Thursday 7 October 2021

बिंदरू की हत्या कश्मीरी पंडितों को रोकने की साजिश का हिस्सा है




श्रीनगर में गत दिवस एक प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडित दवा व्यवसायी माखनलाल बिंदरू की ह्त्या को आतंकवादियों की हताशा से जोड़कर देखा जा रहा है | आतंकवादियों ने उनके प्रतिष्ठान में घुसकर उन्हें गोली मार दी | 1990 में कश्मीरी पंडितों के सामूहिक पलायन के भयावह दौर में भी उन्होंने श्रीनगर नहीं छोड़ा | बीते कुछ समय से सुरक्षा बल लगातार आतंकवादियों को ढूंढकर मार रहे हैं | सीमा पार से घुसपैठ में भी कमी आई है | इस कारण घाटी में बचे - खुचे अलगाववादी बौखलाहट में हैं | उनको सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर है कि आम जनता भी शान्ति के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है | इसका सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि घाटी में इस साल पर्यटकों की संख्या ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए | कश्मीरी युवाओं को भी ये बात समझ में आने लगी है कि उनका भविष्य अलगाववादियों के साथ रहने से अंधकारमय हो जाएगा और जिस बन्दूक को उठाकर वे निर्दोष लोगों की हत्या करेंगे वही एक दिन उनकी मौत का जरिया बनेगी | जनजीवन सामान्य होने से अलगाववादियों के आश्रयस्थल भी लगातार कम होते जा रहे हैं | पंचायत चुनाव निर्विघ्न संपन्न होने के बाद घाटी के भीतरी हिस्सों में पहली बार विकास के छोटे – छोटे काम शुरू हो सके जिससे वहां के लोग आश्चर्यचकित हैं | आतंकवाद से दिखावटी दूरी बनाये रखते हुए अलगाववाद और पाकिस्तान परस्ती का प्रतीक बन चुकी हुर्रियत कांफ्रेंस की कमर भी टूट चुकी है | उसके नेताओं पर नियन्त्रण लगाये जाने का असर ये हुआ कि सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने और आतंकवादियों के जनाजे में जनसैलाब के उमड़ने जैसे दृश्य अब नहीं दिखाई देते | जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने जिस कुशलता से घाटी के जिम्मेदार लोगों से सीधे संवाद का तरीका अपनाया उससे भी माहौल सकारात्मक होने लगा है | जैसी जानकारी आ रही है उसके अनुसार घाटी से भगाये गये कश्मीरी पंडितों को दोबारा वहां बसाने की तैयारियां भी प्रशासनिक स्त्तर पर चल रही हैं | हालाँकि अलगाववाद के पोषक गुटों को उनकी वापिसी किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं है | कुछ बड़े नेता तो इससे घाटी में जनसँख्या का संतुलन बिगड़ने की आशंका भी व्यक्त कर चुके हैं | अतीत में सुरक्षा के लिहाज से कश्मीरी पंडितों को वापिस लाकर उनके लिए अलग आवासीय क्षेत्र बनाने की योजना बनी तब फारुख अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने भी उसका ये कहते हुए विरोध किया था कि इससे सामुदायिक भेदभाव और बढ़ेगा | लेकिन दूसरी तरफ ये भी कहा जाता रहा कि बिना पंडितों के लौटे कश्मीर अधूरा है | मोदी सरकार द्वारा धारा 370 को हटा देने के बाद से जिस तेजी से हालात बदले उनमें कश्मीरी पंडितों की वापिसी के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल होने लगी थी. | ऐसा लगता है आतंकवादी इसी कारण चिंतित हैं और उसी वजह से दवा व्यवसायी माखनलाल बिंदरू की ह्त्या की गई जो आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के समय भी घाटी छोड़कर नहीं गये | निश्चित तौर पर ये बहुत ही निंदनीय कृत्य है | पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने यद्यपि उनके घर जाकर इसे अमानवीय कृत्य तो बता दिया लेकिन कश्मीरी पंडितों की वापिसी को लेकर वे और उनकी पार्टी दोगलापन दिखाते आये हैं | यही हाल महबूबा मुफ्ती का भी है | संदर्भित ह्त्या दरअसल कश्मीरी पंडितों की वापिसी को रोकने की साजिश का ही हिस्सा है | हालाँकि आतंकवादी अब पहले जैसे ताकतवर तो नहीं लगते किन्तु स्व. बिंदरू के साथ जो हुआ उसके कारण घाटी में लौटने के इच्छुक पंडितों का हौसला कमजोर अवश्य पड़ सकता है और यही आतंकवादी चाहते भी हैं | स्व. बिंदरू की बेटी ने अपने पिता की हत्या पर कहा कि तुम्हारे हाथ में बन्दूक है तो हमारे पास पिता द्वारा दिलाई गई शिक्षा है | ये बात सर्वविदित है कि कश्मीरी पंडित घाटी के सर्वाधिक शिक्षित लोगों में होते थे | सरकारी नौकरियों के अलावा व्यवसाय में भी वे अग्रणी थे | इसलिए उनकी वापिसी अलगावादियों को रास नहीं आयेगी | श्रीनगर के साहसिक दवा व्यवसायी की हत्या भी इसी कारण की गयी ताकि देश के बाकी हिस्सों में जा बसे पंडित वापिस लौटने की हिम्मत ही न कर पाएं | ऐसे में जम्मू कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार को माकूल कदम उठाने होंगे | जिस तरह धारा 370 को खत्म करना एक चुनौती थी ठीक वैसे ही कश्मीरी पंडितों का घाटी में पुनर्वास भी बहुत बड़ा काम है जिसे किये बिना केंद्र सरकार की पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा | सरकार को चाहिए उनकी सुरक्षा और सुविधाओं का सामुचित प्रबंध करे | कश्मीरी पंडित हमारी संस्कृति के संवाहक रहे हैं | देश के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरु भी इसी समुदाय से थे और उनके प्रपौत्र राहुल गांधी भी अपने को सारस्वत गोत्र धारी कश्मीरी ब्राह्मण बताते हैं | बीते कुछ समय से घाटी में रहने वाले हिन्दुओं का मनोबल बढ़ा है | जन्माष्टमी पर निकली शोभा यात्रा के अलावा स्वाधीनता दिवस पर श्रीनगर के लालचौक में पाकिस्तानी ध्वज के बजाय तिरंगा फहराया जाना राष्ट्रवादी भावनाओं के मजबूत होने का प्रमाण है जिसे अलगाववादी पचा नहीं पा रहे और इसीलिये बीच – बीच में भय का वातावरण बनाने का काम करते हैं | लेकिन माखनलाल बिंदरू की हत्या से घबराए बिना केंद्र और राज्य प्रशासन को कश्मीरी पंडितों की घर वापिसी की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए ताकि धारा 370 हटाये जाने का उद्देश्य पूरा हो सके |

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment