कश्मीर घाटी में आतंकवादियों द्वारा की गईं हालिया हत्याओं के कारण वहां अन्य राज्यों के प्रवासी श्रमिकों के पलायन के साथ ही तीन दशक पहले घर छोड़ने मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की योजना खटाई में पड़ रही है | पर्यटकों की आवाजाही पर भी विपरीत असर पड़ा है जिससे व्यवसायिक गतिविधयों को भी नुकसान हो रहा है | सबसे बड़ी बात ये हुई कि आम जनता के मन में सुरक्षा की जो भावना जागी थी उसमें कमी आने लगी | घाटी से जो खबरें आ रही हैं उनसे बाहरी लोगों के साथ ही गैर मुस्लिम समुदायों के लोगों को भी अपना जीवन `खतरे में नजर आने लगा है | श्रीनगर की डल झील के किनारे गोलगप्पे बेचने वाले बिहार के एक युवक ने जम्मू जाने वाली बस में बैठते समय कहा कि उसके खोमचे पर आने वाला व्यक्ति ग्राहक है या आतंकवादी , ये पहिचानना कठिन होने के बाद यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है | बाहरी श्रमिकों के साथ ही अनेक स्थानीय गैर मुस्लिमों की अकारण हत्या और उसके बाद घाटी छोड़कर जाने की धमकियों से घड़ी की सुइयां 1990 के उस खौफनाक दौर पर लौटने लगीं जब रातों - रात हजारों कश्मीरी पंडितों सहित अन्य हिन्दू परिवारों को महिलाओं की आबरू के साथ ही परिवार की जान बचाने की खातिर भागकर आना पड़ा | दो साल पहले केंद्र सरकार द्वारा जब धारा 370 हटाई गई तभी से ये उम्मीद की जाने लगी थी कि घाटी छोड़कर गए हिन्दू समुदाय के विस्थापित अपने घरों को लौट सकेंगे | पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आने के साथ ही आतंकवादी वारदातें भी घटीं | नमाज के बाद मस्जिदों से निकलती भीड़ द्वारा पाकिस्तानी झंडे लहराते हुए भारत विरोधी नारे लगाने जैसे दृश्य समाप्तप्राय हो गए | श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के साथ जन्माष्टमी की शोभायात्रा निर्बाध निकलने से भी ये एहसास जागा कि घाटी में भारत विरोधी ताकतों के हौसले पस्त हो चुके हैं | राजनीतिक नेतागण भी धमकी की बजाय चिकनी चुपड़ी बातें करने लग गये | लेकिन बीते कुछ दिनों में ही ऐसा लगने लगा कि सारे किये – कराये पर पानी फिर गया | पर्यटकों की आवाजाही रुकने से पूरे देश में ये संदेश फ़ैल गया कि कश्मीर घाटी बाहरी लोगों के लिए अब भी असुरक्षित ही है | अन्य राज्यों से आकर मजदूरी या खोमचे लगाकर पेट पालने वाले कुछ लोगों की बेवजह हत्या ने दहशत का दौर लौटने की पुष्टि कर दी | भले ही सुरक्षा बल आये दिन दो चार आतंकवादियों को घेरकर मारने में सफल हो रहे हों किन्तु ये कहा जा सकता है कि आतंकवादियों ने छोटी – छोटी घटनाओं को अंजाम देकर कश्मीर घाटी में लौटने की सोच रहे हिन्दुओं को भयग्रस्त करने के साथ ही स्थानीय जनता के मन में भी ये बात बिठाने का प्रयास किया कि वे धारा 370 हटाये जाने के बाद हुए बदलाव को स्थायी मानकर भारत विरोध की मानसिकता को त्यागने से दूर रहें | वे अपने मकसद में कितने कामयाब हुए इसका आकलन फिलहाल करना जल्दबाजी होगी लेकिन ताजा वारदातों से दहशत का जो वातावरण बना उसकी वजह से आतंकवादियों का मनोबल