Tuesday 12 October 2021

वोटों के लिए सिखों को मुख्यधारा से अलग करना खतरनाक होगा



उ.प्र में हुई लखीमपुर खीरी की घटना निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण थी  जिसमें चार किसानों के अलावा पांच अन्य लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा | किसानों को तो तेज गति से आते हुए वाहनों ने कुचल डाला जबकि बाकी  को क्रोधित भीड़ ने पीटकर मार डाला  | उस हादसे की देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई | चूँकि किसानों की मौत के लिए केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री के बेटे को दोषी माना गया इसलिए राजनीति भी जमकर चली जिससे कुछ दिनों तक लखीमपुर खीरी और आसपास का इलाका राजनीतिक नेताओं के आवागमन का साक्षी बना रहा | चूंकि  हमारे देश में ये सब होता रहता है इसलिए किसी को इस पर आश्चर्य नहीं हुआ किन्तु जैसी जानकारी आई है उसके अनुसार कुछ लोग इस घटना को दो सम्प्रदायों के बीच का विवाद बताकर जहर फ़ैलाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं  | हालाँकि मंत्री पुत्र की गिरफ्तारी में हुए विलम्ब से राजनीतिक बिरादरी को शोर मचाने का पर्याप्त अवसर मिला गया किन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खुद होकर संज्ञान लेने के बाद कानूनी प्रक्रिया तेज हो गई और दोनों पक्षों के अनेक  आरोपी पकड़े जाकर जांच भी शुरू कर दी गयी है | हालांकि जिस इलाके में उक्त घटना हुई वहां पूरी तरह से शांति व्याप्त है लेकिन राजनेता जैसी  चालें चल रहे हैं उसकी वजह से ये आशंका है कि किसान आन्दोलन की तरह ये घटना भी एक राज्य और समुदाय से न जुड़ जाए | स्मरणीय है लखीमपुर खीरी के अलावा उ.प्र में तराई के हल्दवानी और पीलीभीत  जिलों में सिखों की काफी आबादी है | देश विभाजन के समय आये अनेक सिख शरणार्थियों को तराई इलाके में खेती हेतु भूमि दी गई थी | जिन्होंने अपने परिश्रम से उस इलाके को चमन बना दिया | लेकिन आज तक इस क्षेत्र में कभी सिखों को लेकर कोई विवाद नहीं देखने मिला | भले ही पंजाब में खलिस्तानी आतंक के समय जरूर तराई क्षेत्र में कुछ घटनाएँ हुईं पर  वहां  की आग से यहाँ का सिख समुदाय अछूता रहा | लेकिन लखीमपुर खीरी में मारे गये अधिकतर किसान चूंकि सिख थे इसलिए उनके बहाने पंजाब में सिखों को इस बात के लिए बरगलाया जा रहा है कि उ.प्र में सिखों पर अत्याचार हो रहे हैं | इस घटना को किसान आन्दोलन से सम्बद्ध करते हुए वहां  ये प्रचार भी किया जा रहा है कि केंद्र और उ.प्र  सरकार  सिख  विरोधी है | उ.प्र में तो एक – दो इलाके छोड़कर सिख  मतदाता उतने प्रभावशाली नहीं हैं लेकिन पंजाब में इसका उल्टा है जहाँ की पूरी राजनीति उनके नियन्त्रण में है | ये परम संतोष का विषय है कि खालिस्तानी आतंक का  पंजाब के सिख समुदाय ने बड़ी बहादुरी से सामना करते हुए अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया था | अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुई सैन्य कार्रवाई और उसके बाद श्रीमती इंदिरा गांधी की ह्त्या  के बाद दिल्ली में हुए सिखों के कत्ल ए आम से उत्पन्न कटुता भी जल्द भुला दी गई और कालान्तर में  सिख समुदाय ने पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनवाने