Monday 6 September 2021

दया के पात्र नहीं ये देश के गौरव हैं : ओलम्पिक की खुशी दोगुनी हो गई



विश्व ओलम्पिक के बाद उसी स्थान पर विकलांग या दिव्यांग कहे  जाने वाले खिलाड़ियों की विश्व प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसे पैरालिम्पिक्स कहते हैं | इस वर्ष टोक्यो में संपन्न मुख्य ओलम्पिक खेलों के बाद आयोजित पैरालिम्पिक्स का बीते सप्ताह समापन हुआ | ये आयोजन भारतीय संदर्भ में इसलिए महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इसमें भारतीय खिलाड़ियों ने पहली बार ढेर सारे पदक हासिल कर मुख्य ओलम्पिक की खुशी को दोगुना  कर दिया | 1968 से अब तक भारत ने पैरालिम्पिक्स में जितने पदक जीते उसका सबसे बड़ा हिस्सा इस बार का है | 2016 के रियो पैरालिम्पिक्स में भारत को कुल 5 पदक हासिल हुए थे जबकि टोक्यो में भारतीय दस्ते ने 19 पदक जीतकर पूरे विश्व का ध्यान खींचा | उल्लेखनीय है भारत ने मात्र 54 खिलाड़ी ही टोक्यो भेजे थे |  पिछले पैरालिम्पिक की तुलना में बीते पांच साल में खिलाड़ियों की तैयारी पर तकरीबन 17 करोड़ रु. व्यय किये गये जो रियो खेलों की तुलना में पांच गुना ज्यादा था | इसका सुपरिणाम भी सामने आया है | प्रधानमंत्री सहित तमाम बड़ी हस्तियाँ जिस तरह इन दिव्यांग खिलाडियों का उत्साहवर्धन करती रहीं वह निश्चित रूप से स्वागत योग्य है | भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ ही दक्षिण एशिया में मजबूत सामरिक शक्ति के रूप में उभर रहा है | हमारा देश दूध उत्पादन के साथ सबसे ज्यादा फिल्में बनाने के लिए भी प्रसिद्ध  है |  ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में भी हम वैश्विक बाजारों में अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं | वैक्सीन दवाइयां बनाने में तो भारत का अग्रणी स्थान है ही | मोबाइल और साफ्टवेयर के उत्पादन में भी देश  बहुत प्रभावशाली तरीके से आगे बढ़ रहा है | रक्षा उत्पादन के अलावा  अन्तरिक्ष विज्ञान जैसे बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारतीय वैज्ञानिक एवं तकनीशियनों ने विस्श्वस्तरीय प्रतिष्ठा हासिल की है | इसे  देखते हुए यह अपेक्षा करना गलत नहीं होता कि खेलों में भी हमारा देश विश्वस्तर को स्पर्श करे | एक दौर था भारत और हॉकी एक दूसरे के पर्याय हुआ करते थे किन्तु 1968 के मांट्रियल ओलम्पिक में वह गौरव हमसे छिन गया और तबसे केवल एक मर्तबा हमने  मास्को में स्वर्ण पदक जीता और वह भी तब , जब  नाटो देश उससे बाहर रहे | हालिया टोक्यो ओलम्पिक में कांस्य जीतने से लम्बा सूखा तो खत्म हुआ लेकिन पुराना जलवा बरकरार न रह सका | लेकिन अन्य मैदानी खेलों में भारतीय खिलाड़ी जिस तेजी से उभर रहे हैं वह शुभ संकेत है | ये भी अच्छा है कि अब क्रिकेट के अलावा भी दूसरे खेलों के विजेताओं को नायक जैसा सम्मान मिलने लगा है | यही वजह रही कि टोक्यो पैरालिम्पिक्स में भारत के खिलाड़ियों द्वारा किये गए प्रदर्शन का हर खेल प्रेमी ने संज्ञान लिया और पदक जीतने वालों को जमकर प्रशंसा और प्रोत्साहन मिला | शारीरिक कमी के बावजूद उनके हौसले को हर देशवासी सलाम कर रहा है क्योंकि उनकी उपलब्धि सामान्य खिलाड़ियों की  तुलना में अधिक सम्मानीय और मूल्यवान है | इससे ये भी साबित होता है कि यदि शासन और खेल संघों द्वारा शारीरिक विकलांगता के शिकार वर्ग में से उदीयमान प्रतिभाओं का चयन कर उनके भरण – पोषण और प्रशिक्षण पर समुचित ध्यान दिया जावे तो बीते पांच वर्ष में हुए प्रयासों के परिणामस्वरूप पदक संख्या में जिस तरह पांच गुना वृद्धि हुई उससे भी बेहतर नतीजे  पेरिस में होने वाले आगामी ओलम्पिक और उसके बाद होने वाले पैरालिम्पिक्स में देखने मिल सकते हैं | आजकल हर मामले में भारत की तुलना चीन से की  जाती है | पैरालिम्पिक्स में चीन का दल 251 सदस्यों का था जिसने 207 पदक जीते | इसकी ख़ास वजह ये है कि उसने आर्थिक प्रगति के साथ ही खेल जगत में भी अपनी धाक  ज़माने के लिए पुरजोर कोशिश की | ये कहने में भी कोई गलती नहीं है कि खेल भी उद्योग का स्वरूप बनता जा रहा है | पदक जीतने वालों को शासकीय और निजी क्षेत्र से जिस तरह प्रोत्साहन मिलने लगा है उससे  खिलाड़ी बनने का आकर्षण बढ़ा है | इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा देने की जरूरत है क्योंकि ये खिलाड़ी हमारे  देश के वैश्विक  राजदूत हैं | विशेष रूप से शारीरिक दृष्टि से विकलांग खिलाड़ियों ने साबित कर दिया कि वे अब दया के पात्र नहीं वरन राष्ट्रीय गौरव के ध्वजावाहक हैं | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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