Friday 13 August 2021

कमंडल के बाद अब मंडल पर भी भाजपा की नजर



 अनु. जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण देने का प्रावधान संविधान निर्माताओं द्वारा ही कर लिया गया था |  लेकिन 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की  सरकार ने  दायरा बढ़ाकर उसमें अन्य पिछड़ी जातियों को भी शामिल करते हुए उनके लिए 27 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित कर दिया | दरअसल 1977 में बनी जनता पार्टी सरकार ने जो मंडल आयोग बनाया था उसने अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी | लेकिन वह सरकार ज्यादा चली नहीं और   सिफारिश ठन्डे बस्ते में चली गई | 1990 में बनी जनता दल सरकार में भी मंडल समर्थक नेताओं का दबदबा था | उनको ये एहसास भी था कि वह सरकार  ज्यादा चलने वाली नहीं थी | लिहाजा उन्होंने समय गंवाए बिना अन्य पिछड़ी जातियों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था करवा दी | उस सरकार को भाजपा बाहर से समर्थन  दे रही थी | उसे मंडल आयोग की सिफ़रिशों के लागू होने का राजनीतिक परिणाम समझ में आ गया था | इसीलिये उसने भी राममंदिर आन्दोलन तेज करते हुए सोमनाथ से अयोध्या तक  लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा निकालने का दांव चल दिया | बिहार के समस्तीपुर में लालू यादव की सरकार ने ज्योंही  उनको गिरफ्तार किया त्योंही  पूर्व घोषणानुसार भाजपा ने विश्वनाथ सिंह सरकार से समर्थन वापिस ले लिया | उसके बाद का दौर भारी राजनीतिक उथल - पुथल का रहा |  सरकारें बनती – बिगड़ती रहीं , चुनाव दर चुनाव भी हुए | लेकिन उस सबके बीच भाजपा राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आकर कांग्रेस का विकल्प बन बैठी और  सवर्ण जातियों को उसमें अपना भविष्य दिखने लगा | लेकिन केंद्र की पूर्ण सत्ता  उसे तब ही हासिल हो सकी जब उ.प्र और बिहार ही नहीं , दूसरे राज्यों में भी अन्य पिछड़ी जातियों के अलावा अनु.जाति और जनजाति वर्ग में  उसे जबरदस्त समर्थन मिला | इसका सबसे बड़ा प्रमाण उ.प्र है जहाँ पिछले दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सपा और बसपा का सफाया कर दिया | आदिवासी बहुल म.प्र , झारखंड , उड़ीसा , महाराष्ट्र आदि में भी उसे जो कामयाबी मिली उसका कारण वही जातिगत सामाजिक समीकरण रहे जिनके बल पर मंडल  समर्थक राजनीतिक दलों को उभरने का अवसर मिला था  | भाजपा का प्रभावक्षेत्र बढ़ने के पीछे उसकी हिंदूवादी छवि मानी जाती रही है | वहीं उसकी  मातृसंस्था रास्वसंघ के विरोधी उसे  ब्राह्मणवादी बताते रहे | 2015 के  बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान संघ प्रमुख डा. मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा किये जाने जैसा बयान दे दिया जिसे लालू प्रसाद यादव ने लपककर ये प्रचार किया कि संघ और भाजपा आरक्षण विरोधी हैं | हालाँकि 2020 के चुनाव में नीतिश कुमार के साथ मिलकर लड़ी भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटें जीतकर अपना प्रभाव साबित कर दिया | लेकिन उ.