Friday 24 September 2021

सबका साथ , सबका विकास और सबका विश्वास के साथ सबका स्वास्थ्य भी प्राथमिकता बने



केंद्र सरकार द्वारा तीन साल पहले शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना में अब तक 2 करोड़ लोगों का निःशुल्क इलाज किया गया | विभिन्न श्रेणियों के आर्थिक  दृष्टि से कमजोर लोगों के लिए यह योजना संजीवनी साबित हुई है | प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनकल्याण की जिन योजनाओं और कार्यक्रमों का शुभारम्भ किया गया उनमें आयुष्मान भारत बेहद महत्वपूर्ण है | ये बात अकाट्य सत्य है कि समृद्ध भारत की कल्पना आम जनता को स्वस्थ बनाए रखकर ही साकार हो सकेगी | दुर्भाग्य से हमारे देश में प्रारंभ से ही जन स्वास्थ्य की दिशा में आपराधिक उदासीनता बरती जाती रही | सरकारी अस्पताल तो काफी पहले से ही  अपर्याप्त साबित हो चले थे | उस कारण निजी क्षेत्र ने पूरे देश में अपना कारोबार तो फैलाया किन्तु उसमें बाजारवाद की भावना के वशीभूत मुनाफाखोरी का बोलबाला  हो गया | कोरोना काल में कुछ को छोड़कर अधिकतर निजी अस्पतालों ने मरीजों की मजबूरी का लाभ लेते हुए  लूटमार की  | हालांकि आज भी कुछ चिकित्सक  इस पेशे की पवित्रता को सहेजकर रखे हुए हैं | कहने को सरकार भी चिकित्सा सेवाओं और शिक्षा के विस्तार के लिए काफी जतन करती है लेकिन उनके पीछे राजनीति अधिक होने से अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती | कोरोना काल में ये बात सामने आई कि जनसँख्या के अनुपात में स्वास्थ्य सेवाएँ अपर्याप्त हैं | हालाँकि महामारी जैसी परिस्थिति में ये स्थिति  तो विकसित देशों में भी सामने आई लेकिन हमारे यहाँ  सामान्य हालातों में भी सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाओं का टोटा बना रहता  है | अस्पताल है तो चिकित्सक और नर्सिंग कर्मचारी नहीं होते और होते भी हैं तो दवाइयां और जरूरी मशीनों का अभाव देखने मिलता है | इसीलिये केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए बनाई गई सीजीएचएस व्यवस्था में निजी अस्पतालों को शामिल किया गया और अब आयुष्मान भारत के लिए भी निजी अस्पतालों को अधिसूचित करने की व्यवस्था की गई | इसके लिए बाकायदे सर्वेक्षण करने के उपरांत जो पात्र पाए गये उनको परिचय कार्ड दिए गये | जिनका रिकॉर्ड अधिमान्य अस्पतालों में होने से कार्डधारी को बिना भुगतान किये 5 लाख तक के इलाज की सुविधा मिल जाती है | निश्चित रूप से साधनहीन तबके को चिकित्सा का लाभ प्रदान करने की ये योजना क्रांतिकारी साबित हुई है | ये भी सही है कि इससे आकर्षित होकर निजी क्षेत्र में अस्पताल खोलने की होड़ सी लगी हुई है | अनेक निजी अस्पताल तो सीजीएचएस और आयुष्मान भारत के कारण ही पैसा बटोरने में सफल रहे हैं | चिकित्सा जगत से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो आगामी पांच वर्षों में निजी क्षेत्र नए अस्पतालों पर भारी निवेश करने वाला है और इसका कारण आयुष्मान भारत योजना ही है |  इसीलिए  महानगरों तक सीमित नामी ब्रांडेड अस्पतालों की शाखाएँ देश भर में खोलने का सिलसिला चल पड़ा है | लेकिन चिंता की बात ये है कि सीजीएचएस तथा आयुष्मान भारत योजना के अलावा  मुफ्त इलाज की सुविधा प्राप्त नेता और नौकरशाहों को छोड़कर शेष जनता के लिए