Friday 1 October 2021

बशर्ते अपनी बात खुद ही न भूल जाएं दिग्विजय



म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह रास्वसंघ और भाजपा के कटु आलोचक हैं | राजनीति के जानकारों के अनुसार उनके बयानों से भाजपा को फायदा ही मिलता है क्योंकि वे  हिन्दू मतों के  ध्रुवीकरण में सहायक बन जाते  हैं | लेकिन गत दिवस उन्होंने न सिर्फ संघ वरन केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की  भी तारीफ सार्वजनिक मंच से कर डाली | यद्यपि वह एक गैर  राजनीतिक कार्यक्रम था जिसमें 2018 के विधान सभा चुनाव के पूर्व उनके द्वारा सपत्नीक की गयी नर्मदा परिक्रमा पर लिखित पुस्तक का विमोचन किया गया | दिग्विजय ने यात्रा के दौरान गुजरात में श्री शाह द्वारा उनकी समुचित व्यवस्था हेतु शासकीय अधिकारियों को निर्देश दिए जाने के लिए उनकी  प्रशंसा करते हुए कहा कि वे उनके सबसे बड़े आलोचक होने के बावजूद भी उनकी उस सदाशयता से प्रभावित हुए  और आमने - सामने मुलाकात न होने पर भी उन्हें इस हेतु आभार प्रेषित किया | इसी के साथ ही श्री सिंह ने रास्वसंघ की तारीफ़ करते हुए कहा कि उसके स्वयंसेवक यात्रा के दौरान उनसे मिलने आते रहे और अनेक स्थानों पर उन्होंने  उनके लिए व्यवस्था भी की , जिसके लिए उन्हें संगठन द्वारा  निर्देशित किया गया था | हालाँकि संघ के कार्यकर्ताओं की कर्मठता की प्रशंसा के बावजूद श्री सिंह ने इस हिन्दू संगठन की नीतियों से अपनी असहमति और विरोध को नहीं छिपाया किन्तु साफ – साफ़ शब्दों में कहा कि गुजरात के जंगली इलाकों में जब वे मुश्किल में फंसे थे तब वन विभाग के एक अधिकारी ने उनके पास आकर कहा कि श्री शाह के स्पष्ट निर्देश हैं कि उनको कोई परेशानी नहीं  होनी चाहिए | कांग्रेस नेता ने ये भी बताया कि वे संघ द्वारा संचालित एक धर्मशाला में भी रुके जहाँ उसके संस्थापाक डा. हेडगेवार और द्वितीय संघप्रमुख माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर के चित्र लगे थे | लेकिन इन सबके बीच श्री सिंह की ये टिप्पणी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रही कि ये राजनीतिक सामंजस्य का वह उदाहरण है जिसे हम कभी – कभी भूल जाते हैं | स्मरणीय है हाल ही में उन्होंने रास्वसंघ की तुलना तालिबान से की थी | संघ विचारधरा से प्रेरित सरस्वती शिशु मंदिर के बारे में उन्होंने कहा कि वहां साम्प्रदायिकता के बीज बोये जाते हैं | बीच – बीच में अपने पूजापाठी सनातनी हिन्दू होने के दावे भी वे करते  हैं | उनकी नर्मदा परिक्रमा  को  2018 के विधानसभा चुनाव में हिन्दू विरोधी छवि से उबरने की कोशिश से भी जोड़ा गया था | उस यात्रा वृतांत पर आधारित पुस्तक के विमोचन पर वे गैर राजनीतिक चर्चा करते हुए अपने अनुभव श्रोताओं से साझा कर लोगों को तत्संबंधी सुझाव भी दे सकते थे लेकिन उन्होंने श्री शाह और रास्वसंघ की प्रशंसा कर सुर्खियाँ बटोर लीं | बतौर राजनेता उनकी इन बातों में भी राजनीतिक संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं | म.प्र में होने जा रहे कुछ उपचुनावों के ठीक पहले उनके द्वारा संघ की प्रशंसा के पीछे भी किसी राजनीतिक मंतव्य से इंकार नहीं किया जा सकता | लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि राजनीति  में दिन ब दिन बढ़ती कड़वाहट के बीच सार्वजानिक तौर पर इस तरह की बातें ताजी हवा के झोंके समान प्रतीत होती हैं | भले ही श्री सिंह ने  नर्मदा परिक्रमा के दौरान केन्द्रीय गृह मंत्री और रास्वसंघ से मिले सहयोग की प्रशंसा करने के बावजूद उनसे अपने वैचारिक मतभेदों को भी अभिव्यक्त किया किन्तु राजनीतिक सामंजस्य को याद रखने की उनकी समझाइश इस बात का संकेत है कि सैद्धांतिक विरोध के बावजूद सौजन्यता और सदाशयता को बरकरार रखा जाना चाहिए | दुर्भाग्य से आज की  भारतीय राजनीति में वे दोनों ढलान पर हैं | कड़वाहट पैदा करने वालों में खुद दिग्विजय सिंह भी सबसे आगे रहते हैं | जिस संघ को वे तालिबान जैसा मानते हुए उस पर देश तोड़ने का आरोप लगाया करते हैं उसी के कार्यकर्ता उनकी सहायता और व्यवस्था में जुटे रहे और श्री सिंह ने भी उससे परहेज नहीं किया | निश्चित रूप से इस तरह की बातों से एक – दूसरे को समझने में सहायता मिलती है | केन्द्रीय गृह मंत्री ने जो सौजन्यता दिखाई वह दरअसल एक राजनेता द्वारा  दूसरे के  प्रति प्रदर्शित सद्भाव था जो लोकतंत्र की मूल भावना को पोषित करती है | इसी तरह संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा श्री सिंह को प्रदत्त सहयोग एक हिन्दू नर्मदा भक्त के लिए था न कि कांग्रेस के दिग्गज नेता को खुश करने का प्रयास | वैसे इस बात के लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए कि उन्हें  अपने घोर विरोधी नेता और संगठन में कुछ तो अच्छाई नजर आई | बीते स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से आजाद भारत के निर्माण में पंडित जवाहरलाल नेहरु के योगदान का उल्लेख करते हुए सबको  चौंका दिया था | भाजपा विरोधी अनेक नेता भी स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक सौजन्यता के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं | एक दौर वह भी था जब संसद में सत्ता पक्ष  और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक के बावजूद व्यक्तिगत सम्बन्ध बेहद सहज और आत्मीयता भरे होते थे | लेकिन बीते दो दशक में राजनीतिक सौजन्यता गहराई में दफन हो गयी | इसके लिए कौन दोषी है ये तय कर पाना बेहद कठिन है किन्तु दिग्विजय सिंह द्वारा राजनीतिक सामंजस्य को भूल जाने की जो बात कही गई उसे वे खुद नहीं भूलें तो ये माना जाएगा कि उनका मन साफ़ है | केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार कहा था कि यदि कोई साम्यवादी मिलता है तो वे उसे विशेष सम्मान देते हैं क्योंकि वह  वैचारिक तौर पर प्रतिबद्ध है | उनकी बात अनुकरणीय है क्योंकि जो भी अपनी विचारधारा के प्रति समर्पित होता है उसकी सैद्धांतिक ईमानदारी का सम्मान किया जाना चाहिए |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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