Saturday 4 September 2021

हिम्मत है तो चीन के उइगर मुसलमानों के पक्ष में बोलकर दिखाएं तालिबान



आखिरकार तालिबान भी पाकिस्तान की जुबान में बोलने लगा | काबुल पर कब्जा जमा लेने के बाद प्रारम्भिक बयान में उसने जम्मू – कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय विवाद बताते हुए हस्तक्षेप से परहेज के संकेत दिए थे | कुछ दिन पूर्व ही दोहा में उसके राजनयिक प्रतिनिधि ने भारत के राजदूत से मुलाकात के दौरान दोनों देशों के बीच अच्छे सम्बन्धों की उम्मीद जताई | भारत में भी एक लॉबी है जो पहले दिन से ही तालिबान के  साथ बातचीत करने का दबाव बना रही है | शुरुवाती दौर में अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन के बारे में  भारत सरकार की चुप्पी पर भी  सवाल उठाये गये  | लेकिन अफगानिस्तान में ईरान की  तर्ज पर इस्लामिक शासन व्यवस्था लागू होने के साथ ही तालिबान का असली चेहरा सामने आने लगा | भले ही  पाकिस्तानी नेताओं की इस बात को तालिबान ने सीधे – सीधे समर्थन नहीं दिया कि अफगानिस्तान की तर्ज पर वे कश्मीर को भी आजाद करवाएंगे किन्तु गत दिवस उसके प्रवक्ता सुहैल शाहीन का ये कहना खतरनाक संकेत है कि भले ही  हमारा इरादा किसी भी देश के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करने का नहीं है लेकिन मुसलमान होने के कारण कश्मीर अथवा किसी दूसरे देश के मुसलमानों के पक्ष में आवाज उठाना हमारा अधिकार है | इसके पूर्व भी एक अन्य प्रवक्ता नसीहत दे चुके हैं कि भारत को कश्मीर में सकारात्मक रवैया रखना चाहिए | हालाँकि भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि काबुल स्थित हमारा दूतावास काम करता रहेगा | इसकी एक वजह वहां रह रहे हिन्दू और सिखों की  सुरक्षा  के साथ बीते 20 वर्ष के दौरान भारत द्वारा अनेक विकास योजनाओं  का संचालन है | कुछ और परियोजनाओं का काम अभी तक अधूरा पड़ा है | सत्ता हासिल होते ही अफगानिस्तान की ओर से इकतरफा निर्णय लेते हुए भारत के साथ व्यापार पर रोक लगा दी गई | भारत को  चिंता है कि तालिबान से अनबोला रखने पर वह पूरी तरह से पाकिस्तान और चीन के शिकंजे में फंस जाएगा | लेकिन उसके  प्रवक्ता द्वारा दूसरे  देशों के मुस्लिमों के पक्ष में आवाज उठाने को अपना अधिकार बताते हुए कश्मीर पर  भारत को जो समझाइश  दी गई उसमें भावी खतरों के संकेत निहित हैं क्योंकि  भले ही कूटनीतिक तौर पर तालिबान कश्मीर के बारे में भारत का समर्थन करने से बचता  रहा हो लेकिन इस्लाम के नाम पर वहां अलगाववाद को हवा देने का काम कर सकता है | वैसे भी  कश्मीर घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने में तालिबान सहायक रहे हैं | पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों के अनेक प्रशिक्षण केंद्र उसके संरक्षण में ही चलते हैं | अफगानिस्तान से अमेरिका के पूरी तरह से चले जाने के बाद  पाकिस्तान और चीन के साथ जिस तरह से तालिबान की नजदीकियां बढ़ रही  हैं ,  वे भारत विरोधी नये समीकरण का आधार बन सकती हैं  | कश्मीर के मुसलमानों के समर्थन के पीछे भी तालिबान की सोच जहर भरी है | हालांकि अफगानिस्तान के ताजा घटनाक्रम पर  भारत अभी तक बहुत ही सावधानी के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त करता आ रहा है किन्त्तु इस्लाम के नाम पर  कश्मीर में रूचि  दिखाकर उसने एक तरह से उकसाने वाला काम किया है | यद्यपि ऐसे मसलों में उत्तेजना सदैव नुकसानदेह  होती है लेकिन पूरी तरह चुप रहने से भी सामने वाले का हौसला मजबूत होता है | इसे देखते हुए भारत को भी तालिबान को दो टूक बता देना चाहिए कि कश्मीर में रहने वाले मुसलमानों की चिंता करने की उसे जरूरत नहीं है | तालिबान को ये भी समझ लेना चाहिए कि भारत में अगर मुनव्वर राणा जैसे उसके समर्थक हैं तो जावेद अख्तर और नसीरुद्दीन शाह जैसे भी हैं जिन्होंने तालिबानी किस्म के इस्लाम की  पुरजोर  मुखालफत की है | बीते दो दशकों में अफगानी  महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ने के जो अवसर मिले उनको तालिबानी सत्ता ने जिस निर्दयता से छीन लिया वह भारत के मुसलमानों के लिए सबक होना चाहिए | उस दृष्टि से देश के मुस्लिम संगठनों को तालिबानी सत्ता  को ये नसीहत देनी चाहिए कि वह मध्ययुगीन बर्बरता को पुनर्स्थापित करने का दुस्साहस करने से बचे|  इसी के साथ तालिबान को ये चुनौती भी भारत के मुस्लिम संगठनों से अपेक्षित है कि यदि वह दुनिया भर के मुसलमानों का हमदर्द बनना चाहता है तो सबसे पहले चीन द्वारा शिनजियांग प्रान्त में रह रहे उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध वैश्विक स्तर पर  आवाज बुलंद करे | इस बारे में एक रोचक तथ्य ये है कि तमाम मुस्लिम देश भी उइगर मुसलमानों के बजाय चीन का साथ दे रहे हैं | जिसका प्रमाण चीन से भागकर मुस्लिम देशों में आये लोगों का प्रत्यर्पण करते हुए उनको चीन को सौंपा जाना है जिसके बाद उनका कुछ पता नहीं चलता | तालिबान जिस इस्लामी तौर - तरीके को लागू करने का दम भर रहा है , चीन में उनको सिरे से नकारा जाता  है | लेकिन सऊदी अरब जैसा देश तक चीन के खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत नहीं कर पाता जो खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा मददगार समझता है | कश्मीर के मुसलमानों के पक्ष में बोलने का अधिकार जताने वाले तालिबानी हुक्मरानों में यदि हिम्मत होती तो वे चीन के उइगर मुसलमानों की दुर्दशा पर आंसू बहाते लेकिन मजहबी सत्ता कायम करने पर आमादा तालिबानी हुक्मरान उस चीन के तलवे चाट रहे हैं जो धर्म को अफीम मानता है और इस्लाम के अनुयायियों  को नेस्तनाबूत करने पर आमादा है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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