Tuesday 28 September 2021

किसान आन्दोलन में पहले वाली बात नहीं रही




 विगत दिवस संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आयोजित भारत बंद को मौखिक समर्थन तो काफी मिला लेकिन सामने आकर लम्बे समय से चले आ रहे इस आन्दोलन को सहयोग करने वाले कम ही दिखे | भले ही  आन्दोलन को राजनीति से मुक्त  रखने के लिए राजनेताओं को उसके मंच से दूर रखने की नीति अपनाई जाती रही लेकिन कल के बंद में अनेक राज्यों में राजनीतिक दलों  ने अपनी हिस्सेदारी दिखाने में परहेज नहीं किया | बावजूद इसके बंद को वह समर्थन नहीं मिल सका जो कृषि प्रधान देश में अपेक्षित था | एक बात और जो ध्यान देने योग्य है कि आन्दोलन पर थकान का असर दिखने लगा है | किसान संयुक्त मोर्चा के नेता कुछ भी कहें लेकिन उनके साथ पहले जैसी   किसानों की भीड़ नजर नहीं आ रही | इसका मुख्य कारण उनकी दिशाहीन सोच है | संयुक्त मोर्चे में कुछ लोग हैं जो समझदारी   का परिचय देते हुए अपनी बात रखते हैं | लेकिन बाकी बिना वजह ऐंठ दिखाते हुए जिस तरह से पेश आते हैं उसकी वजह से बना हुआ  काम भी बिगड़ जाता है |  किसान आन्दोलन बेशक बहुत लम्बा खिंच गया | इसके लिए उसे संचालित कर रहे नेतागण  बधाई के हकदार हो सकते हैं किन्तु  इस बात के लिए उनकी आलोचना भी की जा सकती है कि वे अभी तक आन्दोलन के माध्यम से कुछ भी हासिल करने में असमर्थ रहे | यही वह कारण है जिससे आन्दोलन के प्रति उत्साह और सहानुभूति दोनों में कमी आई | इससे पहले आयोजित  भारत बंद को भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी जबकि उस समय आन्दोलन काफी गर्म था | सही बात ये भी है कि अभी तक ये आन्दोलन चूँकि अखिल भारतीय बन ही नहीं सका इसलिए भारत बंद करवाने लायक संगठन उसके पास नहीं है | गैर भाजपा शासित राज्यों में भले ही उसके पक्ष में आवाजें सुनाई दी हों लेकिन वे भी प्रभावशाली नहीं कही जा सकतीं | विगत दिवस हुए बंद को भी पंजाब , हरियाणा और  राजस्थान के अलावा उप्र  के पश्चिमी हिस्से में ही कुछ समर्थन मिला , वरना बंद जैसा कुछ अनुभव हुआ ही नहीं | संयुक्त किसान मोर्चा के लिए ये चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि जिस तरह से आन्दोलन घिसट रहा है उसमें उसके दीर्घजीवी होने की सम्भावना ज्यादा नजर नहीं आ रही | इसका बड़ा कारण फरवरी 2022 में होने वाले पंजाब और उ.प्र विधानसभा के चुनाव हैं | दीपावली के बाद इन राज्यों के नेता और उनके साथ जुड़े किसान चुनाव में जुट जायेंगे | खुद राकेश टिकैत भी हो सकता है अपने उम्मीदवार उतारें | चूँकि केंद्र सरकार ने आन्दोलन के प्रति पूरी तरह से मुंह फेर रखा है इसलिए निकट भविष्य में  किसी समाधान की सम्भावना नजर नहीं आ रही | हालाँकि उड़ती – उड़ती खबर है कि केंद्र सरकार गुपचुप तरीके से किसान आन्दोलन से जुड़ी मांगों में से कुछ को इस तरह से मंजूर करने जा रही है जिससे उसका श्रेय संयुक्त मोर्चा को न मिले | क्या होगा ये पक्के तौर पर कहना कठिन है किन्तु ये मान लेने में कुछ भी गलत नहीं है कि कल का बंद असर नहीं छोड़ सका और तो और इसने आन्दोलन की घटती ताकत को भी उजागर कर दिया |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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