Thursday 13 December 2018

कर्ज माफी : दर्द दूर होगा बीमारी नहीं

मप्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान  के चुनाव में ज्योंही कांग्रेस ने किसानों के कर्जे माफ करने का वायदा किया त्योंही सरकारी केंद्रों पर धान खरीदी का काम ठंडा पड़ गया | किसान अपनी धान घर पर रखकर चुनाव खत्म होने का इंतजार करने लगा क्योंकि सरकार चैक से भुगतान करती है जिसके बैंक में जमा होते ही ब्याज की किस्त काट ली जाती है | इस वजह से एक तरफ धान की ख़रीदी का लक्ष्य पिछड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ किसानों को कर्ज देने वाले बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों में कर्ज की बकाया राशि की उगाही ठप्प पड़ गई | 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले मनमोहन सरकार ने पूरे देश में किसानों को कर्ज माफी की जो सौगात दी उससे यूपीए सत्ता में वापिस लौट आया | उसके बाद अनेक राज्यों में भी इस नुस्खे से चुनावी सफलता अर्जित की गई । भाजपा ने उप्र तो कांग्रेस ने पंजाब और कर्नाटक में यही नुस्खा आजमाया और सफलता अर्जित की । उसी से उत्साहित होकर राहुल गांधी ने इन तीन राज्यों में भी वही वायदा कर दिया ।यद्यपि लगभग सभी राज्य सरकारें किसानों को किसी न किसी तरह से लुभाया करती हैं किन्तु जबसे किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं बढ़ने लगीं तभी से कर्ज माफी एक बड़ा मुद्दा बनता चला गया जिसे लेकर देश भर के किसान संगठन अलग - अलग तरीके से दबाव बनाते रहते हैं | कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तो लगभग प्रत्येक सार्वजनिक तकरीर में मोदी सरकार को ये कहकर घेरते हैं कि वह उद्योगपातियों के कर्जे तो माफ कर देती है लेकिन किसानों के लिए उसके मन में कोई हमदर्दी नहीं है |  चुनाव खत्म होते ही मप्र में किसानों पर बकाया ऋण राशि के जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उनके मुताबिक लगभग 56 हजार करोड़ रु. की राशि माफी नामे में देनी होगी | नई सरकार के अस्तित्व में आने से पहले ही नौकरशाही चुनावी वायदे को पूरा करने की तैयारी करने बैठ गई है लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस के भीतर भी इसे लेकर मंथन शुरू हो गया है कि जबरदस्त कर्ज में डूबे मप्र में इतनी बड़ी धनराशि का इंतजाम कहाँ से होगा ? छत्तीसगढ़ और राजस्थान को मिलाने पर ये राशि घबराहट पैदा करने वाली होगी | इसी बीच ये खबर भी आ गई कि चुनावी हार से घबराई केंद्र सरकार भी अब किसानों की आय बढाकर उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की दीर्घकालीन योजनाओं की बजाय शार्ट क़ट अपनाने पर विचार करने लगी है जिसके अंतर्गत लोकसभा चुनाव की रणभूमि सजने के पहले ही देश भर के किसानों को कर्जमाफी का तोहफा दिया जाएगा जिससे कि फिर एक बार , मोदी सरकार का नारा वास्तविकता में बदला जा सके | राम मन्दिर का मामला अदालती मकड़जाल में उलझ जाने से भाजपा के सामने अब चुनाव मैदान में उतरने के लिये ऐसा कुछ बातों करना जरूरी हो गया है जिसका तात्कालिक लाभ वोटों की फसल काटने के रूप में मिल सके | यद्यपि केंद्र सरकार द्वारा इस खबर का खंडन कर दिया गया है | प्रधानमंत्री भी व्यक्तिगत रूप से इस बात के समर्थक हैं कि इस तरह के तरीकों से चुनावी सफलता भले मिल जाए किन्तु किसानों को दुर्दशा से उबारने के लिए दीर्घकालीन उपाय ही बेहतर होंगे जिनसे उनकी आय