जरूर ऊंचा हुआ है | सबसे अहम बात ये है कि केंद्र सरकार ने धारा 370 हटाने के साथ ही घाटी में सामान्य स्थिति बनाने के लिए जितना कुछ किया वह गुड़ - गोबर होने जैसी स्थिति में आ गया | निश्चित रूप से ये स्थिति चिंताजनक है | केंद्र सरकार ने यही देखते हुए सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियों की बैठक कर घाटी में उभरे आतंकवाद के नए संस्करण के विरुद्ध निर्णायक जंग छेड़ने के संकेत दिए हैं | सीमावर्ती पुंछ इलाके से लोगों को हटाये जाने के फैसले से ये लग रहा है कि सुरक्षा बल किसी बड़े अभियान की तैयारी में जुट गए हैं | गृह मंत्री अमित शाह ने दो – तीन दिन जम्मू – कश्मीर में रहकर हालात का जायजा लेने का जो निर्णय लिया वह इस ओर इंगित कर रहा है कि हालात बेकाबू होने से पहले ही इस तरह के पुख्ता इंतजाम किये जाएंगे जिनसे आतंकवादियों की कमर तोड़ीं जा सके | ये जरूरी भी है क्योंकि जम्मू कश्मीर की भौगोलिक स्थिति संवेदनशील होने के साथ ही बहुत ही विकट है | आतंकवाद से आंतरिक सुरक्षा को उत्पन्न खतरे को स्थायी रूप से खत्म करना समय की मांग है क्योंकि ऐसा किये बिना कश्मीर घाटी में भारत विरोधी भावना को समय – समय पर पनपने से रोक पाना असम्भव होगा | केंद्र सरकार इस दिशा में क्या करने वाली है ये तो उसे ही पता होगा लेकिन जन आकांक्षा यही है कि स्थायी इलाज करने में देर नहीं करनी चाहिए | घाटी में चाहे कश्मीरी पंडित दोबारा बसाए जाएं या पूर्व सैनिक, लेकिन वहां जब तक जनसँख्या का असंतुलन रहेगा तब तक पाकिस्तान और चीन को गड़बड़ी फ़ैलाने का अवसर मिलेगा | एक बात तो प्रमाणित सत्य है कि कश्मीर में आतंकवाद को खाद – पानी सीमा पार से ही मिला करता है | इसलिए सुरक्षा बलों को दो मोर्चों पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाना पड़ेगा | सीमा पार जाकर आतंकवाद के अड्डे नष्ट करना साधारण काम नहीं है | लेकिन उनके आने के रास्ते अवरुद्ध करने का पुख्ता इंतजाम किया जा सकता है | इसी के साथ ही घाटी में आतंकवाद की जड़ों को खोद डालने की हरसंभव कोशिश करनी होगी जिससे वहां की जनता के मन में ये विश्वास पुख्ता हो सके कि आतंकवादी अपराजेय नहीं हैं | मौजूदा माहौल में एक बात उम्मीदें जगाने वाली है कि 1990 में जहां मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों को घाटी से भाग जाने की धमकी दी जा रही थी वहीं इस बार ये अपील की जा रही है कि कोई डर के कारण घाटी न छोड़े | भले ही ये दिखावे के लिए हो किन्तु इससे एक बात साबित होती है कि धारा 370 हटने के बाद आम कश्मीरी के मन में ये बात गहराई तक समा चुकी है कि राज्य की विशेष स्थिति लौटना अब दिवास्वप्न है | घाटी के युवाओं में भी आतंकवाद के साए से निकलकर अपना भविष्य बनाने की उत्कंठा पैदा हुई है | भारत सरकार को चाहिए वह कश्मीर से आतंकवाद को उखाड़ फेंकने के लिए इजरायल की कार्यप्रणाली अपनाये क्योंकि सांप का फन कुचले बिना उसे मरा हुआ समझना भूल होती है |
-रवीन्द्र वाजपेयी
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