Wednesday 1 September 2021

नेता-नौकरशाहों के गठजोड़ की नींव पर खड़े हैं भ्रष्टाचार के टॉवर



दिल्ली का हिस्सा  बन चुके  नोएडा में सुपरटेक नामक नामी बिल्डर द्वारा निर्मित 40 मंजिला दो टॉवर गिरवाने का जो आदेश अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिया था उसे सर्वोच्च न्यायालय ने बहाल करते हुए टॉवर गिराने के साथ ही उसमें फ्लैट खरीदने वालों को ब्याज  सहित मुआवजा देने का आदेश भी दे दिया। इमारत गिराने का खर्च भी बिल्डर को ही वहन करना होगा। इन टॉवर्स के निर्माण में नियम-  शर्तों का उल्लंघन होने का आरोप था जिसे उच्च और सर्वोच्च न्यायालय ने सही मानते हुए उक्त आदेश दिया। अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध निर्माण में बिल्डर और भवन निर्माण की स्वीकृति देने से संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत पर भी टिप्पणी की। ये पहला अवसर नहीं है जब किसी अवैध निर्माण को धराशायी करने के आदेश न्यायालय ने दिए हों किन्तु 40 मंजिल के दो जुड़वा टावर्स को गिरा देने का सम्भवतः ये पहला मामला होगा। इनमें पैसा निवेश  करने वालों  की संख्या एक हजार से ज्यादा बताई जाती है। अवैध निर्माण के नाम पर तोड़ी जाने वाली ये इमारतें एक दिन में तो खड़ी नहीं हुई होंगी । इतने बड़े निर्माण पर नजर रखना सरकारी विभागों के अधिकारियों की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है लेकिन ये बात केवल दिल्ली के सुपरटेक बिल्डर से जुड़ी हो ऐसा नहीं है क्योंकि पूरे देश में बनने वाले आवासीय एवं व्यावसायिक निर्माण में अनियमितताएं होती हैं । और इसका कारण है स्थानीय निकायों में बैठे नौकरशाहों का भ्रष्ट रवैया। निर्माण कार्य की स्वीकृति देने वाले विभागों का ये दायित्व होता है कि वे विभिन्न स्तरों पर उसका निरीक्षण करते हुए देखें कि सब कुछ  नियमानुसार हो रहा है अथवा नहीं ? ऐसे में  छोटा सा निर्माण भी बिना सरकारी अधिकारियों की जानकारी के नहीं हो सकता। ऐसे में देश की राजधानी के बगल में 40 - 40 मंजिल की दो अट्टालिकाएं नियम विरुद्ध खड़ी होती रहीं और किसी ने उनका संज्ञान न लिया हो ऐसा मानना  सच्चाई से मुंह मोड़ना होगा । सर्वोच्च न्यायालय ने बिल्डर और अधिकारियों की मिलीभगत की जो बात कही वह तो जगजाहिर है। ऐसे में अवैध निर्माण के लिए जितना दोषी भवन निर्माता बिल्डर है उतना ही वे सरकारी अधिकारी भी जिनकी भ्रष्ट कार्यप्रणाली के कारण बिल्डर बिना डरे नियम - कानूनों की धज्जियां उड़ाता रहा । ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय  ने टॉवर तोड़ने का जो आदेश दिया उसके साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों को भी ऐसी सजा मिलनी चाहिए जिससे कि भविष्य में ऐसी हिमाकत किसी की न हो । अन्यथा किसी निर्मित भवन को धरशायी करना राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुकसान है। सही बात ये है कि कानून के प्रति भय यदि नहीं है तो इसकी बड़ी वजह वह नौकरशाही भी है जिसके कंधों पर कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है। इसी कारण से पूरे देश में अवैध निर्माणों की संस्कृति विकसित हो गई। सुपरटेक ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध पुनरीक्षण  याचिका दायर करने की बात भी कही है । हो सकता है न्यायालय कुछ राहत दे दे किन्तु जब तक ऐसे मामलों से जुड़े भ्रष्ट अधिकारियों को कड़ा दंड नहीं दिया जाता तब तक ये प्रवृत्ति जारी रहेगी।  बेहतर होगा इस बारे में न्यायालय के फैसलों तक इंतजार करने के बजाय अवैध  निर्माण की संस्कृति की जड़ में मठा डालने का प्रयास हो। सुपरटेक तो केवल एक उदाहरण है । यदि व्यापक सर्वेक्षण किया जाए तो अवैध निर्माण के अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे। ये बुराई राजनीतिक संरक्षण के कारण और तेजी से फैली क्योंकि इस देश में जितने भी अवैध कार्य होते हैं उनमें नौकरशाह और नेताओं के गठजोड़ की बड़ी भूमिका है। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकारियों पर तो तीखी टिप्पणी की किन्तु नेताओं के बारे में वह मौन रहता है । समय आ गया है जब इस गठजोड़ को धराशायी किया  जाए क्योंकि इसी नींव पर भ्रष्टाचार के अनगिनत टॉवर खड़े हुए हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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