Monday 11 October 2021

सौर ऊर्जा के बिना आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा नहीं होगा



कोरोना ग्रसित काफी मरीजों को बीमारी से उबरने के बाद भी स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है | इसे दवाइयों से होने वाली प्रतिक्रिया के अलावा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी से जोड़कर भी देखा जा सकता है | दरअसल कोरोना के इलाज को लेकर प्रारम्भिक स्थिति में चिकित्सा जगत काफी हद तक अनजान था जिसकी वजह से इलाज का प्रयोगात्मक तरीका अपनाया गया | जो दवाएं शुरुवाती तौर पर कारगर मानकर  दी जाती रहीं उन पर बाद में  अनुपयोगी  और नुकसानदेय मानकर रोक लगा दी गई | दुनिया भर में जो टीके खोजे गए उनकी प्रामाणिकता और प्रभावशीलता के बारे में अब तक भ्रम की स्थिति भी हुई है | कुछ टीकों को  अनेक देशों  द्वारा मान्यता नहीं दिए जाने से वहां जाने के इच्छुक लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है | कोरोना के आगमन को लगभग दो साल होने को आये किन्तु अभी तक दुनिया उसका स्रोत नहीं जान सकी है और न ही ये कहने की स्थिति है कि दवाओं और टीकों से उसकी पुनरावृत्ति को रोकना संभव हो गया है | अब तो  कहा जाने लगा है कि  हमें कोरोना के  साथ रहने की आदत  डालनी होगी | कहने का आशय ये है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद कोरोना ने ही पूरे विश्व को एक साथ प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित किया है | जिस तरह उस महायुद्ध के उपरांत विश्व के शक्ति संतुलन के साथ ही आर्थिक हालात बदले , उसी तरह की सम्भावना कोरोना के बाद उत्पन्न होने लगी है | बीते दो साल में वैश्विक अर्थव्यवस्था पूरी तरह हिल गई है |  आर्थिक दृष्टि  से सम्पन्न देश तक संकट में फंस गये हैं |  लॉक डाउन के कारण आयात – निर्यात में आई बाधा की वजह से कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित होने का असर उत्पादन पर पड़ने से अनेक आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया जिनमें दवा और चिकित्सा उपकरण भी हैं | इसी तरह ऑटोमोबाइल , इलेक्ट्रानिक्स , कप्म्यूटर के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले छोटे – छोटे उपकरण उपलब्ध न होने से  आपूर्ति पर विपरीत असर पड़ा  है जिस  वजह से कीमतें  भी  स्वाभविक रूप से बढ़ी हैं | लेकिन बीते कुछ दिनों से पूरी दुनिया जिस संकट से परेशान है वह है उर्जा अर्थात बिजली | कोयला आधारित ताप विद्युत गृहों में कोयले का भंडार  घटने के कारण बिजली की उपलब्धता कम होने से चीन और ब्रिटेन जैसे देशों तक में उसकी कटौती के हालात पैदा हो गये हैं | कोरोना के चलते कोयला उत्पादक देशों में काम बंद रहने से समुचित उत्खनन नहीं हो सका | कोरोना की दूसरी लहर के बाद औद्योगिक गतिविधियाँ एकाएक बढ़ने से बिजली की मांग में तो अप्रत्याशित वृद्धि होने लगी किन्तु कोयले का उत्पादन उस अनुपात में नहीं बढ़ने से आपूर्ति में रूकावट आ रही है | इस वजह से दुनिया के तमाम बड़े देशों में बिजली उत्पादन  प्रभावित हो रहा है | वैश्विक  अर्थव्यवस्था से अभिन्न रूप से जुड़ चुका भारत  भी इससे  अछूता नहीं है | हालाँकि पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों को धीरे – धीरे बंद किया जा रहा है | लेकिन अभी वह स्थिति भी नहीं आई जिसमें विद्युत उत्पादन के वैकल्पिक स्रोत के तौर पर पनबिजली , पवन चक्की और सौर ऊर्जा से काम चल सके | यद्यपि अनेक देश सौर ऊर्जा के