Wednesday 15 September 2021

टिकैत की हेकड़ी से किसान आन्दोलन कमजोर होने लगा

 

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर किसान संयुक्त मोर्चा दिल्ली की सिन्धु सीमा पर एक तरफ का राजमार्ग खाली करने सहमत हो गया है | हाल ही में हरियाणा के करनाल में भी किसानों ने यातायात को सुचारू  रखने के लिए रास्ता खाली किया था | दो दिन पूर्व ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने  किसानों से अपील की कि वे पंजाब में अपना आन्दोलन समेटकर हरियाणा या दिल्ली  ले जाएँ क्योंकि उसकी वजह से राज्य का विकास प्रभावित हो रहा है  | उनके इस बयान पर अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि अमरिंदर ने किसानों को मझधार में छोड़ दिया है | दूसरी तरफ हरियाणा के वरिष्ठ मंत्री अनिल विज ने आरोप लगाया कि कैप्टेन की अपील से साबित हो गया कि किसानों को आन्दोलन के लिए भड़काने का काम उन्हीं का था और जब वह उन्हीं के गले पड़ने लगा तब वे उससे छुटकारा पाना चाह रहे हैं | दूसरी तरफ आन्दोलन के शीर्ष नेताओं में राकेश टिकैत को लेकर भी मतभेद सतह  पर आ रहे हैं | पंजाब और हरियाणा के किसान नेता इस बात से नाराज हैं कि टिकैत समूचे आन्दोलन के स्वयंभू नेता बन बैठे हैं और उसे चुनावी राजनीति से जोड़ रहे हैं | कुछ दिन पहले प. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत में टिकैत द्वारा दिए गए भाषण से भी किसानों के कुछ संगठन रुष्ट हैं | यही वजह है कि दिल्ली की सिन्धु सीमा पर महीनों से  जमे किसान घर लौटने लगे  हैं | हरियाणा के किसान नेता भी चाह रहे हैं कि आन्दोलन का केंद्र टिकैत के प्रभावक्षेत्र से बाहर रखा जाए | उनकी आपत्ति इस बात पर भी है कि टिकैत आन्दोलन को जाटों के ध्रुवीकरण का जरिया बनाकर अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने का तानाबाना बुन रहे हैं | वैसे एक बात तो सच है कि टिकैत यदि न डटे होते तो दिल्ली की देहलीज पर पंजाब और हरियाणा के किसान इतने लम्बे समय तक नहीं रुक पाते | उ.प्र के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्र सरकार ऐसा कुछ  भी नहीं करना चाह रही थी जिससे किसान भड़क जाएं और आन्दोलन हिंसक हो जाये | गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर हुए उपद्रव ने किसान आन्दोलन के चेहरे  पर जो कालिमा पोती वह अब तक नहीं मिट सकी | सबसे  बड़ी बात ये हुई कि बड़ी – बड़ी डींगें हांकने के बाद भी आन्दोलन के नेता एक भी मांग सरकार से पूरी नहीं  करवा सके | उनके दावों के विपरीत पंजाब और हरियाणा में रबी फसल पर सरकारी खरीद के पिछले कीर्तिमान जहाँ टूटे वहीं किसानों को सीधे खाते में भुगतान की राशि मिलने से वे बिचौलियों से भी बच गए | चूँकि सरकार और किसान नेताओं के बीच संवाद पूरी तरह टूटा हुआ है इसलिए आन्दोलनरत किसानों में हताशा बढ़ रही है | उनकी मांगें कितनी सही हैं ये अब उतना बड़ा मुद्दा नहीं रहा जितना ये कि आन्दोलन की कोई दिशा  समझ में नहीं आ रही | किसानों के बीच भी ये चर्चा चल पड़ी है कि कानूनों को रद्द