Tuesday 5 October 2021

लखीमपुर और जालंधर के संकेत : किसान नेताओं के हाथ से निकल रहा आन्दोलन



उ.प्र के लखीमपुर खीरी जिले में बीते रविवार हुई घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण थी जिसमें चार किसानों सहित तीन भाजपा कार्यकर्ता और एक वाहन  चालक मारे गये | प्रथम दृष्टया ये माना जा रहा है कि केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र के बेटे ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के काफिले को रोक रहे किसानों पर अपना वाहन चढ़ा दिया जिससे चार किसान मारे गये | उस पर  नाराज किसानों के झुण्ड ने कुछ  वाहनों में आग लगाने के साथ ही  तीन भाजपा कार्यकर्ताओं तथा  एक चालक को पीट – पीटकर मार डाला | बताया जाता है श्री मौर्य को लखीमपुर खीरी के साथ ही श्री मिश्र के ग्राम बनवीरपुर जाना था | पहले उनके आने का कार्यक्रम हेलीकॉप्टर से था किन्तु किसानों ने हेलीपैड पर कब्जा कर लिया | इस पर श्री मौर्य सड़क मार्ग से आ रहे थे तब उनका रास्ता रोककर  किसान खड़े हो गये | दरअसल श्री मिश्र द्वारा कुछ दिनों पहले  दिए गये कथित धमकी भरे बयान से स्थानीय किसानों में काफी नाराजगी थी | उक्त घटना की खबर आते ही राजनीति शुरू हो गई | राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के नेतागण लखीमपुर खीरी जाने के लिए बेताब हो उठे | त्यागपत्र मांगे जाने की औपचारिकता का निर्वहन होने लगा | इसके पीछे किसानों से हमदर्दी कम और उ.प्र विधानसभा के आगामी चुनाव में वोटों की फसल काटने का मंसूबा ज्यादा था | लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 24 घंटे के भीतर किसानों की नाराजगी दूर करते हुए मृतकों के परिवारों लिए आर्थिक क्षतिपूर्ति और  आश्रित को सरकारी नौकरी के अलावा घायलों को भी समुचित मदद की व्यवस्था करवाकर आग में तेल डालने वालों की कोशिशों को नाकाम कर दिया | किसान नेताओं के अलावा बाकी को घटनास्थल तक आने से रोकने हेतु जरूरी कदम भी उठाये | घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप लखनऊ में भी पुलिस के वाहन जलाये गये  | अब विवाद का मुद्दा श्री मिश्रा को मंत्री पद से हटाये जाने और किसानों को कुचलने के आरोपी उनके बेटे को सजा दिलाना है | पुलिस ने उसके विरुद्ध मामला दर्ज करने के साथ ही अनेक लोगों पर बलवे का आरोप भी लगाया है | वीडियो फुटेज से ये बात भी सामने आई है कि आन्दोलनकारियों के हाथ में लाठियां थीं | यही नहीं उनमें शामिल कुछ सिख युवक जरनैल सिंह भिंडरावाले के चित्र वाली शर्ट भी पहने हुए थे | किसानों से हमदर्दी रखने वालों का तर्क है कि उनके चार साथियों को मंत्री पुत्र द्वारा बेरहमी से कुचलकर मार दिए जाने के बाद  तीन भाजपा कार्यकर्ताओं सहित एक वाहन चालक को बुरी तरह पीटकर मार डालने की घटना क्रिया की प्रतिक्रिया थी | उ.प्र सरकार की तत्परता से भले ही लखीमपुर खीरी में फिलहाल शांति नजर आ रही हो लेकिन इस घटना के बाद किसान आन्दोलन के भटकने  का खतरा बढ़ रहा है | ऐसा लगता है आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं का उस पर नियन्त्रण खत्म हो चुका है | रविवार को घटनास्थल पर उपस्थित रमन कश्यप नामक पत्रकार किसानों की भीड़ द्वारा पीटे जाने पर बुरी तरह घायल  हो गया था , जिसकी गत दिवस मृत्यु हो गयी | कल वहां गये पत्रकारों के साथ भी दुर्व्यवहार करते हुए उनको खदेड़ दिया गया |  राज्य सरकार ने घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिये