलों में भी विश्वस्तरीय हैसियत बना ली है | जहां भारत का सवाल है तो उसने इस बार सात पदक जीतकर उल्लेखनीय सफलता हासिल की | सबसे बड़ी बात रही पहली बार किसी एथलीट ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया | भाला फेंक में नीरज चोपड़ा ने ये उपलब्धि हासिल कर पूरे  देश को हर्षित  होने  का अवसर दिया | दो रजत और चार कांस्य पदक के साथ भारत पदक तालिका में 48 वें स्थान पर रहा | हालाँकि पूर्वापेक्षा ये स्थिति उत्साहित करती है | विशेष रूप से इसलिए क्योंकि हमारे अनेक खिलाड़ी अंतिम चार तक पहुंचे | महिला हॉकी टीम भी  भले ही पदक से वंचित रही लेकिन पूरी प्रतियोगिता में उसका प्रदर्शन शानदार रहा जिसकी वजह से भविष्य में उससे उम्मीदें की जा सकती हैं | पुरुष हॉकी टीम ने 21 साल बाद देश को पदक दिलवाकर उस अतीत की  स्मृतियाँ ताजा कीं जब हॉकी का स्वर्ण पदक और भारत समानार्थी हुआ करते थे | हालाँकि मुक्केबाजी , तीरंदाजी , कुश्ती  और निशानेबाजी में कुछ और पदक आने से रह गए परन्तु इस ओलम्पिक की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत के लिहाज से ये रही कि  निजी खेलों में भी  हमारे खिलाड़ियों ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शन किया जिसमें उन्हें मिले प्रशिक्षण का खासा योगदान था | केंद्र सरकार ने पिछले ओलम्पिक के बाद से ही टोक्यो के आयोजन हेतु खिलाड़ियों को हर तरह से प्रोत्साहित करने का योजनाबद्ध प्रयास किया | उनको  देश – विदेश में महंगे प्रशिक्षकों से मिले मार्गदर्शन का लाभ भी देखने मिला | बीते कुछ  सालों में राज्य सरकारें भी खेलों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान दे रही हैं | यही वजह है कि पंजाब और हरियाणा के अलावा उत्तर पूर्वी राज्यों सहित कुछ ऐसे राज्यों से भी खेल प्रतिभाएं निकलकर आने लगी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति तुलनात्मक दृष्टि से कमतर  है | उदाहरण के लिए उड़ीसा का खेलों में कुछ स्थान नहीं माना जाता किन्तु वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हॉकी टीमों के प्रशिक्षण सहित बाकी खर्च उठाकर जो योगदान दिया उसकी पूरे देश में प्रशंसा हो रही है | इस उदाहरण से यदि बाकी मुख्यमंत्री भी प्रेरणा लेते हुए पेरिस ओलम्पिक के लिए अभी से  खिलाड़ियों  और टीमों को आर्थिक सहयोग के साथ ही सुरक्षित भविष्य का आश्वासन दें तो बड़ी बात नहीं अगले आयोजन में भारत पदक तालिका में और ऊंचा स्थान बना सके | म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  द्वारा पदक नहीं मिल पाने  के बावजूद महिला हॉकी टीम के  प्रत्येक खिलाड़ी को 31 -31 लाख देने का जो ऐलान  किया गया वह भी अनुकरणीय है | बेहतर हो उद्योग जगत भी इस दिशा में आगे आये और खेलों में रूचि रखने वाले लड़के – लड़कियों को संरक्षण और सहायता प्रदान करे जिससे सरकारों का बोझ कम हो | ये अच्छी बात है कि पिछले कुछ वर्षों में देश के भीतर क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के प्रति उदीयमान खिलाड़ियों की रूचि बढ़ी है | जीतने वालों के अलावा ओलम्पिक में भाग लेने वाले अन्य खिलाड़ियों को भी पुरस्कार तथा नौकरी दिए जाने की नीति से नई पीढ़ी के मन में ये धारणा तेजी से स्थापित होती जा रही है कि  खेलों में भी  भविष्य बनाया जा सकता है | ओलम्पिक में पदक जीतने वालों पर जिस तरह से धनवर्षा हुई उससे खिलाड़ियों को ये एहसास हुआ कि केवल क्रिकेट में ही पैसा नहीं है | टोक्यो ओलम्पिक में जीतने वाले खिलाड़ियों अथवा टीम के साथ ही पदक के बेहद करीब पहुंचने वालों को भी  जिस तरह से प्रशंसा और प्रोत्साहन मिला वह शुभ संकेत है | प्रसन्नता और आनंद  को विकास का आधार मानने की जो नई अवधारणा वैश्विक स्तर पर स्थापित हो रही है उसमें खेलों का भी बड़ा योगदान है | 1983 में  क्रिकेट का विश्वकप जीतने के बाद भारत का आत्मविश्वास इस हद तक बढ़ा कि आज उसके बिना विश्व क्रिकेट की कल्पना तक नहीं की जा सकती | ठीक वैसे ही टोक्यो ओलम्पिक में हमारे खिलाड़ियों ने जो उपलब्धियां अर्जित कीं वे भविष्य में और ज्यादा सफलताओं का आधार बन सकती हैं | लेकिन उसके लिए अर्जुन की तरह पदक रूपी  चिड़िया की आँख  पर  ही  समूचा ध्यान केन्द्रित करना होगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी


 

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