Saturday 9 October 2021

क्या शिया नमाजी मुसलमान नहीं थे




अफगानिस्तान के कुन्दूज शहर की एक मस्जिद में जुमे की नमाज के दौरान हुए विस्फोट में लगभग 100 नमाजियों के मारे जाने की  खबर है | विस्फोट आत्मघाती हमले से होने का संदेह व्यक्त किया जा रहा है | मारे गये लोग शिया मुस्लिम थे और इस हमले के लिए आईएस ( इस्लामिक स्टेट) नामक संगठन को जिम्मेदार माना जा रहा है,  जो सुन्नी मुसलमानों का समर्थक है | अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता आईएस को हज़म नहीं  हो रही | सत्ता हस्तांतरण के दौरान काबुल हवाई अड्डे के बाहर हुए बम धमाकों में  भी उसी का हाथ था | ये भी माना जाता है कि उसकी  गतिविधियां पाकिस्तान से निर्देशित होती हैं जिन्हें इमरान सरकार से प्रश्रय और प्रोत्साहन मिलता है जो अफगानिस्तान में दोमुंही नीति पर चल रही   है | पहले तो उसने तालिबान लड़ाकों को अफगानिस्तान पर काबिज होने के लिए हर तरह की सहायता दी | यहाँ तक कि अनेक इलाकों में तो तालिबान की शक्ल में पाकिस्तानी सैनिक ही लड़ते रहे | लेकिन ज्योंहीं अमेरिका ने वहां से पलायन किया और सत्ता पर तालिबान बैठे त्योंही आईएस को तालिबान के विरुद्ध सक्रिय कर दिया | दरअसल इमरान सरकार तालिबान नेताओं की नीयत को लेकर आशंकित है जो पाकिस्तान के बड़े भूभाग को अफगानिस्तान का हिस्सा मानकर उसे वापिस लेना चाहते हैं | पाकिस्तान के पश्चिमी सीमान्त इलाकों में तालिबानी अड्डे पहले से ही बने हुए हैं जिन्हें खाली करवाना आज की तिथि में असंभव है | यही सोचकर उसने आईएस के रूप में एक मुसीबत तालिबानी सत्ता के लिए खड़ी कर दी है | हालाँकि तालिबान भी सुन्नी समर्थक हैं जिनके सत्ता में आते ही शिया आबादी में भय व्याप्त है | अनेक शियाओं की  ह्त्या के साथ ही उनके एक बड़े नेता की मूर्ति भी गिरा दी गयी | हजारा नामक शिया मुसलमानों को तो तालिबान काफ़िर मानते हुए गैर इस्लामी मानते हैं | हाल ही में शियाओं की उलेमा काउन्सिल ने तालिबान से सभी सम्प्रदायों के प्रति सद्भाव रखने की अपील भी की थी | ये देखते हुए गत दिवस शिया मस्जिद में हुए विस्फोट को अफगानिस्तान के बिगड़ते हालातों का ताजा प्रमाण कहा जा सकता है | इस घटना से अफगानिस्तान के पड़ोस में स्थित ईरान का नाराज होना स्वाभाविक है जो वैसे तो शिया मुसलमानों का सबसे बड़ा देश है किन्तु अमेरिका से  दुश्मनी की वजह से सुन्नी समर्थक तालिबान की वापिसी का पक्षधर रहा | गत दिवस हुई घटना के कारण दुनिया भर में फैले शिया मुसलमानों में गुस्सा और डर दोनों व्याप्त हैं क्योंकि  अफगानिस्तान के वर्तमान हालात पूरी तरह से अनिश्चित और तनावपूर्ण हैं | सत्ता मिलने के बाद भी तालिबान पूरी तरह अपनी सरकार नहीं बना सके हैं | उनके गुटीय झगड़े हिसंक रूप लेते रहते हैं | सरकार में शामिल कुछ बड़े नेताओं के जीवित रहने को लेकर अनिश्चतता बनी हुई है | कुछ हिस्सों में अभी तक कबीलाई सत्ता जारी है जो काबुल के अधीन होने के प्रति हिचक रखती है | इस माहौल में शिया मुसलमानों की मस्जिद में  जिस तरह से खून खराबा हुआ वह नए गृहयुद्ध की जमीन तैयार कर सकता है | इस घटना से  तालिबान की जीत का जश्न मना रहे दुनिया भर के मुसलमानों के सामने धर्मसंकट की स्थिति आ खड़ी हुई है | बेगुनाह शिया नमाजियों की नृशंस हत्या से ईरान की नाराजगी तालिबान को भारी पड़ सकती है | मध्य और पश्चिम एशिया के शिया बाहुल्य वाले  देश भी तालिबानी सत्ता के दौर में  शियाओं पर अत्याचारों को पसंद नहीं करेंगे और उस सूरत में खस्ता आर्थिक स्थिति से उबरना अफगानिस्तान के लिए मुश्किल हो जाएगा | अमेरिका  जैसी महाशक्ति को पलायन के लिए मजबूर करने में सफल होने के बाद से तालिबान के प्रति दुनिया भर के मुसलमानों के मन में प्रशंसा का भाव उत्पन्न हो गया था | उसकी कट्टर और आतंकवादी छवि के बावजूद इस्लाम के नाम पर उसे हाथों  – हाथ उठाते हुए दावा  किया जाने लगा कि अब तालिबान पहले जैसे क्रूर न होकर समन्वयवादी हैं | प्रारंभिक बयानों में उनकी तरफ से जिस तरह के आश्वासन दिए गये उनसे भी आशा का संचार हुआ था परन्तु जल्द  ही ये बात उजागर हो गई कि तालिबान के व्यवहार और नीतियों में लेशमात्र भी बदलाव नहीं आया | ये देखते हुए अफगानिस्तान को केवल इस्लामिक नहीं वरन सुन्नी इस्लामिक देश कहना ज्यादा सही होगा | आईएस को भले ही इस हादसे के लिए जिम्मेदार माना जावे लेकिन तालिबान भी तो शियाओं से उतनी ही घृणा करते हैं | कुल मिलाकर  मुसलमानों का आपसी संघर्ष मुस्लिम देशों की एकता में बाधक होने के साथ ही पश्चिम एशिया में युद्ध की आग को बुझने ही नहीं दे रहा | अफगानिस्तान में दो दशक बाद इस्लामी राज लौटा है ,  लेकिन पूत के पाँव पालने में नजर आने की कहावत अभी से चरितार्थ होने लगी है | हो सकता है आईएस ने जानबूझकर शियाओं को अपना निशाना बनाया हो जिससे तालिबान की छवि विश्व बिरादरी में खराब हो | पाकिस्तान भी आईएस को इसीलिये  आगे बढ़ा रहा है ताकि  अफगानिस्तान में आंतरिक उथल - पुथल बनी रहे और तालिबान अपना घर बचाने की चिंता में डूबे रहें | लेकिन इस्लाम को मानने वाले समझदार लोगों को इस बारे में विचार करना होगा कि क्या शिया संप्रदाय के लोग मुसलमान नहीं  हैं , जिन्हें नमाज पड़ते समय बेरहमी से मार दिया गया  | तालिबान सत्ता भले ही आईएस को कठघरे में खड़ा करते हुए अपनी चमड़ी बचाने की कोशिश करे किन्तु उसके अपने लड़ाके भी तो शिया मुसलमानों पर अमानुषिक अत्याचार करने में आगे – आगे रहते हैं | नमाज पढ़ने वालों की  सामूहिक हत्या सरीखे घृणित अपराध के कर्ताधर्ता अपने को मुसलमान भले कहते रहें किन्तु वे इंसान कहलाने के काबिल तो  नहीं हो सकते | मशहूर शायर निदा फाज़ली ने ऐसी ही किसी घटना पर व्यथित होकर लिखा था  :-

उठ – उठ के मस्जिदों से नमाजी चले गए , दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया |

- रवीन्द्र वाजपेयी
 

No comments:

Post a Comment