हैं | किसानों को अपनी मांगों के लिए धरना प्रदर्शन किये जाने का पूरा अधिकार है | कोई मंत्री पुत्र यदि सता के नशे में चूर होकर उन्हें वाहन से कुचलने जैसा जघन्य कृत्य करे तो उसे कठोर दंड मिलना चाहिए | लेकिन हत्या तो हत्या है , चाहे किसी को हो | इसलिए इस घटना का एकतरफा विश्लेषण सही नहीं है | किसानों द्वारा हेलीपैड पर कब्जा करना कहाँ तक जायज था इसका जवाब भी मिलना चाहिए | क्रिया की प्रतिक्रिया के नाम पर जिन लोगों को मार दिया गया , यदि उनके परिजन भी वैसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करने को तैयार हो गये तब क्या उनके कृत्य को भी सही ठहराया जाएगा ? किसानों का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों को ये समझ में आ जाना चाहिए कि आन्दोलन को भड़काकर वे शेर की पीठ पर सवार होने की हिमाकत तो कर बैठे किन्तु अब उनसे उतरते नहीं बन रहा | पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह किसान आन्दोलन की आग को भड़काने में अग्रणी थे  | लेकिन आखिर में वे भी परेशान  होकर कहने लगे कि आन्दोलन से पंजाब के विकास पर बुरा असर पड़ रहा है | गत दिवस पंजाब के जालंधर में कांग्रेस विधायक बलविन्दर सिंह लाडी को एक धार्मिक समागम में जाने पर मौजूद किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा | किसानों ने उन पर पत्थर और बर्तन फेंके जिसके  बाद उनको गुरुद्वारे में छिपकर जान बचानी पड़ी | लखीमपुर खीरी में एक पत्रकार की हत्या और दूसरे दिन वहां दौरे पर गये पत्रकारों को धमकाकर भगाना , किसान आन्दोलन के अराजक होने का साक्षात प्रमाण है | इसके पहले भी राजनीतिक नेतागण किसानों के धरने  और सभाओं में जाते रहे | भले ही उनको मंच नहीं दिया गया किन्तु उनके साथ दुर्व्यवहार भी नहीं हुआ | पत्रकारों ने भी शुरू  से ही आन्दोलन को सुर्ख़ियों में रखा | लेकिन जिस तरह के संकेत  अब मिलने लगे हैं उससे  किसान नेताओं के साथ ही राजनीतिक नेताओं को भी सावधान हो जाना चाहिए | चुनाव और राजनीति अपनी जगह हैं लेकिन आन्दोलन के नाम पर अराजकता को स्वीकार नहीं किया जा सकता | गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय ने भी किसान आन्दोलन के जारी रहने  पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब उसने कृषि कानूनों पर रोक लगा रखी है और मामला उसके विचाराधीन है , तब प्रदर्शन क्यों किया जा रहा है ? सवाल और भी हैं लेकिन आन्दोलन के दिशा से भटकने के कारण जवाबदेही किसकी है ये तय कर पाना कठिन है |  सर्वोच्च न्यायालय ने भी ये सवाल उठाया  है | बेहतर होगा किसान आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले कथित नेता और उसका समर्थन कर रहे राजनीतिक दल इस बात का गम्भीरता से  संज्ञान लें कि उसे दिशाहीन होने से किस तरह बचाया जावे ? देश का आम किसान आन्दोलन की विधाओं में न तो पारंगत है और न ही अभ्यस्त | इस कारण ये  आशंका बढ़ती जा रही है कि उनके नाम पर उपद्रवी तत्व ऐसी परिस्थितियां निर्मित कर देंगे जिनसे किसानों की न्यायोचित मांगें भी दम तोड़ बैठें | लखीमपुर खीरी की घटना के जिम्मेदार लोगों को कड़ा दंड मिलना चाहिए फिर  चाहे वह मंत्री पुत्र हो या दूसरे उपद्रवी | क्रिया की प्रतिक्रिया का उल्लेख किस सन्दर्भ में जायज है ये भी समझना जरूरी है , वरना जंगल राज को रोकना कठिन हो जाएगा | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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