Thursday 30 September 2021

कांग्रेस के हाथ से उड़ता पंजाब



 पंजाब ही नहीं बाकी और भी राज्यों में जो हो रहा है उससे कांग्रेस की अंतर्कलह  सामने आने के साथ ही शीर्ष नेतृत्व के घटते असर का भी अंदाज लग रहा है | पंजाब में नवजोत सिद्धू को जिस तरह खुला हाथ देकर राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने कैप्टेन अमरिंदर सिंह को हटवाया उसका दुष्परिणाम इतनी जल्दी सामने आने लगेगा ये किसी ने नहीं सोचा था | अमरिंदर द्वारा बगावत की आशंका तो स्वाभाविक ही थी लेकिन सिद्धू और उनके समर्थित मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी के बीच इतनी जल्दी तलवारें खिंच जायेंगी ये देखकर आश्चर्य हो रहा है | दो दिन पूर्व ज्योंहीं सिद्धू द्वारा प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की खबर आई त्योंही ये साफ़ हो गया कि पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने का दांव उल्टा पड़ गया | इंदिरा गांधी के दौर में जब इस तरह कांग्रेस शासित  राज्यों में सत्ता परिवर्तन किया जाता था तब आलाकमान उसी तरह ताकतवर हुआ करता था जैसे आज भाजपा में है | लेकिन जब राहुल गांधी के नेतृत्व पर पार्टी के भीतर ही सवाल उठ रहे थे और पंजाब के ही वरिष्ठ नेता सिद्धू को जबरन लादे जाने के विरुद्ध खुलकर बोल चुके थे  तब उन्हें सर्वाधिकार संपन्न बनाने का निर्णय राजनीतिक अपरिपक्वता ही थी  | बतौर सांसद और विधायक भले ही उनका राजनीतिक जीवन दो दशक पुराना हो और वाकपटुता के कारण वे हर जगह छा जाते हों लेकिन संगठन चलाने का उनका अनुभव शून्य था | भाजपा से निकलने के बाद कांग्रेस ने उन्हें अपनी गोद  में बिठाकर एक तरह से उनका राजनीतिक पुनर्वास ही किया था |  उसके पहले वे अरविन्द केजरीवाल से सौदेबाजी करते रहे किन्तु मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाये जाने के कारण आम आदमी पार्टी में नहीं गये | कांग्रेस ने उनकी मंशा पहिचानने में  भूल की या उनकी क्षमता का जरूरत से ज्यादा आकलन कर लिया ये विश्लेषण का विषय हो सकता है लेकिन सिद्धू को गांधी परिवार ने जिस तरह आगे बढ़ाया वह राजनीतिक चातुर्य की दृष्टि से बहुत ही कमजोर  कदम था | कैप्टेन  अमरिंदर सिंह बहुत अच्छी सरकार चला रहे हों ऐसा नहीं था  किन्तु  वे राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी जरूर हैं |  उस आधार पर राहुल और प्रियंका को चाहिए था  कि विधानसभा चुनाव हो जाने के बाद मुख्यमंत्री पद का फैसला करवाते लेकिन  सिद्धू की महत्वाकांक्षा के सामने वे लाचार नजर आये |  उनको ये तक समझ नहीं आया कि अमरिंदर विरोधी खेमा भी सिद्धू को बतौर विकल्प स्वीकार नहीं करेगा | विधायक दल की बैठक में सिद्धू को खास समर्थन नहीं मिलने के बाद भी उनके दबाव में  दलित मुख्यमंत्री  के नाम पर चन्नी की ताजपोशी को भले ही राजनीतिक तौर पर तुरुप का पत्ता प्रचारित किया गया किन्तु चुनाव के ठीक पहले एक कमजोर मुख्यमंत्री को लादने का जो नुकसान आशंकित था वह चार दिनों में ही सामने आ गया | सिद्धू ने कठपुतली की तरह चन्नी को नचाना चाहा किन्तु राजनीति में जैसा होता आया है  उन्होंने सिद्धू को उनकी सीमाएं बता दीं | बाकी  कांग्रेस नेता भी नवजोत  को उनकी औकात बताने के लिए आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ आ गये वरना चन्नी इतनी जल्दी सिद्धू से कन्नी नहीं काट पाते | सिद्धू द्वारा  दिए गए इस्तीफे के बाद वे पूरी तरह अकेले पड़ गये बताये जाते हैं | राहुल और प्रियंका भी उनकी  इस अप्रत्याशित हरकत से अपराधबोध से ग्रसित होकर चुप बैठ गये हैं | उनको मनाने का काम चन्नी पर छोड़ने का निर्णय दरअसल अपनी गलती पर पानी डालने जैसा है | पार्टी में उत्पन्न संकट के बीच राहुल का केरल के दौरे पर चला जाना उनके लापरवाह स्वभाव का ताजा उदाहरण  है | सिद्धू द्वारा आम आदमी पार्टी से सम्पर्क किये जाने की खबर भी आ रही है , वहीं कैप्टेन ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी | इन दोनों का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा ये एक दो दिन में स्पष्ट हो जाएगा लेकिन कांग्रेस अमरिंदर की नाराजगी से होने वाले नुकसान का आकलन कर पाती उसके पूर्व ही सिद्धू रूपी नई मुसीबत गले पड़ गयी | हाल ही  में आये कुछ चुनाव सर्वेक्षण ये बता रहे थे कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस को जबरदस्त टक्कर तो देगी लेकिन उसके बाद भी वह अपनी  सरकार  बचा ले जायेगी | दलित मुख्यमंत्री के रूप में किया गया प्रयोग भी काम कर सकता था किन्तु बीते दो दिन में बाजी पूरी तरह पलटती दिखने लगी है | पहली नजर में तो ये लगता है कि कांग्रेस की अंतर्कलह का सीधा लाभ आम आदमी पार्टी के खाते में जाएगा लेकिन अमरिंदर यदि भाजपा के साथ आते हैं तब मामला त्रिशंकु का बन जाए तो आश्चर्य नहीं होना  चाहिए | लेकिन समूचे घटनाक्रम में कांग्रेस हाईकमान माने जाने वाले गांधी परिवार विशेष तौर पर राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और कार्यप्रणाली को लेकर पार्टी के भीतर जो खींचातानी हो रही है उसका असर अन्य राज्यों पर भी साफ़ दिख रहा है | छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जैसी  टांग खिचौवल चल रही है उसे देखते हुए वहां भी पंजाब की पटकथा दोहराई जा सकती है  | स्मरणीय है 2017 में  विधानसभा चुनाव के पहले पंजाब में नशे के कारोबार का पर्दाफाश करने वाली  फिल्म उड़ता पंजाब प्रदर्शित हुई थी | उस फिल्म ने बादल सरकार की छवि बहुत खराब की और  वह सत्ता से बाहर हो गई | अमरिंदर सरकार पर वैसा कोई बड़ा आरोप नहीं था | सत्ता विरोधी रुझान को भी कैप्टेन ने किसान आन्दोलन को भड़काकर  ठंडा कर दिया था परन्तु सिद्धू को पंजाब में संगठन का मुखिया बनाकर बंदर के हाथ उस्तरा देने वाली कहावत चरितार्थ किये जाने के कारण कांग्रेस के हाथ से पंजाब उड़ता नजर आने लगा है | इस घटनाक्रम से मुख्य धारा की राजनीतिक पार्टियों की उथली सोच का भी प्रमाण मिल रहा हैं जो नए नवेले प्रवासियों को घर की चाभी सौंप देती हैं | 


-रवीन्द्र वाजपेयी
 

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