Thursday 23 September 2021

कोरोना से मौत पर मुआवजा और बीमा दावों के निपटारे में शीघ्रता तथा पारदर्शिता जरूरी



सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद अंततः केंद्र सरकार ने गत दिवस हलफनामा पेश करते हुए अदालत को बताया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कोरोना से मरने वाले मरीजों तथा बचाव एवं राहत कार्यों से जुड़े लोगों की संक्रमण से हुई मृत्यु पर उनके परिजनों को 50  – 50 हजार का मुआवजा देने की सिफारिश की है | ये राशि राज्य आपदा प्रबंधन कोष से दी जायेगी | मृत्यु प्रमाणपत्र में कोरोना का उल्लेख न होने से लाखों प्रभावित परिवार मुआवजे से वंचित हो गये थे | सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर रोष व्यक्त किया था कि मृत्यु प्रमाणपत्र में कोरोना का उल्लेख करवाने में  देरी से लोग हलाकान हो रहे हैं | दरअसल ये बहुत बड़ी  विसंगति है कि कोरोना के इलाज हेतु भर्ती हुए मरीज की मौत पर सम्बंधित अस्पताल द्वारा मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होने से मृतक के परिजन शासन द्वारा मिलने वाली किसी भी सहायता राशि से वंचित रह गये | जिन मरीजों को अस्पताल में कोरोना की दवाएं दी गईं और मृत्यु होने पर उनका अंतिम संस्कार भी कोरोना से  मारे गये लोगों के लिए निर्धारित श्मसान भूमि में किया गया , उनके मृत्यु प्रमाणपत्र में भी तत्संबंधी उल्लेख नहीं किया जाना निश्चित तौर पर अव्वल दर्जे की संवेदनहीनता का परिचायक था | सर्वोच्च  न्यायालय ने इस बारे में काफी सख्त रुख अपनाते हुए कोरोना से हुई मृत्यु पर मुआवजा देने के लिए सरकार को बाध्य किया | हालाँकि 50 हजार की राशि भी बेहद कम है | अनेक परिवार ऐसे हैं जिनका लालन – पालन करने वाला कोरोना की बलि चढ़ गया | कई में तो छोटे – छोटे बच्चे ही बचे हैं | यद्यपि इस बारे में एक समस्या ये भी है कि बहुत बड़ी संख्या उन मृतकों की है जिन्होंने बीमार होने पर  न तो कोरोना की जांच करवाई और न ही समुचित इलाज | ऐसे लोगों को कोरोना संक्रमित मानने में व्यवहारिक परेशानी सामने आना स्वाभाविक है क्योंकि हमारे देश में सरकारी तंत्र लकीर का फकीर बनकर कार्य करता है | बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय के दबाव के बाद केंद्र सरकार ने जो शपथ पत्र पेश किया उससे थोड़ी राहत मिलेगी | लेकिन कोरोना संक्रमण से हुई मौत का प्रमाण पत्र हासिल करना भी आसान नहीं होगा क्योंकि जिस शासकीय अमले को इस काम की जिम्मेदारी दी जायेगी उसमें कितनी मानवीयता है ये पक्के तौर पर कह पाना मुश्किल है | कोरोना की दूसरी लहर के चरमोत्कर्ष के दौरान जब प्रतिदिन हजारों लोग मारे जा रहे थे तब उनके अंतिम संस्कार में जिस तरह की घूसखोरी  सुनने मिली वह अमानवीयता की पराकाष्ठा ही कही जायेगी | ये देखते हुए मुआवजे की समूची प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाना जरूरी होगा | केंद्र सरकार तो राज्यों को पैसा देकर अपना पिंड छुड़ा लेगी परन्तु  सरकारी अमला इस मुआवजे में भी घूस और कमीशन वसूलने में संकोच करेगा ये बात सोचना भी कठिन है | सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली  बात ये है कि सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र के बाद देश भर में कोरोना से हुई मौत के फर्जी प्रमाणपत्र बनाने का गोरखधंधा शुरू हो जाएगा | कोरोना से जुड़ा एक संवेदनशील विषय है चिकित्सा बीमा के दावों का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा न किया जाना | सरकार  को इस बारे में भी गम्भीरता के साथ  सख्त कदम उठाने चाहिए क्योंकि मोटी प्रीमियम वसूलने वाली सरकारी बीमा कम्पनियों तक ने मुसीबत के मारे पालिसी धारकों को धोखा दे दिया | निजी अस्पतालों ने लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर  भारी - भरकम अग्रिम राशि उन मरीजों से भी नगद में जमा करवाई जिनके पास नगदी रहित ( कैश लेस ) बीमा पालिसी थी | बाद में बीमा कम्पनियों ने तरह – तरह के बहाने बनाते हुए उनके चिकित्सा खर्च का भुगतान करने से इंकार कर दिया | जबसे बीमा व्यवसाय में निजी क्षेत्र को इजाजत मिल गयी है तबसे दर्जनों नई कम्पनियां आकर्षक योजनाओं का प्रलोभन देते हुए बाजार में आ टपकीं | उनकी तरफ से हुई बेईमानी तो अनपेक्षित नहीं थी किन्तु सरकारी नियन्त्रण वाली बीमा कम्पनियों ने जिस तरह का अमानवीय दृष्टिकोण कोरोना काल में दिखाया वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता किन्तु लाखों शिकायतों के बावजूद एक भी कम्पनी पर शिकंजा नहीं कसा गया , उल्टे कोरोना के बहाने से वार्षिक प्रीमियम में लगभग दो गुना वृद्धि करते हुए बीमा धारकों के कन्धों पर जबरदस्त बोझ डाल दिया गया | ये देखते हुए कोरोना से हुई मौतों पर प्रभावित परिवार को मुआवजा देने के साथ ही अस्पतालों में भर्ती होकर स्वस्थ हो गये बीमा धारकों के दावों के भुगतान की तरफ भी सरकार को ध्यान देना चाहिए | इस बारे में बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण के साथ ही उपभोक्ता अदालतों में लाखों शिकायतें लंबित हैं | इनके जल्द निपटारे के बारे में भी समुचित व्यवस्था बनानी होगी  क्योंकि  सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की उसे ये ध्यान रखना चाहिए कि न्यायपालिका का काम दैनंदिन प्रशासन चलाना नहीं होता परंतु सरकारी उदासीनता उसे इस बात के लिए बाध्य  करती है | मरने वाले के परिजनों को मिलने वाले वाजिब मुआवजे को लेकर  सर्वोच्च न्यायालय को व्यवस्था देना पड़े ये सरकार के लिए  आत्मविश्लेषण का मुद्दा होना चाहिये |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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