Saturday 11 September 2021

9/11 के 20 साल बाद भी अफगानिस्तान फिर वहीं का वहीं



ये महज संयोग ही कहा जायेगा कि अमेरिका के न्यूयार्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारतों पर आतंकवादी हमले के 20 साल बाद अफगानिस्तान में एक बार आतंकवाद की  पोषक तालिबानी सरकार सत्ता में लौट आई है | 11 सितम्बर 2001 को यात्री विमान का अपहरण कर दो गगनचुम्बी इमारतों से टकरा देने की वह घटना हैरतंगेज और दिल दहलाने वाली थी | हजारों लोग उसमें मारे गये थे | सबसे बड़ी बात ये रही कि जिस अमेरिका में दो – दो विश्वयुधों के दौरान एक गोली तक नहीं चली उस पर आतंकवादियों ने इतना बड़ा हमला कर दिया और विश्व की सबसे बड़ी सामरिक और आर्थिक महाशक्ति का गुप्तचर तंत्र और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह बेअसर साबित हुई | उस घटना की जिम्मेदारी अल कायदा नामक संगठन द्वारा ली गई जिसके मुखिया ओसामा बिन लादेन की तलाश में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमले करने शुरू किये और वहां तालिबान को हटाकर एक अंतिम सरकार बनाई | हालाँकि ओसामा को तलाशकर मारने में अमेरिका को 10 साल लग गये जो अफगान सीमा से कुछ दूर पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपा हुआ था | लेकिन उस बहाने वह अफगानिस्तान में काबिज होकर तालिबान के सफाये में जुट गया | उसकी समर्थक जो सरकार काबुल में स्थापित हुई  उसके शासन में अफगानिस्तान कठमुल्लेपन से उबरकर आधुनिकता और विकास की ओर तो बढ़ चला परन्तु  तालिबान को समूल नष्ट करने में वह विफल रहा जो  छापामार शैली में अमेरिकी सेना से लड़ते रहे | 20 साल की इस लम्बी लड़ाई ने अमेरिकी जनता को ठीक उसी तरह नाराज किया जैसी वह वियतनाम युद्ध के दौरान हुई थी | दरअसल अमेरिकी जनमानस में ये बात बैठ गई थी कि ओसामा के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान में करोड़ों डालर फूंकने और अपने सैनिक मरवाने का कोई मतलब नहीं  है | वैसे भी बीच में अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर मंदी का संकट मंडराने लगा था | ये देखते हुए पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क़तर के जरिये तालिबान के साथ वार्ता का दौर शुरू करते हुए अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटाने की योजना बनाई | उनके कार्यकाल में तो वह संभव नं हो सका लेकिन गत वर्ष जो बाइडन के सत्ता में आने के बाद  प्रक्रिया तेज हुई और 31 अगस्त की बजाय अमेरिका ने महीने भर पहले ही सेनाएं हटाना शुरू कर दिया | पहले ये उम्मीद थी कि अफगान सरकार की सेना तालिबान से मुकाबला करने में सक्षम है , जिसके पास अत्याधुनिक अमेरिकी हथियार थे |  लेकिन वह उम्मीद धरी रह गयी  और तालिबान लड़ाके टहलने के अंदाज में काबुल तक चले आये | राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ देने के बाद से तो उनको खुला मैदान मिल गया | और  देखते – देखते ही अफगानिस्तान फिर से तालिबान के जबड़ों में समा गया | यद्यपि पंजशीर नामक इलाके में अभी तक जंग जारी है लेकिन देर -  सवेर उस पर भी तालिबानी झंडा फहरा जाएगा | इस प्रकार बीते 20 साल तक अमेरिका ने हजारों मील दूर आकर आतंकवाद की जड़ों को काटने के लिए जो जंग लड़ी वह बेनतीजा साबित हुई और तालिबान पहले से ज्यादा ताकत के साथ सत्ता में लौटा |  सबसे बड़ी बात ये हुई कि इस बार रूस और चीन जैसी दो महाशक्तियां उसे गले लगाने बेताब हैं | चीन तो अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए एक टांग से तैयार खड़ा है | दूसरी तरफ उसके एकाधिकार को रोकने के लिए रूस भी वहां  अपने   पाँव ज़माने को लालायित है जबकि इसी तालिबान ने उसे भी अफगानिस्तान से वैसे ही खदेड़ा था जैसे हाल ही में अमेरिका को वहां से निकलना पड़ा | अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते का पूरा ब्यौरा तो अज्ञात है लेकिन एक बात बड़े  ही जोर  शोर से प्रचारित की गई थी कि इस बार तालिबान काफी बदले हुए हैं और बजाय  बर्बरता के वे मानवीय सम्वेदनाओं का परिचय देंगे | अपने प्रारम्भिक बयानों में तालिबान प्रवक्ताओं ने महिलाओं के अधिकार और सम्मान बरकरार रखने का आश्वासन भी दिया और भयभीत  लोगों से अफगानिस्तान न छोड़ने की अपील के साथ ये भरोसा दिलाया कि वे किसी के प्रति बदले की भावना न रखते हुए अपने सभी विरोधियों  को माफ कर देंगे | लेकिन काबुल कब्जाते ही उनकी राक्षसी प्रवृत्ति सामने आने लगी | नृशंस हत्याओं का दौर शुरू हो गया , महिलाओं को घरों में कैद रहने कह दिया गया | उनके अपहरण ,नीलामी और बलात्कार की घटनाएँ आम हो गईं | अमेरिका की सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के पहले ही वहाँ तालिबान का जंगल राज लौट आया और अमेरिका की सरकार चुपचाप देखती रही | जाते – जाते अमेरिकी सेना वहां  जो लाखों हथियार और सैन्य साजो – सामान छोड़ गई वह तालिबान के हाथ लग गया | कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि घड़ी की सुइयां  घूम फिरकर 2001 की उसी  तारीख पर आकर रुक सी गईं हैं जब  न्यूयार्क पर हुए आतंकवादी हमले ने अमेरिका के सर्वशक्तिमान होने के गरूर को मिट्टी में मिला दिया था | आज जब उस घटना को ठीक 20 साल हो गये हैं तब काबुल में उसी आतंकवादी सत्ता की पुनर्स्थापना हो चुकी है जिसे अमेरिका ने जड़ से नष्ट करने का बीड़ा उठाया था | ओसामा को तलाशकर मारने के बाद  अमेरिका ने खुद को महाबली साबित करते हुए जो एहसास कराया था वह बीते  एक महीने में मिथ्या साबित होकर रह गया | तालिबानी सत्ता ने औपचारिक रूप से कार्यभार सँभालने के पहले ही जिस अमानवीय दृष्टिकोण का परिचय दिया उसके कारण ये देश तो एक झटके में दो दशक पीछे चला ही गया किन्तु लगे हाथ समूचे दक्षिण पूर्व और मध्य एशिया की शान्ति को खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि तालिबान इस्लाम की आड़ में आतंकवाद को प्रश्रय देने के प्रति बहुत ही उदार है | उसके काबुल में बैठते ही दुनिया भर के इस्लामिक आतंकवादी संगठनों ने अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है |  काबुल हवाई  अड्डे के बाहर हुए आतंकवादी हमले में आईएस का हाथ होना इसका प्रमाण है | निश्चित रूप से आज का दिन एक दुखद संयोग बन गया है | भले ही तालिबान ने आज औपचारिक रूप से सत्तारूढ़ होने का जलसा टाल दिया हो लेकिन उसका शुरुवाती व्यवहार ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि बीते 20 साल में दुनिया चाहे कितनी भी बदल गई हो लेकिन तालिबान नहीं बदले | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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