जरिये बिजली उत्पादन में महारत हासिल करते हुए अपनी जरूरत से ज्यादा विद्युत् उत्पादन कर रहे हैं | लेकिन भारत सरीखे विशाल देश में अभी सौर उर्जा के साथ ही पवन चक्की द्वारा बिजली उत्पादन इस मात्रा में नहीं पहुँच सका जहां वह कोयले से बनने वाली बिजली को पूरी तरह विदा कह सके | यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों से समूचे भारत में बिजली संकट पैदा हो गया है | ताप विद्युत संयंत्रों के पास कुछ ही दिनों का कोयला शेष होने से भारी बिजली कटौती की आशंका बढ़ती जा रही है | यद्यपि सरकार ये भरोसा दिला रही है कि पर्याप्त कोयले का प्रबंध कर लिया जावेगा जिससे आम नागरिकों , किसानों और उद्योगपतियों को परेशानी नहीं होगी  किन्तु वस्तुस्थिति ये है कि कोयले की कमी से बिजली उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होने जा रहा है | इस संकट के लिए सरकार कितनी दोषी है ये फ़िलहाल कह पाना जल्दबाजी होगी | जैसी जानकारी आ रही है  उसके अनुसार कोयला निर्यातक देश भी कोरोना काल में अपनी क्षमतानुरूप उत्पादन नहीं कर सके और  भारत भी इससे अछूता नहीं रहा | अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ़्तार के कारण भी  कोयला उत्खनन कम हुआ था | हालांकि कोरोना की दूसरी लहर के कमजोर पड़ते ही कारोबारी जगत की  सक्रियता तो बढ़ी किन्तु बारिश के मौसम में कोयला खदानों में पानी  भर जाने से उत्खनन प्रभावित हुआ जिसके कारण विद्युत संयंत्रों की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही | ऐसे में  जिन प्रदेशों में जरूरत से ज्यादा बिजली बना करती थी वे भी कटौती के लिए मजबूर हो चले हैं | इस संकट से  कच्चे तेल की  मांग भी बढ़ने लगी और  देखते – देखते उसके दाम भी आसमान छूने लगे | इस तरह भारत के लोगों को दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है | भले ही राज्य और केंद्र दोनों ये आश्वासन दे रहे हों कि कोयले के आपूर्ति पूर्ववत हो जायेगी तथा बिजली का संकट नहीं होने दिया जावेगा लेकिन इससे अलग हटकर देखें तो भारत जैसे देश में साल भर पर्याप्त धूप रहने के बावजूद सौर उर्जा से बिजली बनाने का काम काफी पिछड़ गया | इसकी प्रमुख वजह देश में उसके उपकरण नहीं बनना भी है | लेकिन इस दिशा में जैसे प्रयास सरकारी और निजी  क्षेत्र द्वारा किये जाने चाहिए थे वे नहीं हुए | भले ही सरकार ने सौर ऊर्जा संयंत्र लगवाने पर सब्सिडी की व्यवस्था बनाई किन्तु उसके साजो – सामान का देश में उत्पादन हो सके इस दिशा में पर्याप्त कोशिशें नहीं हुई |  मौजूदा संकट को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए वे सौर उर्जा के अधिकतम उपयोग की नीति बनाकर उसे युद्धस्तर पर अमल में लाने की कार्ययोजना बनाएं | कोरोना के बाद की दुनिया निश्चित तौर पर पहले से अलग और बेहतर रहेगी | भारत के लिए आने वाले समय में अनंत  संभावनाएं हैं जिन्हें भुनाने के लिए हमें सौर उर्जा के क्षेत्र में पेशेवर सोच के साथ आगे बढ़ना होगा | संतोष का विषय है कि देश के दिग्गज उद्योगपति इस दिशा में सोचने लगे  हैं | समय आ गया है जब भारत में राजमार्गों के  कायाकल्प की तरह से ही सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी भगीरथी प्रयास किये जाएँ | यदि 21 वीं सदी को भारत की बनाना है तो सौर ऊर्जा के समुचित उपयोग में दक्षता हासिल करना जरूरी है क्योंकि  आत्मनिर्भर भारत का सपना उसके बिना पूरा नहीं हो सकेगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment