Tuesday 4 December 2018

अदालत गवाह और सुबूत पर चलती है जोसेफ साहेब

सर्वोच्च न्यायालय से बीते सप्ताह सेवा निवृत्त हुए न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ  उन चार न्यायाधीशों में से एक थे जिन्होंने गत जनवरी माह में पत्रकार वार्ता के माध्यम से तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध मोर्चा खोलकर सनसनी मचा दी थी। उन चारों में वरिष्ठतम श्री चेलमेश्वर पहले ही निवृत्त हो चुके हैं और न्यायमूर्ति श्री लोकुर इसी महीने निवृत्त हो जाएंगे। चौथे श्री रंजन गोगोई वर्तमान में प्रधान न्यायाधीश हैं। उनकी सेवा निवृत्ति में अभी एक वर्ष है। पद मुक्त होने के बाद श्री चेलमेश्वर ने विभिन्न समारोहों में देश की न्याय व्यवस्था, अभिव्यक्ति की आज़ादी और ऐसे ही कुछ मुद्दों पर जिस तरह की टिप्पणियां कीं उससे लगा कि श्री मिश्रा के विरुद्ध पैदा हुई खुन्नस कम नहीं हुई। लेकिन श्री जोसेफ  ने तो पद से हटते ही जो तेवर दिखाए उनसे ऐसा लगता है कि वे अभी भी लडऩे के मूड में हैं। बीते दो दिनों में उन्होंने श्री मिश्रा पर जो आरोप लगाए वे थे तो लगभग पुराने लेकिन गत दिवस दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने ये कहकर सुर्खियां बटोरने का प्रयास किया कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश किसी बाहरी स्रोत के प्रभाव में थे जो उन्हें रिमोट कंट्रोल से संचालित कर रहा था। लेकिन ज्यादा कुरेदे जाने के बाद भी श्री जोसफ ने उस स्रोत का ब्यौरा देने से इंकार कर दिया। किसी खास मामले पर इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर भी उन्होंने क्षमा मांगते हुए इसके आगे कुछ बताने से इंकार कर दिया। बहरहाल ये जरूर कहा कि पत्रकार वार्ता के बाद सर्वोच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली में सकारात्मक सुधार हुआ। बाहरी स्रोत के बारे में किसी भी जानकारी देने से परहेज करते हुए श्री जोसेफ ने कहा कि पत्रकार वार्ता में चुनिंदा मामलों के आवंटन का प्रश्न उसी से जुड़ा हुआ था। ये पहला अवसर है जब सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश पर रिमोट कंट्रोल से संचालित बाहरी प्रभाव में काम करने जैसा आरोप उन्हीं के सहयोगी रहे न्यायाधीश ने लगाया है। अत: इसे केवल बौद्धिक चर्चा तक सीमित रखकर उपेक्षित करना उचित नहीं होगा। श्री जोसेफ  ने जो आरोप लगाया वह बेहद गंभीर है क्योंकि देश के प्रधान न्यायाधीश पर बाहरी स्रोत से संचालित होने जैसी बात कोई अन्य कहता तब उसे गैर जिम्मेदाराना मानकर उस पर अदालत की अवमानना का प्रकरण बन सकता था किन्तु श्री मिश्रा के साथ काम करने वाले एक न्यायाधीश ने जो आरोप लगाया वह समूची न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। देश के प्रधान न्यायाधीश पर  रिमोट कंट्रोल से संचालित होने जैसा आरोप यदि सर्वोच्च न्यायालय का ही एक पूर्व न्यायाधीश लगाए तब उसे उसकी खीझ मानकर हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। भले ही श्री जोसेफ  ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश के विरुद्ध ऐलानिया बगावत की हो लेकिन उनकी योग्यता और वरिष्ठता को देखते हुए उनके आरोप की जांच होनी चाहिए क्योंकि सर्वोच्च का प्रधान न्यायाधीश ही यदि रिमोट कंट्रोल के नियंत्रण में हो तब निचले स्तर पर क्या होता होगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। बड़े-बड़े वकील तक किसी याचिका को पेश करने के पहले जब पीठ बदलने तक रुकने की बात कहते हैं तब मन में सन्देह उत्पन्न होता है। आज के दौर में ये कहने में भी कोई संकोच नहीं होता कि न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार के विषाणु प्रविष्ट हो चुके हैं लेकिन ये पहला मौका होगा जब न्याय की सर्वोच्च आसंदी पर बैठ चुका व्यक्ति ही उसके मुखिया की निष्पक्षता और न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधे-सीधे आरोप लगा रहा है। लेकिन अब श्री जोसेफ  पर भी अपने आरोप की सच्चाई को साबित करने का नैतिक दबाव आ गया  है। वे केवल ये कहकर नहीं बच सकते कि इसके आगे नहीं बढऩा चाहता। पूरी उम्र अदालत में गुजारने के बाद उन्हें ये बताना या समझाना तो धृष्टता होगी कि न्याय प्रक्रिया गवाह और सुबूत पर आश्रित होती है और महज आरोप लगाने मात्र से कोई दोषी नहीं माना जा सकता। दंड प्रक्रिया तो बिना साक्ष्य और प्रमाण के एक कदम आगे नहीं बढ़ सकती। उस आधार पर श्री जोसेफ  का कर्तव्य बनता है कि वे उस कथित बाहरी स्रोत को उजागर करें जो रिमोट कंट्रोल से तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पर प्रभाव डालता था। उन्हें उन मामलों का भी खुलासा करना चाहिए जो उस बाहरी दबाव से प्रभावित हुए। यदि वे ऐसा नहीं करते तब उन पर भी ये पलटवार हो सकता है कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश के विरुद्ध छेड़ा गया अभियान भी किसी बाहरी प्रभाव से संचालित हो रहा था। न्यायपालिका और न्यायाधीशों पर उंगलियां पहले भी उठी हैं। सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसले न्यायविदों तो क्या आम जनता तक के गले नहीं उतरे। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय से चंद रोज पहले निवृत्त हुए न्यायाधीश द्वारा पूर्व प्रधान न्यायाधीश पर रिमोट कंट्रोल से संचालित बाहरी प्रभाव के अंतर्गत काम करने का आरोप लगाया जाना झकझोर देने वाला है। उचित होगा यदि वर्तमान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई खुद होकर इसका संज्ञान लें और श्री जोसेफ  से उनके आरोप को साबित करने कहें। ऐसा करना इसलिये जरूरी है क्योंकि श्री गोगोई भी उन चार न्यायाधीशों में शरीक थे जिन्होंने पद पर रहते हुए ही तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर आक्षेप लगाकर पूरे देश को हिला दिया था। इसके पहले कि कोई और श्री जोसफ  पर रिमोट कंट्रोल से संचालित बाहरी प्रभाव में श्री दीपक मिश्रा को निराधार कठघरे में खड़ा करने का आरोप लगाए, उन्हें आपने आरोप के पक्ष में प्रमाण देना चाहिए। वरना राजनीति की तरह ही  इस तरह के हवाई आरोप - प्रत्यारोप न्यायपालिका में भी शुरू हो जाएंगे और वह स्थिति किसी भी दृष्टि से अच्छी नहीं होगी ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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