Friday 17 September 2021

पेट्रोल – डीजल पर जीएसटी आर्थिक और राजनीतिक दोनों दृष्टियों से जरूरी



आज जीएसटी काउंसिल की 45 वीं बैठक लखनऊ में होने जा रही है | इसमें 50 से ज्यादा वस्तुओं पर जीएसटी लगाने या मौजूदा दर में बदलाव संबंधी निर्णय होगा | लेकिन देश के करोड़ों लोगों को इस बात में सबसे ज्यादा रूचि है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी  में लाने पर फैसला होता है या नहीं ? उल्लेखनीय है जब जीएसटी लागू किया गया था तब आश्वासन मिला था कि एक देश , एक टेक्स के अंतर्गत पेट्रोल – डीजल भी उसमें शामिल होगा | लेकिन जब उस पर अमल शुरू हुआ तब आश्चर्यजनक तरीके से पेट्रोलियम पदार्थ उससे बाहर रख दिए गये | तर्क ये था कि प्रारंभिक तौर पर राज्यों के सामने राजस्व का संकट आएगा इसलिए पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस  को भी शराब की तरह उन्हीं  के जिम्मे छोड़ दिया जावे ताकि वे अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी कर सकें | परिणामस्वरूप  उनके दाम आसमान छूने लगे | पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भारत में पेट्रोल – डीजल और साथ ही साथ रसोई  गैस महंगी होती गई | लेकिन वहाँ दाम गिरने के बावजूद  कोरोना के कारण केंद्र और राज्य सरकारों का खजाना खाली होने से उन्हें  इन चीजों से अपनी जरूरतें पूरी करना ही आसान प्रतीत हुआ |  नतीजतन म.प्र सहित कुछ राज्यों में तो पेट्रोल और डीजल बढ़कर 100 रु. प्रति लिटर से भी ज्यादा हो गये ,  वहीं रसोई गैस  900 रु. प्रति सिलेंडर के लगभग जा पहुँची है | यद्यपि इससे  केंद्र और राज्य सरकारों के पास तो जमकर पैसा आया लेकिन जनता की जेब खाली होने लगी | परिवहन महंगा होने से सभी चीजों के दाम बढ़े और  महंगाई का आँकड़ा भी ऊपर जाने लगा | लॉक डाउन के दौरान भले ही निजी वाहन कम चले हों लेकिन ज्योंही हालात सामान्य हुए त्योंही सड़कों पर उनकी कतारें नजर आने लगीं | और तो और कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी निजी वाहन से ही लम्बी दूरी की यात्राएं करने लगे | चार पहिया वाहनों की बिक्री में वृद्धि के आंकड़े उनके बढ़ते उपयोग का साक्षात प्रमाण हैं किन्तु पेट्रोल – डीजल की कीमतों में अकल्पनीय वृद्धि से हर वर्ग का नागरिक त्रस्त है | ये ऐसी चीजें हैं जिनके उपयोग के बिना काम नहीं चलता |  सरकार इस मजबूरी को समझती है और इसीलिये वह  पेट्रोल – डीजल के दाम नियमित आधार पर और रसोई गैस के थोड़े – थोड़े अन्तराल से बढ़ाती गई | इनको  जीएसटी में शामिल किये  जाने पर जैसी कि उम्मीद जताई जा रही है पेट्रोल – डीजल घटकर 65 से 75 रु. प्रति लिटर के लगभग आ जायेंगे वहीं रसोई गैस भी कम से कम 200 प्रति सिलेंडर सस्ती हो सकती है | वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हाल ही में इस बारे में संकेत दे चुकी हैं | अड़चन  ये है कि कम से कम दो तिहाई या तीन चौथाई राज्यों की सहमति  इस बारे में होना चाहिए | केंद्र सरकार ये बहाना बनाकर अब तक बचती आई है कि राज्य इसके लिए राजी नहीं हैं | लेकिन ये तर्क इसलिए गले नहीं उतरता क्योंकि देश के अधिकतर राज्यों में भाजपा या उसके द्वारा समर्थित सरकारें हैं | कुछ क्षेत्रीय पार्टियाँ भी हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ खड़ी रहती हैं | इस आधार पर ये सोचना  गलत न होगा कि  केंद्र सरकार चाह ले तो  पेट्रोल- डीजल और रसोई गैस को जीएसटी के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव आज की बैठक में  स्वीकृत हो सकता है |  राजनीतिक कारणों से भी ऐसा करना भाजपा के लिए जरूरी है क्योंकि उ.प्र , उत्तराखंड , मणिपुर , गोवा और पंजाब के आगामी चुनाव में इन चीजों की कीमतें उसके लिए समस्या बन सकती हैं | डीजल महंगा होने से किसान भी बेहद त्रस्त हैं | अर्थव्यस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है जिसका प्रमाण जीएसटी से प्रति माह होने वाली उगाही के आँकड़े हैं | कारखानों में उत्पादन बढ़ने की खबरें भी उत्साह जगाने वाली हैं | कोरोना काल में राजस्व की  कमी को पेट्रोल – डीजल से पूरा करने की बात तो चलो समझ में आती थी किन्तु अब तो सरकार के पास पर्याप्त कर आने लगा है | अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार से ये उम्मीद बलवती हो रही है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही विकास दर में बीते साल आई गिरावट की भरपाई हो जावेगी | ऐसे में राजनीतिक और आर्थिक दोनों परिस्थितियाँ इस बात पर जोर दे रही हैं कि पेट्रोल- डीजल को फ़ौरन जीएसटी के अंतर्गत लाया जावे जिससे आम जनता को राहत मिलने के साथ ही उद्योग , व्यापार के अलावा  कृषि क्षेत्र में लागत कम होने से उत्पादकता बढ़े तथा महंगाई का आंकड़ा भी नीचे आये | भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है यहाँ का मध्यम वर्ग जिसके कारण बाजारों में रौनक आती है |  यदि  पेट्रोल – डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाकर उनके दाम घटा दिए गये तो उपभोक्ताओं को होने वाली बचत अंततः बाजार में ही जाएगी और घूम – फिरकर सरकार को उससे कर मिल जावेगा | इस बारे में उल्लेखनीय है कि पेट्रोल - डीजल   पर 28 फीसदी की दर से जीएसटी लागू होगा जो कि अधिकतम होने के बाद  भी उनके दामों में तकरीबन 40 फीसदी की कमी संभावित है | बशर्ते  अधिभार जैसा कोई जबराना शुल्क आरोपित न कर दिया जावे  | वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चाहिए वे  भाजपा शासित और समर्थित राज्य सरकारों को इस बारे में राजी करें क्योंकि यदि वे सब एकमत हो जाएं तो बाकी दलों की सरकारें भी जनता की  नाराजगी से बचने के लिए साथ आने बाध्य हो जायेंगीं | संयोग से आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन भी है | यदि आज की बैठक में  पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस को जीएसटी के तहत लाकर उनकी कीमतें कम की जा सकें  तो इससे अच्छा संयोग और क्या होगा ? भारत में चूंकि सरकार के अधिकतर फैसले राजनीतिक नफे – नुकसान के हिसाब से किये जाते हैं इसलिए उस दृष्टि से भी ऐसा करना भाजपा के लिए लाभकारी  होगा | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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