Thursday 20 December 2018

पुलिस को साप्ताहिक अवकाश मिलना ही चाहिए


मप्र की नई सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गत दिवस भोपाल स्थित पुलिस मुख्यालय में वरिष्ठ अधिकारियों से भेंट कर पुलिस प्रशासन को अपनी अपेक्षाएं बताने के साथ ही पुलिस बल की कमी की जानकारी भी हासिल की। उन्होंने सख्त हिदायत दी कि अपराध रोकने के लिये हरसंम्भव प्रयास किये  जाएं। इसी दौरान खबर आई कि पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने की व्यवस्था भी लागू की जावेगी। पूर्व में पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए बनी समितियों ने भी इस बात की अनुशंसा की थी। पुलिस कर्मियों को अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह आकस्मिक, सवैतनिक और चिकित्सा अवकाश तो मिलते हैं किंतु साप्ताहिक अवकाश का प्रावधान नहीं होने से उनका पारिवारिक और निजी जीवन प्रभावित होता है। अनेक अध्ययनों से ये बात भी सामने आई कि साप्ताहिक अवकाश के अभाव में आम पुलिस कर्मी अवसाद से ग्रासित हो जाते हैं जिसका असर उनकी सेवाओं की गुणवत्ता के साथ ही जनता से उनके व्यवहार पर भी पड़ता है। परिवार को समय नहीं देने की वजह से पत्नी और बच्चों के साथ समन्वय भी गड़बड़ाता है। तीज-त्यौहारों सहित अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर भी उन्हें घर-परिवार के साथ समय व्यतीत करने का अवसर नहीं मिलना साधारण मानवीयता की दृष्टि से भी घोर आपत्तिजनक है। वीआईपी आगमन के अवसर पर भी पुलिसकर्मी बंधुआ मजदूर की तरह जोत दिए जाते हैं।  अंग्रेजों के जमाने की प्रशासनिक व्यवस्था को ढोते रहने की वजह से पुलिस महकमे में साप्ताहिक अवकाश प्रणाली लागू नहीं हो सकी। चूंकि आबादी की वृद्धि के साथ ही शहरों, कस्बों ही नहीं अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में भी रिहायशी क्षेत्र बढ़ता जा रहा है इसलिए नये थाने और उप थाने खोलने की जरूरत पडऩे लगी।  लेकिन नई भर्ती उस अनुपात में नहीं होने से पुलिस के पास काम करने वाले हाथ कम हैं। यही वजह है कि चाहकर भी सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पाई। चूंकि पुलिस विभाग के छोटे - बड़े अधिकारी और कर्मचारी के साथ भ्रष्टाचार और घूसखोरी जैसे दाग स्थायी रूप से जुड़े हुई हैं इसलिए उनके प्रति समाज में अपेक्षित सम्मान और सहानुभूति नहीं पाई जाती। लेकिन बीते कुछ वर्षों में स्थिति बदली है। साधारण सिपाही भी शैक्षणिक दृष्टि से पूर्वापेक्षा बेहतर है। बड़ी संख्या में लड़कियां भी पुलिसकर्मी बन रही हैं। महिला थाने भी खुल रहे हैं। इन हालातों में जरूरी हो जाता है कि उन्हें भी अन्य शासकीय कर्मचारियों की तरह साप्ताहिक अवकाश जैसी सुविधा मिले। कमलनाथ सरकार यदि इस संबंध में निर्णय लेने जा रही है तो उसका स्वागत होना  चाहिए।  इसे वोट बैंक की बजाय विशुद्ध मानवीयता के आधार पर देखना भी जरूरी है। इसी के साथ पुलिस बल की कमी दूर करना भी आवश्यक है। पुलिस की सेवा शर्तों को भी आम शासकीय कर्मियों की तरह रखना समय की मांग है। छवि सुधारने के लिए भी जरूरी है कि उन्हें एक बेहतर जीवन हेतु माहौल और अवसर दिए जाएं।  विश्व श्रम संगठन के नियमों से ऊपर उठकर भी मानवीयता का तकाजा है कि पुलिस कर्मी को वह सब मिले जो उससे ज्यादा उसके परिवार का भी अधिकार है।  पुलिस की मानसिकता को बदलने के लिए भी साप्ताहिक अवकाश जैसी सुविधा उन्हें दी जानी चाहिए। यही नहीं तो उनके आवास एवं अन्य सुविधाओं की तरफ  भी समुचित ध्यान दिया जाए। ऐसा होने से निश्चित तौर पर उनके स्वभाव का रूखापन दूर होगा। परिवार के साथ समय बिताने का अवसर उन्हें अधिक संवेदनशील बनाएगा ऐसा मनोवैज्ञानिक निष्कर्ष भी कहते हैं। पुलिस महकमा भ्रष्टाचार और स्वेच्छाचारिता का पर्याय यदि बन गया तो उसमें काफी हद तक शासन भी कसूरवार है क्योंकि अपने लिए सारी सुविधाएं जुटाने वाले सत्ताधारी पुलिस वालों को यदि सप्ताह में एक भी अवकाश तक नहीं दे सके तब उनसे कर्तव्यनिष्ठा की उम्मीद रखना भी उचित नहीं है। पुलिस की छवि और कार्यप्रणाली नि:सन्देह जनविरोधी है  परन्तु ये भी सत्य है कि उसे सुधारने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किये गए। साप्ताहिक अवकाश जैसी मूलभूत जरूरत से वंचित रखने के बाद पुलिस कर्मी से बेहतर सेवा और व्यवहार की अपेक्षा करना ज्यादती ही लगती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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