Monday 27 September 2021

महानता को जाति में कैद करना उसका अपमान है


कुछ दिनों पूर्व म.प्र के ग्वालियर नगर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा पर लगी नामपट्टिका में उनके साथ गुर्जर लिखे जाने पर बवाल मच गया | राजपूत संगठनों ने सम्राट को गुर्जर बताए जाने का विरोध शुरू कर दिया | दोनों गुटों के बीच  हिंसक संघर्ष  होने के बाद से प्रतिमा स्थल पर पुलिस बल तैनात है | उच्च न्यायालय ने विवाद हल होने तक नामपट्टिका ढांक देने का आदेश दिया है | ऐसी ही खबर उ.प्र के दादरी से आई | वहां  भी मिहिर भोज को गुर्जर सम्राट लिखे जाने पर बवाल मचा हुआ है | राजपूतों के संगठन करणी सेना ने भी सम्राट को राजपूत साबित करने के लिए उग्र तेवर दिखाने शुरु कर दिए हैं | इस बीच कुछ समझदार लोगों ने ये समझाने की कोशिश भी की है कि गुर्जर समाज भी राजपूतों की ही की शाखा है इसलिए सम्राट को लेकर हो रहा विवाद अनावश्यक और निरर्थक है | ये पहला प्रसंग नहीं है जब ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के जीवन से जुड़े निजी  प्रसंगों पर इस तरह के झगड़े खड़े किये गये हों | कभी  किसी फिल्म को लेकर तो कभी किसी लेख अथवा किताब पर हंगामा होता  रहा है | नेताओं के भाषणों और टिप्पणियों पर भी जाति समूहों के बीच शब्द बाण चलते -चलते तलवारें तक निकल आती हैं | इस बारे में ध्यान रखने वाली बात है कि सम्राट मिहिर भोज या उन जैसी अन्य ऐतिहासिक हस्ती के सम्मान से हंगामा कर रहे तबके  को कुछ लेना – देना नहीं होता | यदि इतिहासकार या शोधकर्ता ऐसे मामलों में कुछ कहें तो उसका संज्ञान तो लिया जा सकता है किन्तु जिन्हें अपने खानदान के अतीत तक का समुचित ज्ञान न हो , वे भी जब ऐसे विषयों  के  विशेषज्ञ बन जाते हैं तब हंसी आती है | ज़ाहिर है  राजनीति के दुकानदार ऐसे विवादों से भड़की आग में समझाइश रूपी पानी की जगह घी डालकर उसे बढ़ाने का काम करते हैं | इतिहास के तमाम चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में आज भी प्रामाणिक जानकारी नहीं है | अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के निर्माताओं को लेकर भी भ्रम की स्थिति है | ये देखते हुए ऐसे मामलों में ठन्डे दिमाग और सुलझी हुई मानसिकता से काम किया जाए तो बजाय विवाद के सही  तथ्यों का पता लगाने की कोशिश किसी अंजाम तक पहुँच सकती है | उदाहरण के तौर पर ऐतिहासिक प्रसंगों या हस्तियों से जुड़े कथानक पर बनी फिल्मों को  लेकर जो विवाद पैदा हुए उनसे भयभीत होकर भले ही निर्माता ने पटकथा में संशोधन करते हुए कुछ दृश्य हटा दिए हों लेकिन फिल्म प्रदर्शित होकर परदे  से उतर जाने के बाद विरोध का झंडा उठाने वालों का काम खत्म सा हो जाता है | इन विवादों के चेहरे भले ही जातीय संगठन हों लेकिन ज्यादातर के पीछे  राजनीतिक नेता या पार्टी ही होती है | चूँकि जाति अब चुनावी जीत हार का आधार बन चुकी है इसलिए गलत बात का विरोध करने की हिम्मत भी किसी की नहीं होती | दुर्भाग्य इस बात का है कि  सम्राट मिहिर भोज के व्यक्तित्व से जुड़े गौरवशाली प्रसंगों की बजाय उनका उल्लेख जातीय पहिचान को लेकर हो रहा है | इसका कारण भी राजनीति ही है | गत दिवस उ.प्र में योगी मंत्रीमंडल में कुछ नए मंत्री शामिल किये जाने के साथ ही ये भी प्रचारित किया जाने लगा कि उनमें कौन किस जाति का है | देश के पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु को पंडित जी कहा जाता था | लेकिन न तो वे ब्राह्मण नेता थे  और न ही सरदार पटेल को किसी ने कुर्मी माना | लेकिन आज ऐसा नहीं है | सिख है तो जट या कुछ और ये भी सामने आने लगा है  | गुजरात के नए मुख्यमंत्री पटेल समुदाय से आते हैं | लेकिन उनकी ताजपोशी के पहले ही इस बात को प्रचारित किया जाने लगा कि वे पटेलों में भी  अमुक वर्ग के हैं | नरेंद्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के पहले तक किसी को भी उनकी जाति का पता लगाने में रूचि नहीं थी लेकिन अब सबको पता है |  जातिवाद का दबाव इतना ज्यादा है कि विदेशों में पढ़े – लिखे राहुल गांधी को भी चिल्ला- चिल्लाकर अपने ब्राह्मण होने और यज्ञोपवीत  धारण करने जैसे दावे दोहराने पड़ रहे हैं | नौबत यहाँ तक आने लगी है कि भगवानों और पौराणिक विभूतियों तक को जातियों में बांटा जा रहा है | प्रश्न ये है कि धार्मिक और  ऐतिहासिक विरासत को लेकर हो रहे झगड़े आखिर कब तक चलते रहेंगे ? सम्राट मिहिर भोज गुर्जर थे या राजपूत इससे  आज की पीढ़ी को कोई लेना - देना नहीं | इतिहास में उनका नाम जिन गुणों और उपलब्धियों के लिए लिया जाता है वे पूरे देश के लिए गौरव का विषय होना चाहिए न कि किसी जाति या वर्ग विशेष के लिए | महाराणा प्रताप और महारानी लक्ष्मीबाई  को राजपूत या मराठा होने के कारण सम्मान नहीं मिलता ,अपितु उनकी वीरता और बलिदान के प्रति सैकड़ों  साल बाद भी  आदरभाव बना हुआ है | रानी दुर्गावती गोंड़ वंश से थीं  लेकिन उनकी स्मृति को केवल आदिवासी वर्ग तक सीमित कर देना  उनके बलिदान का अवमूल्यन होगा | दुर्भाग्य से हमारे देश में  श्रृद्धा भी जाति और उपजाति में बाँट दी गई है | भगवान , ऋषि – मुनि  और ऐतिहासिक हस्तियां समूचे राष्ट्र के  हैं | उनको भी जाति की चौखट में कैद करने का जो कुचक्र रचा जा रहा है वह खतरनाक है | जिनको गये हुए शताब्दियाँ बीत गईं , उनकी जाति के नाम पर समाज को बांटने की साजिश बहुत ही शर्मनाक है | उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर प्रामाणिक  जानकारी जुटाना निश्चित रूप से शोध का विषय होना चाहिए किन्तु उन्हें छोटे से दायरे में समेट देना उनके योगदान को झुठलाना है | मिहिर भोज गुर्जर थे या राजपूत इसका निर्धारण इतिहासवेत्ताओं पर छोड़ देना ही बुद्धिमत्ता है  |

 - रवीन्द्र वाजपेयी


No comments:

Post a Comment