दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आन्दोलन के रक्तरंजित होने से उसकी दिशाहीनता सामने आ गई है | सिन्धु सीमा पर किसानों की सुरक्षा के नाम पर बैठे निहंगों ने पंजाब के ही एक दलित युवक की बेरहमी से हत्या कर उसका शव लोहे के एक बैरिकेड पर टांग दिया | निहंगों का आरोप है कि मारे गये युवक ने गुरु ग्रन्थ साहेब का अपमान किया था | निहंगों के एक नेता ज्ञानी शमशेर सिंह ने इस ह्त्या को उचित ठहराते हुए कहा कि पहले भी गुरु ग्रन्थ साहेब के अपमान के दोषियों को हमने पुलिस के हवाले किया था किन्तु कुछ दिन बाद उनको छोड़ दिया गया | इसलिए इस बार हमने गुनाह के बराबर सजा दी है , ताकि दूसरा कोई ऐसी हिम्मत न कर सके , और दोबारा ऐसा हुआ तो हम फिर उसे ऐसा ही प्रसाद देंगे | हत्या करने वाले निहंग ने पुलिस के सामने समर्पण कर दिया है | शमशेर सिंह ने हत्या को जायज ठहराते हुए ये भी कहा कि गुरु ग्रन्थ साहेब के अपमान पर आगे भी निहंगों की तलवार निकलेगी | उनके अनुसार निहंग भी बतौर किसान इस आन्दोलन में शामिल हैं और धरना स्थल पर उनकी मौजूदगी बतौर रक्षक है | किसान आन्दोलन में निहंगों की भूमिका गणतंत्र दिवस पर उस समय विवादित हुई जब लालकिले पर एक निहंग ने तलवार लहराते हुए शक्ति प्रदर्शन किया वहीं दूसरे ने निशान साहेब फहरा दिया | हालाँकि उस घटना की सिखों के एक बड़े वर्ग ने भी आलोचना की थी | लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत उसे भाजपा की करतूत बताने जैसी हरकत करते रहे | शुरू में तो किसान नेताओं को लगा कि निहंगों के आने से उनके आन्दोलन को सिखों का एकमुश्त समर्थन मिलेगा लेकिन उनकी गतिविधियों से जब तकलीफ होने लगी तब दो माह पहले बलवीर सिंह राजेवाल ने सार्वजनिक रूप से कहा कि निहंगों का वहां कोई काम नहीं है और उनको वापिस चला जाना चाहिए | उनकी बात पर निहंगों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए साफ़ – साफ कह दिया कि वे किसानों की हिफाजत के लिए आये हैं और वहीं रहेंगे | जैसी जानकारी मिल रही है उसके अनुसार निहंग धीरे – धीरे किसानों के धरने का नेतृत्व कर रहे लोगों से भी बेअदबी करने लग गये थे | लेकिन उनका विरोध करने का साहस किसी में नहीं हुआ | लेकिन अब जबकि धरना स्थल पर ही एक युवक की तालिबानी शैली में हत्या कर उसकी लाश को टांग दिया गया तब जाकर किसान आन्दोलन की ओर से योगेंद्र यादव ने जुबान खोली और कहा कि ये कोई धार्मिक मोर्चा नहीं है और निहंगों को यहाँ से चला जाना चाहिए | लेकिन निहंगों की तरफ से इस बारे में कुछ नहीं कहा गया | हालांकि जो निहंग पहले हत्या के औचित्य को साबित करने में बड़बोलापन दिखा रहे थे वे शाम तक ठन्डे पड़े और हत्यारे को पुलिस के हवाले करने राजी हो गये | लेकिन इस घटना के बाद आन्दोलन के उग्रवादियों के हाथ चले जाने के आरोप को बल मिला है | लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलकर मार डालने की प्रतिक्रिया स्वरूप पांच लोगों को पीटकर मौत के घाट उतारने वालों की तरफदारी से निहंगों का