Friday 14 December 2018

कमलनाथ : अनुभव और व्यवहारिकता के समन्वय

जिस दिन कमलनाथ को मप्र में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था उसी दिन ये निश्चित हो गया था कि यदि कांग्रेस की सरकार बनी तब वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे । 11 दिसम्बर को नतीजे आने के बाद जब ये पक्का हो गया कि संख्याबल में भाजपा पिछड़ गई और सपा , बसपा के साथ निर्दलीय भी कांग्रेस को समर्थन दे देंगे त्योंही कमलनाथ ने सरकार बनाने का दावा कर दिया । चूंकि उस समय तक सभी चुनाव परिणाम घोषित नहीं हुए थे इसलिए कमलनाथ पर ये कटाक्ष भी हुए कि वे जल्दबाजी कर रहे हैं । राज्यपाल आनंदीबेन ने भी पूरे परिणाम घोषित होने तक सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू नहीं करने के बात कह दी । दूसरे दिन जब कांग्रेस प्रतिनिधिमण्डल राजभवन पहुंचा तब कहा गया कि पहले नेता का चुनाव करिए फिर आइए । लेकिन इस उठापटक के जरिये कमलनाथ ने खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित कर दिया । कांग्रेस की अधिकांश टिकिटें चूंकि कमलनाथ ने अपने चहेतों को ही बांटी थी इसलिए जाहिर है चुने हुए विधायकों में कमलनाथ के समर्थक ही ज्यादा थे और 11 तारीख की रात से ही जय - जय कमलनाथ होने लगा था । जाहिर है ऐसा करने के बाद ये अवधारणा प्रबल हो गई कि कमलनाथ ही कांग्रेस के सर्वेसर्वा हैं। यद्यपि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पूरे दिन भोपाल में ही कमलनाथ के साथ रहै लेकिन वे उनके मन को नहीं पढ़ सके। कमलनाथ के बारे में ये सर्वविदित है कि वे राजनीति में प्रबंधन का बड़ी ही चतुराई से उपयोग करते हैं और दिल की बजाय दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। श्री सिंधिया इस मुगालते में रह गए कि बीते कुछ वर्षों में राहुल गांधी से उनकी निकटता उन्हें मप्र की सत्ता तक पहुंचा देगी लेकिन वे भूल गए कि कमलनाथ गांधी परिवार से तीन पीढ़ी से जुड़े हुए हैं। और फिर सबसे बड़ी बाधा दिग्विजय सिंह रहे जिनकी वजह से 1993 में ज्योतिरादित्य के पिता स्व. माधवराव सिंधिया भी भोपाल का सिंहासन पाने से चूक गए थे। बहरहाल दो दिन की अनिश्चितता और खींचातानी के बाद अंतत: बाजी कमलनाथ के पक्ष में आ गई। वैसे देखें तो अगर कमलनाथ ने महाकौशल अंचल में कांग्रेस को जबरदस्त सफलता दिलवाई तो चंबल संभाग में श्री सिंधिया के प्रभावस्वरूप भाजपा का सूपड़ा साफ  हो गया। भाजपा द्वारा ग्वालियर में माया सिंह की टिकिट काटे जाने से भी महल से जुड़े लोगों की नाराजगी बढ़ी जिसका लाभ कांग्रेस को मिला लेकिन कमलनाथ की मोर्चेंबंदी और उसको दिग्विजय सिंह का समर्थन मिलने से सिंधिया घराना एक बार मप्र की सत्ता तक पहुंचने से वंचित कर दिया गया। जबकि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का निशाना ज्योतिरादित्य पर ही रहा। वैसे जहां तक कमलनाथ का प्रश्न है तो अधिक उम्र को छोड़ दें तो इस पद के लिए वे ही सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति हैं। उनका प्रशासनिक अनुभव, सम्पर्क शैली, विरोधी को भी सिर से पांव तक उपकृत करने की प्रवृत्ति के साथ सबसे बढ़कर विकासमूलक राजनीति वे गुण हैं जिनके कारण वे एक सफल और लोकप्रिय राजनेता के रूप में स्थापित हो सके। भले ही मप्र में इसके पहले तक उनका प्रभावक्षेत्र महाकौशल के कुछ जिलों तक सीमित रहा किन्तु उनके समर्थक पूरे प्रदेश में हैं। वे भले 1980 में यहां इंदिरा जी की कृपा से लोकसभा चुनाव लडऩे कोलकाता से आये किन्तु उसके बाद मप्र की राजनीति से दूर नहीं गए।  मुख्यमंत्री बनने की इच्छा उनकी बहुत पुरानी है किंतु अब जाकर वह पूरी हुई। ये भी सही है कि प्रदेश अध्यक्ष बनते ही उनकी आक्रामक शैली ने कांग्रेस को लंबे अरसे बाद लड़ाई में खड़ा किया वरना अरुण यादव के बस में ये कतई नहीं था। कमलनाथ के नेतृत्व में मप्र प्रगति की नई ऊंचाई को छू सकेगा ये उम्मीद उनके विरोधी भी करते हैं क्योंकि जब वे केंद्रीय मंत्री थे तब भाजपा सरकार की किसी भी योजना को मंजूर करवाने में उन्होंने बिना भेदभाव के सहायता की। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर इसका जिक्र सदैव किया करते हैं। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में मप्र बीमारू राज्य के कलंक से मुक्त हो सका और विकास के लिए जरूरी आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ। उद्योग जगत में मप्र की मार्केटिंग भी श्री चौहान ने काफी बेहतर तरीके से की। पर्यटन के क्षेत्र में भी पिछली सरकार ने उल्लेखनीय कार्य किया। कमलनाथ चूंकि स्वयं भी बड़े उद्योगपति हैं इसलिए वे इस दिशा में प्रदेश को और आगे ले जाएंगे ये उम्मीद करना गलत नहीं होगा। दूसरी बात नौकरशाही से उनके बड़े ही आत्मीय सम्बन्ध सदा से रहे हैं इसलिए वे प्रशासन के साथ बेहतर तालमेल बिठा सकेंगे ये भी माना जा सकता है। लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपनी मंत्रीमंडलीय टीम कैसी बनाते हैं। यदि वे दबावमुक्त होकर अपने सहयोगी चुन सके तो बेहतर परिणाम देने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। किसानों की कर्ज माफी के साथ पेट्रोल-डीजल पर कर घटाने जैसे मुद्दे उनकी पहली चुनौती होंगे जिसमें सफलता मिलने पर ही वे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता दिलवा सकेंगे। कमलनाथ की एक दिक्कत वे सात विधायक हैं जो इस सरकार की बैसाखी बने हैं। मयावती और अखिलेश यादव अपने समर्थन को बिना शर्त कह जरूर रहे हैं लेकिन वे इसकी कितनी कीमत वसूलेंगे ये अभी से कहना कठिन है और फिर भाजपा भी घायल शेर की तरह से यदि पलटवार कर बैठे तो सरकार की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। खैर ये वक्त कमलनाथ को शुभकामनाएं देने का है क्योंकि उनकी सफलता और सरकार के सुचारू संचालन में ही मप्र की बेहतरी निहित है। कमलनाथ ने शिवराज सिंह से अपनी मित्रता का उल्लेख करते हुए अपने रचनात्मक दृष्टिकोण का परिचय दे दिया है। भाजपा एक मजबूत विपक्ष के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करे ये भी अपेक्षित है। जनादेश बड़ा ही अभूतपूर्व है। जिसका आशय नियंत्रण और संतुलन बनाये रखना है जो लोकतंत्र की आत्मा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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