Thursday 2 September 2021

ताकि नये गिलानी पैदा न हो सकें



कश्मीर घाटी में अलगाववादी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी 92 साल की उम्र में चल बसे। उनको आज सुबह 5 बजे दफन भी कर दिया गया ताकि भीड़ का लाभ उठाकर  आतंकवादी उपद्रव न कर सकें। हालांकि जम्मू - कश्मीर में भारत विरोधी अलगाववादी  भावना के जन्मदाता तो शेख अब्दुल्ला रहे किन्तु उसे आतंकवाद के रूप में बदलने में गिलानी की भूमिका बहुत ही खतरनाक थी जिन्होंने कश्मीर के नौजवानों की बेरोजगारी का फायदा उठाते हुए उन्हें आतंकवादियों के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। घाटी में सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करने के लिए युवकों को पैसा देने जैसा देशविरोधी षडयंत्र भी उन्हीं का रचा हुआ था। खुद तीन बार विधायक रहे गिलानी ने बाद के दौर में हुर्रियत को चुनाव प्रक्रिया से अलग कर लिया और शांति  की हर कोशिश को ये कहते हुए पलीता लगाते रहे कि पाकिस्तान को भी उसमें शामिल किया जावे। भारत सरकार को चिढ़ाने के लिए गाहे - बगाहे दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास की दावत कबूल करने वालों में वे सबसे आगे रहते थे। बाकी अलगाववादी नेताओं की तरह गिलानी ने अपनी आधा दर्जन औलादों में से एक को भी आतंकवाद की राह पर नहीं चलने दिया और वे सब पढ़ लिखकर देश - विदेश में नौकरी अथवा व्यवसाय के जरिये आराम की ज़िन्दगी बिता रहे हैं। जांच एजेंसियों को इस बात के पुख्ता प्रमाण भी मिल चुके थे कि गिलानी सहित अन्य अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान की तरफ से भारी मात्रा में आर्थिक सहायता मिलती रही। दो साल पहले केंद्र सरकार द्वारा धारा 370 और 35 ए को हटाए जाने के पहले ही राजनीतिक नेताओं के साथ ही हुर्रियत से जुड़े संगठनों के सरगना भी नजरबंद किये गए थे। बाद में सियासी नेता तो रिहा  कर दिये गए किन्तु हुर्रियत नेताओं को रिहाई नहीं दी गई। उसी का परिणाम रहा कि घाटी के भीतर अमन बना हुआ है । गिलानी को पाकिस्तानी एजेन्ट कहना भी गलत नहीं होगा । अपने पाकिस्तान प्रेम को उन्होंने कभी छिपाया भी नहीं । उनका एक बेटा तो  10 साल तक वहीं नौकरी करता रहा। उनकी मौत पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा एक दिन के राजकीय  शोक के साथ राष्ट्रध्वज को आधा झुकाए जाने का जो ऐलान किया उसके बाद गिलानी के पाकिस्तान से जुड़ाव में किसी शक की गुंजाइश नहीं रह गई। इमरान के अलावा  पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बाजवा ने भी गिलानी की मौत पर अफसोस जताकर उनकी असलियत जाहिर कर दी । बकौल इमरान हुर्रियत नेता पाकिस्तानी ही थे जिन्हें भारत ने कैद कर रखा था। गिलानी के परिवार के पास 150 करोड़ की सम्पत्ति है । हाल ही में उन्हें प्रवर्तन निदेशालय ने वसूली का नोटिस भी दिया था । उनको भले ही कुछ लोग हुर्रियत का उदारवादी चेहरा मानते हों किन्तु वे बहुत ही शातिर और कट्टर भारत विरोधी थे जिन्होंने कश्मीर घाटी के युवाओं के मन में भारत विरोधी जहर घोलकर  पत्थरबाजी को उनका रोजगार बना दिया। ये हमारे देश की कमजोरी ही है  जो  गिलानी जैसे राष्ट्रविरोधी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान की तरफदारी करते हुए घाटी में अलगाववादी भावनाएं विकसित करने की आज़ादी दी गई। उनके अलावा यासीन मलिक जैसे जहर उगलने वाले लोग भी हैं जिन्होंने घाटी में आतंकवाद के बीज बोये। हालांकि उम्र के प्रभाव और 370 हटाये जाने के बाद के हालातों में गिलानी सहित हुर्रियत का पूरा कुनबा अप्रासंगिक होकर रह गया था। अलगाववादी संगठनों  को विदेशी धन  की आवक रुक जाने से घाटी के भीतर सुरक्षा बलों पर  पत्थरबाजी बहुत ही कम हो गई है। आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के काम में रुकावट डालने जैसी हरकतें भी बन्द हो गईं। गिलानी की नजरबंदी के विरुद्ध भी घाटी में बड़े आंदोलन की हिम्मत किसी में नहीं हुई। परिवारजन चाहते  थे उनको आज सुबह 10 बजे दफनाया जावे ताकि उनके समर्थकों का हुजूम जमा हो सके किन्तु लेकिन प्रशासन ने उन्हें  अनुमति नहीं दी और सुबह -  सुबह उनको सुपुर्दे खाक कर दिया गया। गिलानी के न रहने से घाटी में अलगाववाद का ज़हर फैलाने वालों का शातिर सरगना चला गया। इमरान खान ने पाकिस्तानी बताकर गिलानी  का पूरी तरह से पर्दाफाश कर डाला। अपना राष्ट्रध्वज उन जैसे शख्स के लिए झुकाने और एक दिन के राजकीय शोक का फैसला   इमरान खान की घटिया सोच का परिचायक तो है ही किन्तु इससे हुर्रियत का पाकिस्तानी संबंध भी उजागर हो गया है। भारत के लिए ये अच्छा मौका है हुर्रियत और उसमें शामिल पाकिस्तान परस्त संगठनों को को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का ।हालांकि हुर्रियत में भी आपसी मतभेद कम नहीं हैं किंतु भारत विरोध के मसले पर उसमें शामिल तमाम नेता एक राय हैं । बीते दो साल के दौरान जम्मू - कश्मीर में भारत विरोधी ताकतों का पूरी तरह सफाया होने की स्थिति तो नहीं बन सकी और इक्का - दुक्का वारदातें तथा मुठभेड़ आये दिन हुआ ही करती हैं किन्तु ये सच है कि हुर्रियत जैसे संगठनों का असर लगातार क्षीण हुआ है । गिलानी की मौत के बाद हुर्रियत से जुड़े नेताओं में नेतृत्व और कार्यप्रणाली को लेकर विवाद बढ़ सकता है। भारत सरकार को इसका लाभ लेते हुए अलगाववाद की जड़ों में मठा डालने की चाणक्य नीति पर अमल करने में तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए जिससे नये गिलानी पैदा न हो सकें। 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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