Wednesday 22 September 2021

अफगानिस्तान में किरकिरी के बाद अमेरिका को भी भारत की जरूरत



 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अमेरिका जा रहे हैं | कोरोना के कारण लगभग डेढ़ साल बाद उनका भारत से बाहर जाना होगा | इस दौरान अनेक अंतर्राष्ट्रीय बैठकों और सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति आभासी माध्यम से ही सम्भव हो सकी | बावजूद इसके कूटनीतिक मोर्चे पर उनकी सक्रियता में कमी नहीं आई | गत वर्ष गर्मियों में लद्दाख अंचल में चीन के साथ हुए सैन्य टकराव के समय वैश्विक जनमत को भारत के पक्ष में झुकाने के लिए उन्होंने सराहनीय प्रयास किये | उस समय एक तरफ तो कोरोना की मार से पूरा देश हलाकान था वहीं दूसरी तरफ चीन ने सीमा पर  सैन्य टकराव के हालात पैदा कर दिए | लेकिन भारत ने सैन्य मोर्चे पर  जिस मुस्तैदी से जवाब दिया उसके कारण पूरी दुनिया को ये लगा कि वह अब एक विश्वशक्ति की तरह व्यवहार करने लगा है |  सीमा पर माकूल जवाब देने के साथ ही आर्थिक मोर्चे पर आत्मनिर्भर भारत का जो नारा गूंजा ,  वह चीन पर  निर्भरता कम करने की दिशा में बड़ा कदम साबित हुआ | उसके बाद से ही औद्योगिक उत्पादन में लगने वाली अनेक वस्तुओं का उत्पादन देश में शुरू हो सका | लेकिन कोरोना की पहली लहर पूरी तरह समाप्त हो पाती उसके पूर्व ही दूसरी का हमला हो गया जो पहली से ज्यादा खतरनाक साबित हुआ |  ये कहना गलत न होगा कि तमाम विषमताओं और विसंगतियों के बावजूद भारत ने इस महामारी  के विरुद्ध जिस तरह लड़ाई लड़ी उसने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और यही वजह रही जब अनेक देशों की  अर्थव्यवस्था पर चिंता के बादल मंडरा रहे थे तब भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों ने रिकॉर्ड तोड़ धन लगाया और वह सिलसिला आज तक जारी है | चीन के  विकल्प  के तौर पर भारत में निवेशकों  की बढ़ती रूचि के पीछे  एक बड़ा कारण प्रधानमंत्री की छवि भी है | भले ही विपक्षी दलों  के अलावा एक तबका उनका घोर विरोधी हो लेकिन हालिया अंतर्राष्ट्रीय  सर्वेक्षणों में सर्वाधिक ताकतवर और लोकप्रिय वैश्विक नेता के तौर पर श्री मोदी का उभरना देश  के लिए शुभ संकेत है | कोरोना की तीसरी लहर का भय कम होते जाने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था कुलांचे भरने के संकेत दे रही है | लेकिन इस बीच अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन से  एशिया सहित  समूचे विश्व की शांति और शक्ति संतुलन गड़बड़ा गया है | अफगानिस्तान का निकटस्थ पड़ोसी होने से भारत के लिए भी  चिंता के कारण बन गये हैं | विशेष तौर पर पाकिस्तान और चीन जिस तत्परता से तालिबानी सत्ता के मददगार बनकर सामने आये हैं उससे हमें  भविष्य में नये संकट का सामना करना पड़ सकता है | अमेरिका इस मामले में सबसे बड़ा पक्ष रहा है और अफगानिस्तान के मौजूदा सूरते हाल को देखते हुए ये कहा  जा सकता है कि उसे  चाहे – अनचाहे आगे भी  वहां हस्तक्षेप करना पड़ेगा | इसलिए भारत का उसके साथ अन्तरंग सम्पर्क में रहना जरूरी है | अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो.बाइडेन के बारे में ये धारणा थी कि वे बिल क्लिंटन , बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प की तरह संभवतः खुलकर भारत का साथ नहीं  देंगे लेकिन अफगानिस्तान में उनके पांसे जिस तरह उलटे पड़े उसके बाद दक्षिण एशिया में एक मजबूत साझेदार के तौर पर भारत , अमेरिका के लिये अपरिहार्य बन गया | इसका प्रमाण तब मिला जब श्री बाइडेन ने श्री मोदी से तो फोन पर बातचीत की लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को नजरअंदाज कर  दिया जिसका रोना  वे आये दिन रोया करते हैं | ये सब देखते हुए श्री मोदी  की  ये अमेरिका यात्रा कूटनीतिक मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण पहल कही जा सकती है | वैसे सितम्बर में हर साल संरासंघ की महासभा को संबोधित करने प्रधानमंत्री अमेरिका जाते रहे हैं लेकिन इस यात्रा में श्री मोदी प्रत्यक्ष रूप से पहली बार श्री बाइडेन से  मिलने के साथ - साथ  अमेरिका , जापान , भारत और आस्ट्रेलिया के क्वाड नामक गठबंधन के शिखर सम्मेलन में भी  हिस्सा लेंगे जो  दक्षिण एशिया और प्रशांत क्षेत्र में चीन की  जबरिया दखलंदाजी के विरुद्ध सशक्त  मंच बन गया है | हालाँकि श्री मोदी वहां की  उप राष्ट्रपति भारतीय मूल की कमला हैरिस के अलावा दुनिया की अनेक दिग्गज कम्पनियों के प्रमुखों से मिलंने के साथ ही  संरासंघ की महासभा को भी सम्बोधित करेंगे किन्तु यात्रा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग राष्ट्रपति बाइडेन से भेंट  और क्वाड देशों के शिखर सम्मलेन में शिरकत करना है | अफगानिस्तान मसले पर श्री बाइडेन से फोन पर तो उनकी  चर्चा हो चुकी है लेकिन आमने – सामने की बातचीत के अपने लाभ हैं  | नये अमेरिकी राष्ट्रपति महज 9 महीने के भीतर अपने देश में जिस तरह अलोकप्रिय हो रहे हैं उसके कारण उनको  एशिया में भारत जैसे देश  के साथ की जरूरत है जो अफगानिस्तान में पाकिस्तान और चीन की जुगलबंदी के विरुद्ध मुस्तैदी से खड़ा रह सके | आर्थिक दृष्टि से भी भारत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए चीन का सशक्त विकल्प बनकर सामने आया है | बीते 7 साल में श्री मोदी ने राजनीतिक स्थिरता बनाए रखते हुए जो नीतिगत दृढ़ता दिखाई उससे भारत की साख और धाक में वृद्धि हुई है | चूँकि आगामी लोकसभा चुनाव में अभी तकरीबन तीन साल हैं इसलिए विदेशी निवेशक निःसंकोच यहाँ अपनी पूंजी लगाने के प्रति उत्साहित हैं | सबसे बड़ी बात ये है कि अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर चाहे डेमोक्रेट बैठे या रिपब्लिक , भारत के प्रति उसका नजरिया काफी सकारात्मक होता जा रहा  है | इसीलिये  अफगानिस्तान के ताजा  घटनाक्रम के बाद की परिस्थितियों में भारत की भूमिका पर विश्व समुदाय की निगाह लगी हुई है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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