पेगासस जासूसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई जांच समिति पर किसी को आपत्ति नहीं होना अच्छी बात बात है | यद्यपि केंद्र सरकार ने सुरक्षा संबंधी गोपनीयता की वजह से अदालत के कहने के बावजूद विस्तृत हलफनामा देने से इंकार कर दिया था किन्तु भाजपा ने भी समिति का स्वागत किया है | पैगासस इजरायली स्पाइवेयर है जिसकी सहायता से किसी भी व्यक्ति के फ़ोन की टेपिंग के साथ उसका निजी विवरण ( डेटा ) जुटाया जा सकता है | कुछ महीने पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये खुलासा हुआ कि पैगासस के जरिये दुनिया भर की विशिष्ट हस्तियों की जासूसी की गई | इजरायल के इस स्पाइवेयर की सेवाएँ जिन सरकारों द्वारा ली गईं उनमें भारत का नाम भी आने से संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया | विपक्ष के साथ ही सत्ताधारी पार्टी के अनेक नेताओं और मंत्रियों की जासूसी की बात भी सामने आई | उनके अलावा कुछ पत्रकारों के नाम भी उछले | हालाँकि कोई दस्तावेजी प्रमाण सामने नहीं आया लेकिन विपक्ष द्वारा संयुक्त संसदीय समिति से जाँच की मांग को सरकार ने सिरे से ठुकराते हुए साफ किया कि उसके द्वारा किसी की निजता का उल्लंघन नहीं किया गया | लेकिन विपक्ष ये जानना चाहता था कि क्या पेगासस की सेवाएँ भारत सरकार द्वारा ली गईं और हाँ तो किस कानून के तहत ? सरकार ने इस बारे में जो उत्तर दिया उनमें स्पष्टता नहीं होने से मामला न्यायालय चला गया | वहां भी सरकार ने सुरक्षा के मद्देनजर कुछ भी साफ़ बताने से मना कर दिया लेकिन ये जरूर कहा जाता रहा कि उसने कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे कानून का उल्लंघन हुआ हो | लोगों की जासूसी तो हर सरकार करती है किन्तु पेगासस का नियन्त्रण दूसरे देश में होने से जिन लोगों की जासूसी की बात सामने आई उनकी जानकारी का अंतर्राष्ट्रीयकरण होने से बवाल मचा | हालाँकि केंद्र सरकार ने भी अपनी जाँच समिति बना दी लेकिन न्यायालय के अनुसार वह खुद ही आरोपों के घेरे में है इसलिए उस जांच की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर उँगलियाँ उठ सकती हैं | लम्बी बहस के बाद गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बना दी गई जिसमें तीन विशेषज्ञ बतौर सहयोगी रहेंगे | समिति का कार्यकाल तय नहीं किया गया किन्तु आठ सप्ताह बाद सुनवाई किये जाने के आदेश से लगता है उस समय तक जांच समिति अपना काम कर लेगी | सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा की आड़ लेने पर कहा कि ये स्थायी बचाव नहीं हो सकता | बहरहाल अब मामला समिति के सामने है जहां सरकार और शिकायतकर्ता अपना पक्ष रखेंगे | लेकिन क्या समिति या न्यायपालिका राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सवालों पर केंद्र के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप कर सकती है ? जासूसी के साथ जुड़ा निजता का मुद्दा और पत्रकारों के स्रोत की जानकारी गोपनीय रखने के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय की चिंता स्वाभाविक है लेकिन वीरप्पन जैसे कुख्यात अपराधी के अलावा नक्सलियों से उनके ठिकानों पर जाकर साक्षात्कार करने वाले पत्रकारों को क्या पुलिस को उनके अड्डों की जानकारी नहीं