करने जैसी जिद न पकड़ी जाती तब शायद सरकार उनकी एक – दो मांगें मानकर बीच का रास्ता निकाल सकती थी |   लेकिन संयुक्त मोर्चा वार्ता की टेबिल पर बैठने से पहले ही ये शर्त रखता रहा कि पहले तीनों कानून वापिस लिए जाएं तब ही कोई बात होगी | चूँकि शुरुवात में ही ये साफ़ हो चला था कि कांग्रेस और वामपंथी संगठन इस आन्दोलन के पीछे हैं और भीड़ का लाभ लेकर कुछ खलिस्तान समर्थक भी  घुस आये हैं , इसीलिये बाकी विपक्षी दल खुलकर साथ नहीं आये | करनाल के बाद  सिन्धु सीमा पर एक तरफ का रास्ता खोलने पर सहमत होने से ये साफ़ हो गया है कि किसान नेता  भांप चुके हैं कि जिद न छोड़ने पर जनता उनके विरूद्ध हो जायेगी | अमरिंदर सिंह के ताजा बयान से भी ये लगने लगा है कि वे भी इस आन्दोलन से  पिंड छुड़ाना चाहते हैं जिसे उन्होंने ही प्रायोजित कर दिल्ली की सीमा तक भेजा था ताकि  उनके राज्य में शांति बनी रहे | लेकिन महीनों वहां पड़े रहने के बाद किसानों के जत्थे घर लौट आये और पंजाब में सैकड़ों स्थानों पर धरना दिए बैठे हैं | विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और नवजोत सिद्धू कैप्टेन की नाक में दम किये हुए हैं | अकाली दल और आम आदमी पार्टी किसानों को ये समझाने में जुटी  हैं कि कांग्रेस के बहकावे में आकर वे न इधर के रहे न उधर के | ये बात बिलकुल सही है कि किसान आन्दोलन को दिल्ली के मुहाने तक ले जाने और उसे खाद - पानी देने में पंजाब की भूमिका जबरदस्त भूमिका रही | इसीलिये जब  सिख किसानों के जत्थे  दिल्ली से वापिस लौट आये तब धरना स्थल की रौनक भी फ़ीकी पड़ने लगी | मुजफ्फरनगर की महा पंचायत में टिकैत ने भीड़ तो काफी जुटाई लेकिन उनके द्वारा मंच से अल्ला हो अकबर का नारा लगाये जाने की विपरीत प्रतिक्रिया होने लगी  | हालांकि भाजपा विरोधी प्रचार लॉबी उस रैली से चमत्कारिक नतीजे हासिल होने की उम्मीदें व्यक्त करने में जुटी हुई है लेकिन अंदरखाने की बात ये है कि टिकैत की महत्वाकांक्षा से कांग्रेस भी सतर्क हो चली हैं | सपा और बसपा तो पहले से ही आन्दोलन से दूर बैठे रहे | लोकदल नेता जयंत हालाँकि जाट  हैं लेकिन टिकैत उनको भी मंच नहीं दे रहे | यदि यही हाल रहा तो आने वाले कुछ दिनों में पंजाब में किसान आन्दोलन की जड़ें काटने का काम अमरिंदर सिंह के हाथों शुरू हो सकता है | आम आदमी पार्टी ने इसीलिए अभी से उन पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है |  एक  खबर ये भी  है कि केंद्र सरकार बिना किसान नेताओं से बात किये ही अपनी तरफ से कुछ ऐसी घोषणाएं कर सकती है  जिससे आन्दोलन की हवा निकल जाए | उ. प्र में  गन्ना किसानों के बकाया भुगतान  और रबी फसल के खरीदी मूल्य अभी से घोषित कर देना उसी दिशा में बढ़ाये कदम हैं | किसान आन्दोलन जिस जोश से शुरू हुआ था वह अब कहीं नहीं  दिखाई देता | इस वजह से ये आशंका प्रबल होती जा रही है कि कहीं  इसका हश्र भी 1974 की रेल हड़ताल जैसा न हो जाए | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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