Friday 29 October 2021

ममता को आगे बढ़ाने के लिए राहुल को आईना दिखाने की रणनीति



प्रशांत किशोर चुनाव विश्लेषण और प्रबंधन में माहिर हैं | 2014 में नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति बनाने के साथ ही वे सुर्ख़ियों में आये | लेकिन जल्द ही उनकी भाजपा से कुट्टी हो गई | उसके बाद उन्होंने बिहार में बहार है , नीतिशै कुमार है जैसा नारा देकर बिहार में भाजपा को धूल चटाई | 2017 में वे पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह के रणनीतिकार बनकर सफल साबित हुए , हालाँकि उ.प्र में कांग्रेस की लुटिया डूबने से नहीं बचा सके  | प. बंगाल विधानसभा के हालिया चुनाव में उन्होंने ममता बनर्जी को तीसरी बार सत्ता की कुर्सी तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया | खेला होबे का उनका नारा भाजपा पर भारी पड़ गया | प्रधानमन्त्री और गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा की भारी - भरकम फ़ौज तमाम दावों के बाद भी परिबर्तन के नारे को मतदाताओं के गले नहीं उतार सकी |  इस चुनाव में दावे और प्रतिदावे तो बहुत हुए लेकिन प्रशांत ने मतदान के पहले ही जबरदस्त आत्मविश्वास के साथ ये कहा था कि भाजपा किसी भी सूरत में 100  का आंकड़ा  पार नहीं कर सकेगी  और वे सौ फीसदी सही साबित हुए | उसके बाद वे ममता को राष्ट्रीय स्तर पर श्री मोदी का विकल्प बनाने में जुट गए | राकांपा प्रमुख शरद पवार के साथ उनकी लम्बी मुलाकातों से भी  विपक्ष का संयुक्त मोर्चा बनाने की सम्भावना को बल मिला | तदुपरांत  वे कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी मिले और उनको 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता की जरूरत बताई | लेकिन ऐसा लगता है कि श्री गांधी उनसे सहमत नहीं हुए | इसकी  मुख्य वजह प्रधानमन्त्री के चेहरे के तौर पर सुश्री बैनर्जी को पेश करने की बात थी | उल्लेखनीय है बंगाल की सत्ता तीसरी बार हासिल करने के बाद ममता का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है | उन्होंने भाजपा में सेंध लगाते हुए उसके अनेक विधायक और सांसद तो तोड़े ही कांग्रेस के भीतर भी तोड़फोड़ मचा दी और उसकी प्रदेश महिला अध्यक्ष के साथ ही पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत को भी अपनी पार्टी में ले आईं | साथ ही  लगातार ये बयान भी दिया कि 2024  में श्री मोदी का मुकाबला करना कांग्रेस या राहुल के बस की बात नहीं है | उनके आक्रामक तेवर इस बात का संकेत दे रहे हैं कि वे राष्ट्रीय राजनीति में विपक्षी खेमे में पैदा हुए नेतृत्व  के शून्य को भरने के लिए तत्पर हैं | उनका सोचना गलत भी नहीं है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में वे ही ऐसी अकेली गैर भाजपाई नेता हैं जिनकी बंगाल से बाहर भी  पहिचान है | विपक्षी दलों में भी उनकी पार्टी ही अपनी दम पर सरकार बनाने की क्षमता साबित कर चुकी है | कहने को तमिलनाडु , केरल , तेलंगाना , छत्तीसगढ़ . पंजाब , महाराष्ट्र , आन्ध्र , राजस्थान और उड़ीसा में भी गैर भाजपाई सरकारें हैं |  नवीन पटनायक तो पांचवी बार मुख्यमंत्री बने हैं | लेकिन उक्त राज्यों में से किसी के भी मुख्यमंत्री की राष्ट्रीय अपील नहीं है | शरद पवार और मुलायम सिंह यादव उम्रदराज होने से पहले जैसी ऊर्जा नहीं रखते | लालू यादव का सुनहरा दौर खत्म हो चुका है | देवगौड़ा भी हाशिये पर सिमटकर रह गये हैं | कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया  गांधी तो प्रधानमंत्री की दौड़ से काफी पहले बाहर हो चुकी थीं | ऐसे में सुश्री बैनर्जी का दावा ठोंकना स्वाभाविक है | लेकिन इसमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की  महत्वाकांक्षा बाधक बन रही है | ऐसा लगता है प्रशांत ने गांधी परिवार को ये बताने की कोशिश की थी कि राहुल को आगे रखकर श्री मोदी को परास्त करना कठिन होगा परन्तु  उ. प्र विधानसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस  प्रियंका वाड्रा के नेतृत्व में जिस तरह आक्रामक नजर आ रही  है उससे विपक्षी एकता की संभावनाएं धूमिल हो रही हैं | ममता द्वारा कांग्रेस को कमजोर बताये जाने वाले बयानों के बाद गत दिवस प्रशांत ने ये कहकर धमाका कर दिया कि कांग्रेस भले ही खुशफहमी पाले रहे लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए भाजपा आगामी अनेक दशकों तक राष्ट्रीय राजनीति में छाई रहेगी | अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने आंकड़ों का सहारा लेते हुए  साफ़ किया कि 30 फ़ीसदी मत  हासिल करने के बाद भाजपा को लम्बे समय तक राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा बनाये रखने से रोकना ठीक वैसे ही असम्भव होगा जैसे 40 साल तक कांग्रेस को नहीं हटाया जा सका था | कांग्रेस पर तंज करते हुए श्री किशोर ने कहा कि उसके तमाम नेता ये सोचकर बैठे हैं कि कुछ समय बाद सत्ता विरोधी लहर आयेगी  और उनके अच्छे दिन लौट आयेंगे | अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि भाजपा को भले ही एक तिहाई मतदाता समर्थन देते हैं लेकिन बचे हुए दो तिहाई में दर्जन भर से ज्यादा पार्टियां बंटवारा करती हैं | उनका ये भी कहना था कि भविष्य में भले ही नाराज होकर जनता श्री मोदी को हटा दे लेकिन भाजपा  अगले कई दशक तक ताकतवर और प्रासंगिक  बनी रहेगी | हालाँकि श्री किशोर ने उक्त्त आकलन गोवा में एक गैर राजनीतिक आयोजन में प्रस्तुत किया लेकिन ये अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस और विशेष रूप से श्री गांधी पर दागा गया निशाना है , जो अभी भी ये मानने को राजी नहीं हैं कि उनके  अलावा  श्री मोदी का कोई विकल्प हो सकता है | वैसे प्रशांत के ताजा  बयान को उस रणनीति का हिस्सा भी माना  जा सकता  है जिसके अंतर्गत वे 2024 के चुनाव को मोदी विरुद्ध ममता बनाने का तानाबाना बुन रहे हैं लेकिन राहुल  किसी भी कीमत पर उसके लिए राजी नहीं हैं और ये उम्मीद लगाये हैं कि भाजपा से असंतुष्ट होते ही जनता उनका राज्याभिषेक कर देगी | प्रशांत का भाजपा के साथ जुड़ना तो   असंभव नजर आ रहा है | इसलिए वे अपनी साख बनाये रखने के लिए विपक्ष की बिखरी हुई ताकत को एकजुट करना चाहते हैं | ये कहना भी गलत न होगा कि चुनाव प्रबंधन करते – करते उनके मन में भी लड्डू फूटने लगे हैं | नीतीश कुमार से अच्छे रिश्तों के दौरान उनकी पार्टी के पदाधिकारी बनकर  वे इसे जाहिर भी  कर चुके थे | हाल ही में उनके कांग्रेस में शामिल होने की खबरें भी खूब उडीं | इसलिए ये भी माना  जा सकता है कि गोवा में कही गईं  बातें कांग्रेस को चिढ़ाने के साथ ही प्रधानमंत्री पद की ज़िद  छोडकर विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की सलाह हो | लेकिन उन्होंने जो कहा उसका सबसे प्रमुख निचोड़ ये है कि कांग्रेस भविष्य में भी राष्ट्रीय राजनीति की  सिरमौर नहीं रह सकेगी | वैसे भी विपक्षी गठबन्धन की आस अब ममता के इर्द – गिर्द घूमने लगी है | राहुल गांधी के बारे में भी प्रशांत ने जो टिप्पणियाँ कीं वे कांग्रेस के लिए विचारणीय हैं | हालाँकि पार्टी में गांधी परिवार के विरुद्ध कही गई किसी भी बात का संज्ञान न लेने की परम्परा है जो उसकी वर्तमान दुरावस्था का सबसे बड़ा कारण है |  

-रवीन्द्र वाजपेयी

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