देनी चाहिए ? पेगासस मामले में तो कुछ केन्द्रीय मंत्रियों के साथ ही भाजपा नेताओं की जासूसी की बात भी उजागर हुई थी | वैसे भी आईबी ( गुप्तचर ब्यूरो ) राजनेताओं और पत्रकारों पर निगाह रखता है | जासूसी शासन व्यवस्था का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग रहा है | लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी इसका उपयोग होता है | रही बात निजता की तो आज की दुनिया में उसकी रक्षा असंभव है | वैसे सरकार की जासूसी का उद्देश्य तो कुछ और होता है लेकिन इंटरनेट ईमेल , एसएमएस और व्हाट्स एप के जरिये भेजे जाने वाले सन्देश को गोपनीय रखना नामुमकिन सा है | सोशल मीडिया पर किया जाने वाला संवाद भी वैश्विक जानकारी में आ जाता है | व्यक्ति के निजी विवरण , रुचियाँ , निजी सम्बन्ध , व्यवसायिक , सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों के अलावा और भी बहुत कुछ ऐसा है जो हमारी जानकारी और अनुमति के बिना रिकॉर्ड हो रहा है | किसी अपराध के पर्दाफाश में व्हाट्स एप और ईमेल से हुआ संवाद बतौर साक्ष्य काम आता है | मोबाइल फोन से हुई बात से पता चल जाता है कि सम्बन्धित व्यक्ति उस समय कहाँ था ? इस प्रकार किसी भी इंसान की निजी जानकारी अब गोपनीय नहीं रही और उसका व्यवसायिक उपयोग धड़ल्ले से होता है | लेकिन पेगासस जासूसी का उद्देश्य अलग किस्म का होने से उसका विरोध न केवल भारत अपितु दुनिया के अनेक देशों में हो रहा है | हालाँकि ये पहला मामला नहीं है जिसमें निजता के उल्लंघन की शिकायत हुई हो | सर्वोच्च नयायालय का ये कहना एक हद तक सही है कि सरकार सुरक्षा की आड़ में निजता की उपेक्षा नहीं कर सकती | ऐसे में जांच समिति के सामने मुख्य मुद्दा ये होगा कि यदि भारत में पेगासस की सेवाएँ ली गईं तो वह किस क़ानून और किसके आदेश से , क्योंकि उसको नियंत्रित करने वाली कम्पनी साफ कर चुकी है कि वह केवल सरकारों को ही यह स्पाइवेयर प्रदान करती है | ऐसे में यदि भारत सरकार द्वारा पेगासस हासिल किये जाने की बात प्रमाणित होती है तब उसे इसके औचित्य को भी साबित करना पड़ेगा | लेकिन जाँच समिति के समक्ष भी ये दुविधा रहेगी कि वह सरकार को सुरक्षा संबंधी संवेदनशील जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए किस हद तक बाध्य कर सकेगी ? ऐसे में आठ सप्ताह के भीतर समिति अपना काम पूरा कर लेगी ये मुश्किल है | पेगासस का मुद्दा राजनीतिक हो जाने से सरकार और विपक्ष के बीच की खींचातानी में तब तक उलझा रहेगा जब तक कोई नया विवाद नहीं उठता | विपक्ष भी समझता है कि ऐसे विवादों का कोई हल नहीं निकलता | अतीत में भी जैन हवाला डायरी , विकीलीक्स जैसे अनेक मामले उठे जिनसे कुछ समय के लिए हंगामा मचा किन्तु कुछ समय बाद सब भुला दिया गया | पेगासस प्रकरण भी चूँकि विदेश से उठा है इसलिए उसकी सच्चाई आसानी से सामने आना कठिन है | सर्वोच्च न्यायालय के हालिया व्यवहार को देखते हुए भी ये कहा जा सकता है कि वह जनभावनाओं का सम्मान करते हुए प्रारंभिक सख्ती दिखाने के बावजूद कार्यपालिका के अधिकारों सहित सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अंततः अपनी सीमा में रहकर ही फैसला सुनाता है |
-रवीन्द्र वाजपेयी
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