हौसला बढ़ा और उन्होंने धर्मान्धता का घिनौना रूप पेश करते हुए पूरी कौम के लिए शर्मिन्दगी पैदा कर दी | सिख धर्म अपने सेवा भाव और शौर्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | गुरु ग्रन्थ साहेब के प्रति केवल सिख ही नहीं अपितु हिन्दू भी श्रद्धा रखते हैं | लेकिन निहंग अक्सर ऐसा कर जाते हैं जिससे उनके साथ ही सिख धर्म पर भी सवाल उठते हैं | कुछ साल पूर्व पंजाब में एक पुलिस वाले के हाथ निहंगों ने सरे आम काटकर आतंक फैलाया था | किसान आन्दोलन में उनका क्या काम है ये प्रश्न पहले दिन से उठता रहा है | लेकिन किसान नेताओं को निहंगों की उपस्थिति में फायदा दिखा तो उन्हें पूरी छूट दे दी गयी | जो बात बलवीर सिंह ने दो माह पहले कही और योगेन्द्र यादव अब कह रहे हैं , यदि ये गणतंत्र दिवस की घटना के दिन ही कही जाती तो शायद इस आन्दोलन के दामन पर खून के छींटे न पड़े होते | बहरहाल अब जबकि किसान आन्दोलन अपना पैनापन खोता जा रहा है तब निहंगों द्वारा एक व्यक्ति की खुले आम हत्या किये जाने के बाद ये साफ़ हो गया है कि वे किसानों की हिफाजत की आड़ में किसी गुप्त लक्ष्य को हासिल करने धरना स्थल पर घोड़े और हथियार सहित जमा हुए हैं | जहां तक बात किसान नेताओं द्वारा निहंगों से पिंड छुडाने संबंधी बयानों की है तो ये भी कलंकित होने से बचने का प्रयास है | वरना गणतंत्र दिवस पर निकाली गई ट्रैक्टर रैली के आगे चल रहे घुड़सवार निहंग इन्ही नेताओं को रास आ रहे थे | किसान नेता समझते थे कि निहंगों से डरने के कारण पुलिस और प्रशासन धरना स्थल में नहीं घुस सकेंगे , लेकिन जब बात हत्या जैसे अपराध तक आ पहुँची तब ध्यान आ रहा है कि किसान आन्दोलन धार्मिक नहीं है | प्रारंभिक दौर में जब खालिस्तान समर्थकों की मौजूदगी पर सवाल उठे तब आन्दोलन के नेताओं ने बड़ी ही चालाकी से ये प्रचारित कर दिया कि पूरी सिख कौम को खालिस्तानी कहा जा रहा है | लेकिन वे ये भूल गये कि अपनी राजनीति के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले को आगे बढ़ाने का कितना बड़ा नुकसान कांग्रेस , इंदिरा जी और देश ने भुगता | किसान आन्दोलन के कर्णधारों को ये समझना होगा कि बात अब उनके नियन्त्रण से बाहर हो चुकी है | गांधीवादी तरीके से अहिंसक आन्दोलन की बात करने वाले राकेश टिकैत और योगेन्द्र यादव को ये नहीं भूलना चाहिए कि गांधी जी आंदोलन में हिंसा होने पर उसे तत्काल रद्द कर दिया करते थे | किसान आन्दोलन जिस तरह बेलगाम होता जा रहा है उसके बाद उसे मौजूदा तरीके से जारी रखना समय और शक्ति दोनों की बर्बादी है | अपनी मांगों के लिए आन्दोलन करना किसानों का मौलिक अधिकार है लेकिन हवा में तलवार घुमाते रहने से लड़ाई नहीं जीती जाती | किसान आन्दोलन को बचाए रखना है तो उसे उग्रवादियों और उपद्रवियों के चंगुल से आजाद करना होगा | वरना ट्रैक्टर चलाने वालों को बाहर धकेलकर तलवार चलाने वाले उस पर काबिज हो जायेंगे |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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