Thursday 21 October 2021

भ्रष्टाचार मुक्त भारत की शुरुवात भाजपा शासित राज्यों से करें प्रधानमंत्री



प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से जब कुछ भी बोलते हैं तो उसे सरकार की आवाज माना जाता है | उस दृष्टि से गत दिवस नरेंद्र मोदी ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग ( सीवीसी ) और केन्द्रीय जांच ब्यूरो ( सीबीआई ) के अधिकारियों के  सम्मलेन को संबोधित करते हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध सम्पूर्ण असहनशीलता की नीति अपनाने के साथ ही ये भी  कहा कि इन एजेंसियों  का काम किसी को डराने का नहीं अपितु लोगों के मन से डर निकालना है | लेकिन उनके उद्बोधन की सबसे महत्वपूर्ण बात  ये थी कि बीते कुछ वर्षों में उनकी सरकार लोगों में ये विश्वास जगाने में सफल रही है कि भ्रष्टाचार पर रोक लगना संभव है और नया  भारत भ्रष्टाचार को व्यवस्था का हिस्सा मानने की मानसिकता को जारी रखने के लिए तैयार नहीं है | श्री मोदी की छवि एक साफ – सुथरे नेता की रही है | उनकी नीतियों की आलोचना भले होती हो लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उन्हें ईमानदार माना जाता है | उनके पूर्ववर्ती डा.मनमोहन सिंह भी निजी तौर पर भ्रष्टाचार से दूर थे लेकिन उनके शासनकाल में  अनेक घपले और घोटाले होने से  सरकार की छवि बहुत खराब हुई | जहां तक बात  श्री मोदी की है तो उन्होंने केन्द्रीय स्तर पर व्यवस्थाजनित भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए काफी कदम उठाये लेकिन केन्द्रीय सचिवालय को ही देश नहीं माना जा सकता | प्रधानमन्त्री का ये कहना पूरी तरह सही है कि नया भारत  भ्रष्टाचार को व्यवस्था का हिस्सा मानने तैयार नहीं है किन्तु  इस आशावाद को वास्तविकता में बदलने के हालात निचले स्तर पर कहीं भी नजर नहीं आते | उनका ये दावा कि लोगों में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के बारे में विश्वास जागा है , उनके पास पहुंचाई जा  रही सूचनाओं और आंकड़ों पर आधारित हो सकता है परन्तु  ये जमीनी सच्चाई नहीं है | मोदी जी ने सत्ता सँभालते ही केन्द्रीय सचिवालय की  व्यवस्था में तो काफी  सुधार और बदलाव कर दिए | जैसा सुनाई देता है उसके अनुसार मंत्रीमंडल के सदस्यों पर भी पैनी निगाह रखी जाती है जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाईश नहीं रहती लेकिन भाजपा के भीतर भी ये चर्चा आम है कि  मंत्रियों को स्वतंत्र होकर काम  करने के अवसर ही नहीं दिए जाते और सारे महत्वपूर्ण फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से ही होते हैं | केन्द्रीय सचिवालय के अधिकारियों के बारे में भी ये कहा जाता है कि वे  विभागीय मंत्री की बजाय प्रधानमंत्री  कार्यालय से निर्देशित होते हैं | ऐसे में श्री मोदी के मन में ये विश्वास होना स्वाभाविक है कि उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार नामक अमरबेल की जड़ों में मठा डालने का काम कर डाला | लेकिन वास्तविकता के धरातल पर उतरकर देखें तो डिजिटल तकनीक के प्रचलन और अनेक क्षेत्रों में पारदर्शी व्यवस्था लागू होने के बावजूद आम जनता  के मन से ये विश्वास दूर नहीं  किया जा सका कि बिना भ्रष्टाचार के सरकारी विभाग से जुड़े हुए काम संपन्न हो सकेंगे | जहाँ तक बात सीवीसी और सीबीआई की है तो इनके बारे में भी  ये अवधारणा  नहीं बदली  जा सकी कि वे  पूरी तरह स्वायत्त हैं | इनका उपयोग डराने के लिए नहीं होना चाहिए , ये बात सैद्धांतिक तौर पर तो पूरी तरह सही है लेकिन सरकार चाहे किसी की रहे उक्त जाँच एजेंसियां हुक्मरानों के इशारे पर नाचने मजबूर होती हैं | और फिर जब सीबीआई में राज्यों की  पुलिस के अधिकारी ही प्रतिनियुक्ति पर जाते हों तब उसे पूरी तरह पाक - साफ होने का प्रमाणपत्र देना अतिशयोक्ति होगी | जहां तक  तक सीवीसी का प्रश्न है तो उसकी कार्यप्रणाली पर भी  उँगलियां उठती रही हैं | ऐसे में प्रधानमंत्री के उदगार रस्मी भाषण से अधिक कुछ नहीं है | सच्चाई ये है कि भ्रष्टाचार दिल्ली से लेकर ग्राम पंचायत तक बदस्तूर फैला हुआ है | महंगाई के साथ ही उसके दाम भी बढ़ते जा रहे हैं और राजनीति इस बुराई को सहयोग और संरक्षण देने में सबसे आगे है | मोदी जी की अपनी पार्टी की जिन राज्यों में सरकारें हैं उनको भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं कहा जा सकता | ऐसे में उसको व्यवस्था का अंग नहीं मानने जैसी धारणा  खयाली पुलाव पकाने जैसा ही है | सरकारी दफ्तरों के बारे में सर्वविदित है कि उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार को मिटाए बिना व्यवस्था को शुद्ध नहीं किया जा सकता | अब तो सरकारी मुलाजिम भी घूस लेते समय साफ़ कहता है कि ऊपर भी देना पड़ता है | ऐसे में प्रधानमंत्री को चाहिये कि वे उन मूलभूत कारणों का पता करवाएं जिनके कारण भ्रष्टाचार निचले स्तर तक फ़ैल गया | भ्रष्टाचार व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बनते – बनते शिष्टाचार कैसे बन गया ये गहन  विश्लेषण का विषय है | प्रधानमंत्री पार्टी संगठन का कार्य करते – करते अचानक  मुख्यमंत्री बने थे | उस समय तक उनको प्रशासन का अनुभव भी नहीं था | लेकिन इस बात की तारीफ करनी होगी कि उन पर  भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा जिसके कारण गुजरात विकास का प्रतीक बन गया | ये कहना गलत न होगा कि प्रधानमंत्री बनने में बतौर मुख्यमंत्री उनके कार्यकाल का बड़ा योगदान था | लेकिन  भारत का प्रधानमंत्री बनने के बावजूद वे राज्यों की शासन व्यवस्था को एक सीमा के बाद प्रभावित नहीं कर सकते | राजनीतिक मतभेदों का स्तर इस हद तक गिर गया  है कि अनेक राज्यों ने  केंद्र सरकार से वैचारिक मतभेद  के कारण सीबीआई को अपने यहाँ कार्य करने से रोक दिया है | ये सब देखते हुए प्रधानमंत्री ने  भ्रष्टाचार के बारे में जो कुछ कहा वह केवल भाषण सीमित न रहे यह चिन्तन का विषय है क्योंकि वह  कार्य संस्कृति का पर्याय बन चुका है | प्रधानमंत्री यदि वाकई देश को इस बुराई से मुक्त करवाना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले भाजपा शासित राज्यों को भ्रष्टाचार मुक्त करवाने का काम करना होगा जिससे पार्टी विथ डिफ़रेंस का दावा कसौटी पर खरा साबित हो सके | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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