में संकोच नहीं किया | ये बात सच है कि खालिस्तान के बीज अभी भी यहाँ – वहां बिखरे पड़े हैं  किन्तु सिख समुदाय ने उनको पनपने नहीं देता | किसान आन्दोलन में भी खलिस्तान समर्थक तत्वों ने घुसपैठ की थी किन्तु उन्हें ज्यादा महत्व नहीं मिला | बाकी किसानों ने भी जल्द उनके मंसूबों को भांप लिया | लेकिन लखीमपुर खीरी की घटना में अनेक सिख युवक जरनैल सिंह भिंडरावाले की फोटो वाली  जर्सी पहिने हिंसा करते दिखे और बाद में कुछ नेता पंजाब जाकर सिखों को भड़काने में जुटे हुए हैं | गत दिवस महाराष्ट्र में लखीमपुर खीरी की घटना के विरोध में सरकार  प्रायोजित बंद के दौरान जिस तरह से जबरदस्ती की गई उससे ये संकेत मिला है कि सियासत के सौदागर चिंगारी को आग में बदलने की फिराक में हैं | उल्लेखनीय है सरकार में एक साथ रहते हुए  भी जहाँ शिवसेना और शरद पवार की पार्टी रांकापा एक साथ नजर आईं वहीं कांग्रेस ने अपनी खिचड़ी अलग से पकाई |  संदर्भित घटना के इतने दिनों बाद सैकड़ों किमी दूर किसी राज्य में सरकार समर्थित बंद का औचित्य समझ से परे है | अनेक जानकार इस बारे में चिंता व्यक्त कर चुके हैं कि देश भर में सिखों को भड़काने का षडयंत्र रचा जा रहा है | यद्यपि इसके पीछे पंजाब के आगामी चुनाव हैं लेकिन इस आशंका को पूरी तरह नष्ट  करना जरूरी है | महाराष्ट्र में तो हाल – फिलहाल चुनाव होना नहीं है इसलिए वहां का  बंद लोगों की परेशानी का सबब बन गया | देखा - देखी कुछ और राज्यों में भी इस तरह के आयोजन हो सकते हैं लेकिन राजनीति चलाने वालों को ये ध्यान रखना चाहिए कि वे जाने – अनजाने सिख समुदाय को मुख्य धारा से अलग  करने का खतरनाक खेल न खेलें | पंजाब में रहने वाले सभी सिख एक ही विचारधारा या मानसिकता के नहीं हैं | भले ही उन पर पंजाब का ठप्पा लगा हो लेकिन आज की स्थिति में ये समुदाय देश के हर हिस्से में है | ऐसे में ये निहायत जरूरी है कि नब्बे के दशक में उनको लेकर बनाई गई अवधारणा को दोहराने से बचा जाए क्योंकि चुनाव तो आते – जाते रहते हैं किन्तु देश की एकता के साथ छेड़छाड़ किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगी | लखीमपुर खीरी में जो हुआ उसको उपेक्षित तो नहीं  किया जा सकता किन्तु उस बहाने अन्य  राज्यों में भी सद्भाव बिगाड़ने का  प्रयास  बेहद नुकसानदेय है | लखीमपुर खीरी  की  अपराधिक घटना के दोषियों को कड़ी सजा मिलनी ही  चाहिए , चाहे वे किसानों को कुचलने वाले हों या फिर बाकी लोगों को पीटकर मार डालने वाले बलवाई | राजनेताओं को उस आग में जितनी रोटी सेकनी थी उतनी वे सेंक चुके है | इसके आगे वे ऐसा ही करेंगे तो रोटी और उनके हाथ दोनों जलने वाली स्थिति बन जायेगी | ऐसी ही हरकतें नागरिकता संशोधन कानून के विरोध और किसान आन्दोलन को लेकर भी हुईं जिनके कारण दोनों ही पटरी से उतर गये | 21 वीं सदी में हमारा देश बहुत सारे बदलावों का गवाह बन रहा है लेकिन  राजनीति वोटों के मकड़जाल से निकल नहीं पा रही | तभी तो लखीमपुर खीरी में जा – जाकर आंसू बहाने वालों में से किसी ने भी कश्मीर में मारे गये लोगों के परिजनों को सांत्वना और सहायता देने के बारे में नहीं सोचा |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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