Thursday 9 September 2021

नेतृत्वविहीन मुस्लिम समुदाय के नेता बनने उ.प्र में कूदे ओवैसी



एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी उ.प्र के दौरे पर हैं | आगामी  विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वे अपनी पार्टी की ज़मीन तैयार कर रहे हैं | हैदराबाद और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल से बाहर आकर ओवैसी ने बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में  विधानसभा चुनाव के दौरान  अपने प्रत्याशी उतारे जिनमें  से चार – पांच जीते भी | उसके बाद उन पर आरोप लगा कि वे भाजपा – जद ( यू ) गठबंधन की जीत में सहायक बने क्योंकि मुस्लिम मतों में विभाजन होने से राजद को घाटा हो गया | उसके बाद उन्होंने बंगाल विधानसभा के चुनाव में भी हाथ आजमाना चाहा किन्तु वहां उन्हें ज्यादा भाव नहीं मिला क्योंकि फुरफुरा शरीफ के पीर द्वारा कांग्रेस और वामपंथियों से गठबंधन कर लिया गया  था | लेकिन वे निराश नहीं हुए और उ.प्र में पूरी ताकत से कूद पड़े जहाँ तकरीबन 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो तकरीबन 100 सीटों पर निर्णायक साबित हो सकते हैं | अभी तक ये माना जाता रहा है कि राज्य के मुस्लिम मतदाताओं का बहुमत समाजवादी पार्टी के पाले में जाता है | थोड़ा हिस्सा बसपा और बचा हुआ कांग्रेस का  समर्थक भी  है | भाजपा तो वैसे भी मुस्लिम मतों की उम्मीद नहीं करती | उ.प्र में सपा के  उत्थान  में मुस्लिम समुदाय का योगदान बहुत साफ़ है | उसके संस्थापक मुलायम सिंह को  मुस्लिम परस्ती के चलते  मुल्ला तक  कहा जाने लगा था | नब्बे के दशक में भाजपा ने मंदिर आन्दोलन के सहारे ऊँची छलांग लगाई  लेकिन बाद में वह लगातार पीछे होती गई | उसका लाभ लेकर उ.प्र की राजनीति सपा और बसपा के बीच सिमट गई | भाजपा तो फिर भी अपना वजूद बनाये रही किन्तु  कांग्रेस के  लिए तो नाम ज़िंदा रखना भी कठिन हो गया | लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव ने राजनीतिक तस्वीर का रंग ही बदल डाला | नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व लहर के सामने न सपा का यादव – मुस्लिम पत्ता चला और न ही बसपा का दलित दांव काम आया | कांग्रेस भी किसी तरह अपने दो टापू रायबरेली और अमेठी बचाकर रख सकी | उस चुनाव ने उ.प्र की राजनीति पर हावी मुस्लिम मिथक को तोड़ दिया | दलित और यादवों का बड़ा हिस्सा भी मोदी लहर में समाहित होकर रह गया | उसी के परिणामस्वरूप 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अकल्पनीय सफलता मिली और वह 325 सीटें जीतने में कामयाब हो गई | उस चुनाव में सपा और कांग्रेस  मिलकर लड़ने के बावजूद फिसड्डी साबित हुईं | इससे भाजपा को एक बात समझ में आ गई कि बजाय मुस्लिम तुष्टीकरण के बाकी मतदाता समूहों पर ध्यान  दिया जाए तो राष्ट्रीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण राज्य पर कब्जा बनाये रखा जा सकता है | और इसीलिये उसने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी दूरगामी रणनीति साफ कर दी | इसका लाभ उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मिला जिसमें सपा ने अपनी घोर विरोधी बसपा के साथ गठबंधन किया | मायावती और मुलायम सिंह एक मंच पर भी आये लेकिन दाल नहीं गली | संयोग से अदालती फैसला आने से राम मंदिर निर्माण का रास्ता भी  साफ़ हो गया | उधर सपा के मुस्लिम चेहरे आजम खान पुत्र सहित जेल चले गये जिससे  उनका बड़बोलापन और दादागिरी ठंडी पड़ गई | मुलायम सिंह की अस्वस्थता और सपा में विभाजन से मुस्लिम मतदाता खुद को नेतृत्वविहीन महसूस करने लगे थे | कांग्रेस अपनी दुर्दशा से ही नहीं उबर पा रही और बसपा भी समूचे दलित समाज को प्रभावित करने में असफल रही | ऐसे में उ.प्र की राजनीति में एक बड़ा शून्य आ गया है | अखिलेश यादव साक्रिय  तो हैं लेकिन वे  अपने पिता जैसी  राजनीतिक पैंतरेबाजी नहीं जानते | शिवपाल यादव  के अलग होने से भी सपा कमजोर हुई है | इस सबसे  मुसलमानों को ये लगने लगा है कि सपा , बसपा और कांग्रेस में से कोई भी उनका संरक्षक बनने लायक नहीं रहा और यही भांपकर ओवैसी ने  उ.प्र में  मुस्लिम ध्रुवीकरण का पांसा चला है | गत दिवस उन्होंने सपा और बसपा को तीखे शब्दों में लताड़ते हुए कहा कि उनकी वजह से ही श्री मोदी प्रधानमन्त्री बन गये | आशय ये था कि ये दोनों दल उ.प्र में मोदी लहर को थाम लेते तो भाजपा केंद्र की सत्ता हासिल न कर पाती |  समाचार माध्यमों से मिल रही जानकारी के अनुसार उनकी रैलियों में मुस्लिम युवा बड़ी संख्या में आने से सपा – बसपा दोनों परेशान हैं | बसपा तो इतना बौरा गई है कि दलितों को छोड़ ब्राह्मणों को रिझाने में जुटी है | सपा को भी इस बात की चिंता है कि यादवों के अलावा  पिछड़ी जातियां उससे दूर चली गईं हैं | ऐसे में यदि ओवैसी ने मुस्लिम मतों में थोड़ी सी भी सेंध लगा दी तब सपा का बचा – खुचा आधार भी खिसक सकता है | वैसे स्वाभाविक तौर पर सपा  और बसपा से नाराज मुस्लिम तथा पिछड़े भाजपा विरोधी मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की तरफ होना चाहिए किन्तु उसकी खराब स्थिति के चलते कोई उससे जुड़ना नहीं चाह रहा | यही वजह है कि मुस्लिम मतदाताओं को उनकी  बदहाली का ब्यौरा देते हुए ओवैसी बड़ी ही चतुराई से उनके बीच नेतृत्व के अभाव को दूर करने की पुरजोर कोशिश में जुट गये हैं |  सपा – बसपा ये प्रचारित कर रही हैं कि उ.प्र में ओवैसी की दखलंदाजी का मकसद  मुस्लिम मतों में बंटवारा करवाकर परोक्ष तौर पर भाजपा की राह आसान करना है | हालाँकि वे  इसका खंडन करते हुए ये सवाल पूछ रहे हैं कि सपा और बसपा के लंबे शासनकाल के बाद भी उ.प्र के मुसलमान हर क्षेत्र में पिछड़े क्यों हैं ? लोकसभा और विधानसभा में उनकी लगातार घटती संख्या भी ओवैसी के हमले का हिस्सा है | वे कितने कामयाब होते हैं ये तो चुनावी नतीजे ही बता  सकेंगे किन्तु एक बात तो सही है कि चाहे मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की सत्ता रही या मायावती की किन्तु  मुस्लिम समुदाय का आर्थिक , सामाजिक और शैक्षणिक उत्थान नहीं हो सका | योगी राज में हिंदुत्व का पत्ता तो खुलकर खेला जाता रहा किन्तु मुसलमानों के पक्ष में खड़े होने का साहस न सपा कर पाई और न ही बसपा | कांग्रेस से तो वहां के मुसलमान राम  जन्मभूमि का ताला खोले जाने के दिन से ही नाराज हैं | तीन तलाक कानून बनाने और अयोध्या विवाद सुलझ जाने के बाद भाजपा द्वारा सामान नागरिक कानून लागू किये  जाने की तैयारी भी  की जा रही है | राजनीतिक क्षेत्रों में ये चर्चा आम है कि कोरोना न आता तब समान नागरिक संहिता और जनसँख्या नियन्त्रण कानून मोदी सरकार बनवा चुकी होती जिनको लेकर मुस्लिम समाज काफी चिंता में है | ओवैसी मुसलमानों के मन में ये बात बैठाने का प्रयास कर रहे हैं कि बजाय किसी के पिछलग्गू बनने के उनको अपना स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व बनाना चाहिए | उनकी एक बात तो सभी स्वीकार करेंगे कि उ.प्र के मुस्लिम समुदाय का अपना कोई ऐसा नेता नहीं है जिसका पूरे राज्य में प्रभाव हो | ये कहना भी गलत न होगा कि आजम खान को मुलायम सिंह यादव का करीबी  भले माना जाता रहा हो लेकिन  2012 में मुलायम ने उनको उपेक्षित करते हुए अपने बेटे अखिलेश को मुख्यमंत्री बनवा दिया | ओवैसी ने जो मुद्दे उठाए वे सामयिक भी हैं और सटीक भी क्योंकि पूरे देश के राजनीतिक माहौल को देखें तो मुस्लिम समुदाय कुछ नेताओं और पार्टियों के शिकंजे में फंसकर अपना स्वतंत्र आधार गंवाता जा रहा है | ममता , माया , अखिलेश और राहुल सभी मुसलमानों का वोट तो चाहते हैं लेकिन चुनाव के दौरान खुद को सबसे बड़ा हिन्दू साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते | ओवैसी इसी का लाभ उठाकर उ.प्र में भाग्य आजमा रहे हैं | यदि उनको 10  - 20 सीटें भीं हासिल हो गईं तब ये माना  जा सकेगा कि वे मुसलमानों के सबसे बड़े नेता बनने जा रहे हैं | अपने विवादास्पाद बयानों से वे युवा मुस्लिमों के पसंदीदा तो हैं ही  और उनका अपना स्वतंत्र राजनीतिक आधार भी है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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