Monday 25 October 2021

लोकतंत्र को टी - ट्वेंटी क्रिकेट बनने से रोकना जरूरी



म.प्र में चार विधानसभा और एक लोकसभा सीट के लिए हो रहे उपचुनाव के लिए प्रचार कार्य जोरों पर है |  भाजपा से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित प्रदेश और केंद्र सरकार के अनेक मंत्रियों ने मोर्चा संभाल रखा है जबकि कांग्रेस की कमान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के अलावा अन्य प्रादेशिक नेताओं के हाथ  है | जातीय समीकरण बिठाने की कोशिश दोनों पार्टियों की तरफ से हो रही है जिसकी शुरुवात प्रत्याशी चयन से ही हो चुकी थी | चुनावी हलचल प्रारंभ होते ही नेताओं के पाला बदलने का सिलसिला  शुरू हो गया | भाजपा ने तो कांग्रेस से आईं महिला नेत्री को ही विधानसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया जो पहले भी उसी सीट से विधायक रह चुकी थीं | एक जमाने में अपने संगठन कौशल और समर्पित कार्यकर्ताओं के बलबूते मुकाबला करने के लिए प्रसिद्ध  भाजपा को भी चाहे – अनचाहे चुनाव में जाति के महत्व को स्वीकार करना पड़ रहा है | जिसका ताजा प्रमाण गत दिवस खंडवा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली बड़वाह विधानसभा सीट के कांग्रेस विधायक सचिन बिरला के भाजपा प्रवेश से मिला |  2018 में पहली बार विधानसभा के लिए चुने गये श्री बिरला के अनुसार कमलनाथ सरकार में भी उनकी सुनवाई नहीं होती थी जिससे क्षेत्र के विकास कार्य नहीं हो सके | दोबारा भाजपा की सत्ता बनने के बाद विपक्ष में होने से वे अलग – थलग पड़  गये और क्षेत्रीय विकास के लिए आखिर उन्होंने भाजपा में आने का निर्णय लिया | किसी जनप्रतिनिधि का पार्टी बदलना कानूनन अपराध नहीं है | वैचारिक टकराव और मतभेद के नाम पर भी नेता और जनप्रतिनिधि दलबदल करते रहते हैं | गत वर्ष म.प्र में कांग्रेस के लगभग दो दर्जन विधायकों ने थोक के भाव पाला बदलकर कमलनाथ सरकार गिरवा दी थी  | उस मुहिम का नेतृत्व करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद खुद को पुनर्स्थापित करने के लिए हाथ – पाँव मार रहे थे | विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस के चुनाव संयोजक होने से मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी रहे किन्तु कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जुगलबंदी  ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया | उसके बाद श्री  सिंधिया की नजर राज्यसभा सीट पर थी  लेकिन यहाँ भी दिग्विजय सिंह की चालबाजी से  उनका खेल खराब होने लगा तब उन्होंने बगावत की और प्रदेश में भाजपा सरकार बनवाकर अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित कर लिया | उस कारण 28 उपचुनाव करवाने पड़े | अधिकतर दलबदलू विधायक जीतकर शिवराज सरकार में भी मंत्री बन बैठे वहीं ज्योतिरादित्य को केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन विभाग का मंत्री पद नसीब हो गया | उन उपचुनावों के दौरान ही दमोह के कांग्रेस विधायक ने भाजपा का दामन थामकर एक और उपचुनाव का रास्ता खोल दिया लेकिन उसमें भाजपा को करारी हार झेलनी  पड़ी | दमोह का सन्देश ये था कि आम जनता अकारण किये दलबदल को पसंद नहीं करती और ये भी कि पार्टी के कार्यकर्ता और नेता बाहर से आये व्यक्ति को आसानी से स्वीकार नहीं करते | फिलहाल जो उपचुनाव हो रहे हैं उनका कारण पिछले चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि की मृत्यु हो जाना है | लेकिन उसी दौरान कांग्रेस विधायक श्री बिरला का भाजपा में आ जाना चौंकाने वाला है | विशेष रूप से इसलिए भी क्योंकि उन्होंने  भाजपा में आने के पीछे कोई सैद्धांतिक कारण न बताकर क्षेत्रीय विकास करवाना बताया है | लेकिन जैसी कि जानकारी आई है उसके अनुसार बड़वाह विधायक के हृदय परिवर्तन के पीछे भी जातीय समीकरण हैं | खंडवा संसदीय सीट में गुर्जर जाति के मतदाताओं की काफी संख्या है | कांग्रेस उनको लुभाने के लिए राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को चुनाव प्रचार में उतारने का संकेत दे चुकी थी | भाजपा ने इसके पहले ही श्री बिरला को अपनी तरफ खींच लिया जो गुर्जर जाति के ही हैं |  इससे भाजपा को कितना चुनावी लाभ होगा ये अभी कह पाना कठिन है लेकिन एक बात तय है कि अगले छह महीने में प्रदेश को एक और उपचुनाव झेलना होगा | भाजपा ने श्री बिरला से जो सौदेबाजी की होगी उसमें उनको मंत्री पद देने  का लालीपॉप भी हो सकता है | मुख्यमंत्री चाहें तो उनको उपचुनाव के पहले भी मंत्री बना सकते हैं ताकि क्षेत्र में उनकी वजनदारी बढ़ जाये और वे आसानी से दोबारा जीत सकें  | लेकिन जनप्रतिनिधि के इस तरह पाला बदलने से होने वाले उपचुनाव सरकार और जनता दोनों के लिए  सिरदर्द का रूप ले चुके हैं | 30 अक्टूबर को ये उपचुनाव संपन्न होते ही मुख्यमंत्री बड़वाह विधानसभा सीट के उपचुनाव पर ध्यान केन्द्रित करेंगे | हो सकता है कुछ और उपचुनावों की परिस्थिति भी उत्पन्न हो जाए | संवैधानिक प्रावधान के अनुसार रिक्त हुई सीट  साधारण हालातों में छह माह के भीतर भरी जानी चाहिए | लेकिन उपचुनावों के कारण सरकार के दैनंदिन कार्य प्रभावित होते हैं | मसलन इन दिनों पूरी प्रदेश सरकार चुनाव प्रचार में लगी है | मंत्रालय में बैठने के बजाय मंत्रीगण चुनाव मैदान में मोर्चे पर हैं | नौकरशाही हुक्मरानों के न रहने से आराम की मुद्रा में है | जैसे ही ये मुकाबला संपन्न होगा अगली  बिसात बिछने लगेगी | मुख्यमंत्री श्री चौहान को पहली बार प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद से लगातार  उपचुनाव रूपी चुनातैयों का सामना  करना पड़ा | हालाँकि वे बहुत मेहनती नेता हैं किन्तु चुनाव में उलझे रहने का असर शासन – प्रशासन पर भी पड़ता है | हमारे देश में दलबदल को रोकने के लिए बने कानून के कारण यदि निश्चित संख्या से कम सांसद – विधायक  पार्टी बदलते हैं तब उनको त्यागपत्र देकर उपचुनाव लड़ना पड़ता है | लेकिन इसकी वजह से होने वाले नुकसान के मद्देनजर ये आवाज उठने लगी है कि जनप्रतिनिधि की मृत्यु ,  दलबदल या अन्य किसी वजह से त्यागपत्र देने के बाद बजाय उपचुनाव करवाने के सीट को अगले चुनाव तक रिक्त रखा जावे | रही बात उस क्षेत्र के प्रतिनिधित्व की तो जनप्रतिनिधि की गैर मौजूदगी में जिला प्रशासन उस भूमिका का निर्वहन करे | किसी राज्य की विधानसभा भंग होने पर राष्ट्रपति शासन के दौरान भी प्रशासन ही जनप्रतिनिधि से जुड़े कार्य करता है | हालाँकि राजनीतिक दल इस सुझाव को सिरे से नकार देंगे किन्तु लोकतंत्र की गम्भीरता और गरिमा को बनाये रखने के लिए जरूरी है कि चुनावों को बच्चों का खेल बनने से रोका जावे | लोकतंत्र कोई टी – ट्वेंटी क्रिकेट मैच नहीं है जिसे कहीं भी और कभी भी महज इसलिए आयोजित किया जावे क्योंकि उससे कुछ लोगों के निजी हित जुड़े हुए हैं |  

- रवीन्द्र वाजपेयी



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