Wednesday 13 October 2021

लखीमपुर खीरी : इंसानियत विहीन सियासत सम्मानित नहीं हो सकती



लखीमपुर खीरी में गत दिवस हाल ही में मारे गये किसानों का उठावना संपन्न हुआ | इसमें कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा सहित अनेक राजनेता शरीक हुए किन्तु उन्हें किसानों ने मंच , माला और माइक से दूर ही रखा | इस आयोजन में तय हुआ कि मारे गये चार किसानों के  अस्थिकलश देश के हर जिले में  भेजे जायेंगे | राजनीतिक दल भी अपने नेताओं की मौत पर जन सहानुभूति बटोरने के लिए ऐसा करते रहे हैं | कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आन्दोलन के संदर्भ में इस तरह का निर्णय अस्वाभाविक नहीं कहा जाएगा क्योंकि हमारे देश में भावनाओं को भुनाकर जनसमर्थन हासिल करने का तरीका बहुत सामान्य  है | चूँकि किसानों का आन्दोलन पंजाब , हरियाणा , पश्चिमी उ.प्र और राजस्थान के अलावा दिल्ली की सीमा के आगे नहीं बढ़ पा रहा इसलिए लखीमपुर खीरी की घटना के सहारे उसका फैलाव करने की रणनीति  बनाई गई है |  जिस तरह से उक्त किसानों की मौत हुई वह बहुत ही नृशंस था | लेकिन किसान आन्दोलन के नेताओं को ये नहीं भूलना चाहिए कि उस घटना में कुछ  अन्य लोगों की भी हत्या उन लोगों द्वारा की गई थी  जो खून का बदला खून की मानसिकता के वशीभूत होकर हैवानियत पर उतारू हो गये | चूंकि शुरुवात किसानों की हत्या से हुई इसलिए उनके समर्थकों द्वारा की गई जवाबी हत्याओं का औचित्य साबित करने का प्रयास भी  किया गया  | लखीमपुर खीरी में संवेदना व्यक्त करने गये राजनेता भी किसानों के अलावा मारे गये अन्य पांच लोगों में शामिल एक पत्रकार के घर ही गये | ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि किसान और पत्रकार के अलावा जिन लोगों को बलवाइयों ने बेरहमी से पीटकर मार डाला क्या वे इन्सान नहीं थे और क्या उनके परिजन सांत्वना और सहानुभूति के हकदार नहीं थे ? स्मरणीय है श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हुए दंगे में निरपराध सिखों की हत्या के आरोप में कांग्रेस के अनेक नेताओं को अदालत ने सजा दी थी | उसी तर्ज पर लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के बाद प्रतिक्रियास्वरूप की गई बाकी  हत्याओं के आरोपियों को भी दंड दिया जाना जरूरी है | उन मृतकों के परिजनों के साथ ही भाजपा के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी इस बात को लेकर नाराजगी है कि उ.प्र सरकार के मंत्रियों सहित संगठन के नेताओं ने लखीमपुर खीरी आने के बावजूद उनके घरों में जाने की जरूरत नहीं समझी | इन मृतकों को समुचित मुआवजा और आश्रित को नौकरी आदि का आश्वासन भी संभवतः नहीं मिला | किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के अलावा विपक्ष के तमाम नेता केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए हैं लेकिन उनमें से किसी ने भी गैर किसानों को मारने वालों की पहिचान कर उन्हें सजा दिलवाने के बारे में कुछ नहीं कहा | इस दोहरे रवैये के कारण ही लखीमपुर खीरी और निकटवर्ती इलाकों में जातिगत भावनाएं उबाल पर हैं | सत्ता और विपक्ष दोनों का ये दायित्व है कि वे बलवे के दौरान जान गंवाने वाले सभी व्यक्तियों के प्रति एक जैसी  सहानुभूति प्रदर्शित करें | दुर्भाग्य से मौत को भी राजनीतिक रंग दिया जाने लगा है | इंदिरा जी की हत्या चूँकि उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा की गई थी इसलिए दिल्ली सहित देश के अनेक हिस्सों में हर सिख को हत्यारा मानकर उसके साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया | लखीमपुर खीरी में मारे गये सभी लोग किसी आन्दोलन या पार्टी का हिस्सा होने से पहले मनुष्य थे | इसलिए सभी मौतों के प्रति एक सामान सोच रखते हुए उनके परिजनों को ये एहसास करवाना जरूरी है कि  शासन , प्रशासन , समाज और राजनीतिक दल उनके शोक में सहभागी हैं | जैसी खबरें आ रही हैं उनके अनुसार लखीमपुर खीरी में मरने वालों के परिजनों को सांत्वना और सहायता देने  से ज्यादा प्रयास वोटों की फसल काटने का हो  रहा है | कांग्रेस , सपा , बसपा , अकाली और भाजपा इस बात का हिसाब लगाने में जुटे हैं कि उ.प्र , उत्तराखंड और पंजाब के  आगामी विधानसभा चुनाव में लखीमपुर खीरी को कैसे भुनाया जावे ? विपक्षी दलों को लगता है कि केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री का इस्तीफा होने से उन्हें चुनावी लाभ होगा | दूसरी तरफ भाजपा भी इस बात का आकलन कर रही है कि मंत्री को हटाने पर उनके सजातीय ब्राह्मण मतदाता नाराज तो नहीं होंगे | ये स्थिति वाकई शोचनीय है | राजनीति में भावनाओं का भी अपना महत्व है | जहाँ – जहाँ भी लोकतंत्र है वहां राजनीतिक नेता जनभावनाओं के अनुरूप रणनीति बनाया करते हैं | लेकिन आम जनता की मौतों का  भी राजनीतिक नफे – नुकसान के लिए उपयोग करना निश्चित रूप से दुखद है | लखीमपुर खीरी की  पूरी घटना निंदनीय है | सत्ता के मद में की गई हैवानियत के साथ ही बदले की आग में जलते हुए की गई हत्याएं एक जैसे अपराध हैं | इसीलिये किसी को कम या ज्यादा मान लेना एकपक्षीय होगा | जो लोग किसानों की मौत पर मातम मना रहे हैं उन्हें उस दिन जवाबी हिंसा का शिकार हुए अन्य लोगों के लिए भी आंसू बहाना चाहिए क्योंकि इंसानियत के बिना की जाने वाली सियासत  कभी भी सम्मान प्राप्त नहीं कर सकती |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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