निजी अस्पताल लूट का अड्डा बनते जा रहे हैं | जिनके पास चिकित्सा बीमा है वे तो फिर भी किसी हद तक सुरक्षित हैं किन्तु बाकी  लोगों के लिए चिकित्सा खर्च मोटे हाथी समान होता जा रहा है | सबसे बड़ी बात ये हैं कि देश में जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सक तैयार नहीं हो रहे | सरकारी अस्पतालों में नौकरी करने का आकर्षण भी  पहले जैसा नहीं   रहा | अधिकतर नए चिकित्सक निजी अस्पताल में सेवाएँ देना पसंद करते हैं | हालत ये हैं कि एक विशेषज्ञ अनेक अस्पतालों से जुड़ जाता है | इसके कारण सरकारी चिकित्सा तंत्र खुद ही बीमार बनकर रह गया है | ऐसे में सरकार को ये देखना होगा कि जो वर्ग सरकारी खर्च से इलाज की सुविधा से वंचित है उसे निजी अस्पतालों के महंगे इलाज से कैसे बचाया जावे | चूँकि  चिकित्सा और चिकित्सकों के लिए कोई नियामक संस्था नहीं है इसलिए मनमर्जी चल रही है | आयुष्मान भारत योजना  के तहत जिन हितग्राहियों को इलाज की सुविधा मिल रही है उनमें तमाम ऐसे लोग भी शामिल हो गये हैं जो आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं | जिस तरह बीपीएल कार्डों में बड़ी संख्या में फर्जीबाड़ा हुआ , उसी तरह से आयुष्मान योजना के परिचय कार्ड बनवाने के लिए निजी अस्पतालों में दलालों के सक्रिय होने की जानकारी भी आई है | सरकार को इस बारे में सतर्क रहना होगा | लेकिन सबसे बड़ी जरूरत ये है कि निःशुल्क इलाज की न्यूनतम सुविधा से उन  निम्न मध्यमवर्गीय  परिवारों को भी लाभान्वित किया जावे जिनके पास चिकित्सा संबंधी आर्थिक सामर्थ्य और अन्य सुरक्षा नहीं है | सरकार को ये ध्यान रखना होगा कि इस देश का हर नागरिक उसकी जिम्मेदारी है | अच्छा स्वास्थ्य देश के विशाल मानव संसाधन को संबल प्रदान करता है | कोरोना नामक महामारी के दौरान ये विषय तेजी से उठा कि लोगों के इलाज की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए थी | ऐसा नहीं है कि उसने कुछ न किया हो किन्तु असंख्य लोग केवल इसलिए जान गंवा बैठे क्योंकि उनके पास धनाभाव था | देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बजट आबादी के अनुपात में बहुत कम है | आर्थिक विषमता के कारण समाज का बहुत बड़ा तबका   ठीक तरह से इलाज तो बड़ी बात है जांच तक करवाने में असमर्थ है | गरीबों को मुफ्त इलाज मिले ये स्वागतयोग्य है किन्तु गरीबी रेखा के अंतर्गत न  आने वाला हर व्यक्ति धनाड्य है ये अवधारणा भी सत्य से परे है | बेहतर हो सरकार देश में चिकित्सा क्रांति की दिशा में समयबद्ध कार्यक्रम लेकर  आगे बढ़े | शासकीय चिकित्सालयों की संख्या बढ़ाने के साथ उनको उन्नत किया जाना जरूरी है | कम से कम जन स्वास्थ्य के मामले में तो वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सोचा जाना चाहिए | शेयर बाजार के सूचकांक द्वारा 60 हजार का आंकड़ा छू लेना या अर्थव्यवस्था को 5  ट्रिलियन डॉलर ( 5 लाख करोड़ डॉलर ) के स्तर तक ले जाने के बावजूद यदि देश में करोड़ों लोग अपना इलाज करवाने में असमर्थ रहें तो ऐसे विकास का क्या लाभ ? सबका साथ , सबका विकास  और सबका विश्वास के साथ सबका स्वास्थ्य भी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये |


 - रवीन्द्र वाजपेयी



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