Friday 21 December 2018

सुशासन : राजनीति हो तो भी स्वागतयोग्य

यद्यपि इसके पीछे राजनीतिक सोच होने से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन मप्र की कमलनाथ सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को सुशासन दिवस के रूप में मनाने की पिछली सरकार की परंपरा को जारी रखने का जो निर्णय किया वह स्वागतयोग्य है। हाल ही में पूर्व हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसीलिए इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई है कि नई सरकार उनके शासनकाल की जनहितकारी नीतियों को जारी रखेगी। लोकसभा चुनाव करीब होने की वजह से कमलनाथ का यह कदम भाजपा को उसी तरह  असमंजस में डालने वाला है जिस तरह उसने महात्मा गांधी और सरदार पटेल को अपनाकर कांगे्रस को चिढ़ाया। चूंकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिये लोकसभा चुनाव में उसे नए सिरे से व्यूहरचना करनी होगी। अटल जी चूंकि मप्र के ही थे इसलिए उनके प्रति शासकीय स्तर पर सम्मान व्यक्त कर कांग्रेस मतदाताओं के उस वर्ग को आकर्षित कर सकती है जो स्व. वाजपेयी के कारण भाजपा की तरफ  मुड़ गया था।  ये भी उल्लेखनीय है कि अटल जी के गृहनगर ग्वालियर सहित भिंड, मुरैना अर्थात पूरे चंबल संभाग में कांग्रेस को जोरदार सफलता मिली जिसकी वजह से  कमलनाथ सत्ता तक पहुंच सके। दूसरे शब्दों में कहें तो अटल जी को सुशासन का प्रतीक बताकऱ कांग्रेस राहुल गांधी द्वारा शुरू किए गए सौम्य हिंदुत्व को और आगे बढ़ाने की नीति पर चल रही है। ऐसा करते हुए वह भाजपा को इस बात के लिए मजबूर भी करना चाह रही है कि वह नेहरू-गांधी परिवार के विरुद्ध बोलना बंद करे। बहरहाल यदि किसी चीज में राजनीति होते हुए भी वह अच्छा सन्देश देती हो तो उसमें कोई बुराई नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे राहुल के मंदिर और मठों में जा-जाकर पूजा-पाठ करने से आखिरकार हिंदुत्व तो मजबूत हुआ जो रास्वसंघ चाहता है। आजकल कांग्रेस नेता बात-बात में ये कहते भी हैं कि हिंदुत्व भाजपा की बपौती नहीं है। और उनका ये दावा गलत भी नहीं कहा जा सकता। फर्क केवल इतना है कि चूंकि इसके पहले तक कांग्रेस को हिंदुओं में वोट बैंक महसूस नहीं हुआ इसलिये उसके शीर्ष नेता को जनेऊधारी होने का प्रचार नहीं करना पड़ा। कुछ कांग्रेसजन तो ये भी कहने लगे हैं कि अयोध्या में राम मन्दिर का निर्माण उनकी सरकार आने पर ही होगा। शायद यही वजह रही होगी जिसके कारण संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कह दिया कि संघ कांग्रेस मुक्त भारत जैसी बात से सहमत नहीं है। नागपुर स्थित अपने मुख्यालय में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आमंत्रित करने के बाद संघ ने राहुल गांधी को भी एक आयोजन में आमंत्रित किया था। यद्यपि वे उसमें गए नहीं। हो सकता है कांग्रेस को भी ये लगा कि भाजपा शासित तीन राज्यों में मिली चुनावी सफलता के बाद वह यदि अटल जी जैसे सर्वमान्य और निर्विवाद राष्ट्रीय नेता के प्रति आदरभाव व्यक्त करने लगे तब आगामी लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत के भाजपा प्रभाव वाले राज्यों में वह हिन्दू मतों का बड़ा हिस्सा खींचकर नरेन्द्र मोदी की राह में अवरोधक खड़े करने में कामयाब हो जाएगी। जो भी हो लेकिन मप्र की नव निर्वाचित कांग्रेस सरकार द्वारा अटल जी को सुशासन का प्रतीक बनाकर जो दांव चला गया है वह नि:सन्देह राजनीति से प्रेरित और प्रभावित होने के बाद भी अच्छा है बशर्ते इससे राजनीतिक कटुता थोड़ी कम हो सके। वरना कांग्रेस को तो भाजपा का गांधी जी और सरदार पटेल के प्रति श्रद्धा भाव ढोंग लगता रहा है। यहां तक कि सरदार पटेल की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाने की भी आलोचना की गई और उसके औचित्य तथा लागत पर सवाल उठाए जाते रहे। वैसे छत्तीसगढ़ में स्व. वाजपेयी की भतीजी पहले ही कांग्रेस में आ चुकी हैं। अटल जी के पार्थिव शरीर के समक्ष दंडवत होकर श्रद्धांजलि अर्पित करते ज्योतिरादित्य सिंधिया का चित्र भी बहुत पुराना नहीं है। अटल जी कहते भी थे कि राजनीति में विरोधी शत्रु नहीं होता। उनके जीते जी न सही लेकिन उनके नहीं रहने पर भी यदि उनकी बात को स्वीकार्यता मिल रही है तो ये संतोषजनक है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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