में वृद्धि हो सके | विदा लेती शिवराज सरकार के कार्यकाल में मप्र ने कृषि के क्षेत्र में जो प्रगति की उसकी देश भर में सराहना हुई | उसका भाजपा को लाभ भी मिला | किसानों की आत्महत्या और मंदसौर गोली कांड को छोड़ दें तो ऐसी कोई वजह नहीं थी जिसके कारण किसान सरकार के विरुद्ध आक्रोशित होते | चुनाव परिणाम इस बात का प्रमाण हैं कि मंदसौर में भाजपा को जबरदस्त सफलता प्राप्त हुई वहीं अन्य ग्रामीण सीटों पर भी उसे समर्थन मिला | यद्यपि कृषिप्रधान कुछ जिलों में उसे नुकसान हुआ लेकिन यदि किसान गुस्से से भरे होते तब भाजपा को 109 सीटें तो क्या 50 तक के लाले पड़ जाते | कांग्रेस भले हुई सरकार बनाने जा रही हो लेकिन कर्ज माफी का वायदा उतना कारगर नहीं रहा जितनी पार्टी अपेक्षा कर रही थी | यही वजह है कि परिणामों के तुरंत बाद दिल्ली में संवाददाताओं से बतियाते हुए राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर दार्शनिक अन्दाज में बातें करते हुए कर्ज माफी को पर्याप्त और स्थायी इलाज मानने से इनकार कर दिया | ऐसा लगता है अपेक्षित सफलता नहीं मिलने से कांग्रेस को भी लग रहा होगा कि वह व्यर्थ की मुसीबत मोल बैठी | ऐसी स्थिति में जब राज्यों के खजाने खाली पड़े हों और ओवरड्रॉफ्ट बढ़ता जा रहा हो तब किसानों की कर्ज माफी से पूरा अर्थतंत्र लड़खड़ा जाएगा | लेकिन लोकसभा चुनाव की तलवार सिर पर लटकने की वजह से जो वायदा किया वो निभाना पड़ेगा वाली मजबूरी फंस गई है | उधर किसान संगठनों ने भी आंखें तरेरना शुरू कर दिया है | उनका कहना है कि केवल दो लाख तक ही क्यों उससे ज्यादा के ऋण भी माफ किये जावें | ऐसे में नई सरकार के सामने दूबरे में दो आसाढ़ की स्थिति आ खड़ी हुई है | विकास कार्य बंद किये जायें तो विपक्ष चढ़ बैठेगा वहीं जनता भी नाराज होगी और कर्ज माफ नहीं किये तब किसान लोकसभा चुनाव में सबक सिखा देंगे | बेहतर हो राहुल गांधी ने संवाददाताओं से जो बातें कीं उन पर कांग्रेस गंभीरता से विचार करते हुए इस तरह के उपायों से चुनाव जीतने की बजाय किसान की आर्थिक स्थिति सुढृढ़ करने के स्थायी और ठोस विकल्प तलाशे | प्रधानमंत्री भी निजी तौर पर जो सोचते हैं उसे नीतिगत तौर पर लागू करने लायक हालात कैसे बनें इस पर विचार करें | किसान को देश में अन्नदाता के रूप में जो सम्मान और सहानुभूति हासिल है वह अन्य लोगों की ईर्ष्या में नहीं बदल जाये ये भी विचारणीय है क्योंकि एक वर्ग को मिल रही राहत बाकी करदाताओं की आफत बनकर सामने आती है | किसान को भरपूर संरक्षण और सहायता मिलनी ही चाहिए किन्तु कर्ज माफी जैसे उपाय चुनाव भले जितवा दें किन्तु उनसे देश का बहुत नुकसान होता है | सबसे बड़ी बात कर्ज लेकर हजम करने वाली प्रवृत्ति के विकसित होने की रूप में सामने आने की है | लोगों को उद्यमी बनाने के लिए हर तरह का प्रोत्साहन मिलना चाहिए लेकिन हमारे देश में तो मुफ्तखोरी को बढ़ावा देकर लोगों को कामचोर और बेईमान बनाया जा रहा है | कर्जमाफी विशिष्ट परिस्थितियों में औचित्यपूर्ण हो सकती है लेकिन महज चुनाव जीतने की लिये इस तरह के वायदे देश को भीतर से खोखला कर रहे हैं | इससे किसान को तात्कालिक लाभ भले मिल जाए लेकिन वह दोबारा कर्ज के बोझ तले न दब जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

1 comment:

  1. अब तो कसान चुनावी साल मे कर्ज लेने व माफी की प्रतिीक्षा करते हैं.

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