प्र की योगी सरकार के शासन में कुछ ब्राह्मण अपराधी सरगनाओं के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद उस सरकार को ब्राह्मण विरोधी प्रचारित किया जाने लगा | आगामी वर्ष फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर बसपा और सपा ने तो बाकायदे ब्राह्मण सम्मलेन आयोजित करते हुए भाजपा के सबसे प्रतिबद्ध मतदाताओं में सेंध लगाने की चाल चली | इस खतरे को भांपते हुए भाजपा ने संसद के मॉनसून सत्र में अन्य पिछड़ी जाति संशोधन विधेयक पारित करवा लिया | जिसके आधार पर अब राज्य सरकारों को अन्य पिछड़ी जातियों की सूची में और जातियों को जोड़ने का अधिकार होगा | इस संशोधन का कांग्रेस  सहित बाकी विपक्ष ने भी बिना शर्त समर्थन  किया जबकि सत्र के शेष समय हंगामा किया जाता रहा | इस निर्णय के उपरान्त  रास्वसंघ के सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबोले का ये बयान आ गया  कि जब तक आरक्षण आवश्यक है तब तक उसे जारी रखा जाना चाहिये |  उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि बिना दलितों के देश का इतिहास ही  अधूरा है | संघ प्रमुख भी हाल के वर्षों में इसी आशय के बयान देते रहे हैं | संसद में पारित हुए ताजा संशोधन को लेकर भाजपा और संघ विरोधी राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि  ये दांव मंडल समर्थक राजनीतिक ताकतों को पूरी तरह धराशायी करने के लिए चला गया है | संघ की जो राष्ट्रीय बैठक कुछ समय पूर्व चित्रकूट में सम्पन्न हुई थी उसमें भी ये रणनीति बनाई गई थी कि संघ और भाजपा को सवर्ण समर्थक अपनी छवि से बाहर निकलना बहुत जरूरी है | इसी के साथ ही उ.प्र में सवर्ण जातियों की संभावित नाराजगी से होने वाले नुकसान की भरपाई अन्य पिछड़ी जातियों में सपा के बचे खुचे प्रभाव को नष्ट करते हुए किये जाने की योजना भी है | हालांकि जैसा कि अनुमान है सवर्ण मतदाता अभी भी भाजपा को ही अपना संरक्षक मान रहे हैं | अयोध्या में राममंदिर का निर्माण तेजी  से चलने की वजह से उसकी साख भी बची रह गई | लेकिन संघ का सोचना ये है कि समूचे हिन्दू समाज को एकजुट किया जावे और उसके लिये उसकी आधी से ज्यादा आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली अन्य पिछड़ी जातियों को साधना जरुरी है | संघ को ये भी समझ में आ गया है कि धारा 370 और राममंदिर अब पहले जैसे  चुनावी मुद्दे नहीं बन सकेंगे | इसके अलावा मौजूदा हालातों में सत्ता विरोधी रुझान भी  नजर आने लगा है | बंगाल के कड़वे अनुभव से भी संघ और भाजपा का नेतृत्व सतर्क है | यही कारण है कि कमंडल और सवर्ण समर्थक छवि से बाहर आकर पार्टी अब पूरे हिन्दू समाज को अपने साथ जोड़ना चाह रही है | उ.प्र विधानसभा का आगामी चुनाव सही मायनों में 2024 के  लोकसभा चुनाव की झलक दे देगा | इसीलिये विपक्षी दलों की संभावित एकता में छोटी  – छोटी जातिवादी राजनीतिक पार्टियों की भूमिका को प्रभावहीन करने के लिए ही भाजपा ने मंडल समर्थक पार्टियों के आधार को हिलाने का प्रयास किया है | इसका क्या असर होगा ये तो  भविष्य ही बतायेगा क्योंकि आरक्षण का खुलकर समर्थन करने की नीति उसकी परम्परागत समर्थक  ऊंची जातियों को उससे दूर कर सकती है । लेकिन संघ और भाजपा के भीतर ये अवधारणा तेजी से घर कर चुकी है कि सत्ता में बने रहने के लिए जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में मोड़ना नितांत आवश्यक है क्योंकि जाति भारतीय समाज में उस अमरबेल की तरह है जिसे जितना काटो वह उतनी ही बढ़ती है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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