Thursday 20 December 2018

डाटा तो फिर भी बिकेगा

अपने देश में कोई भी योजना अथवा निर्णय कब बदल जाये कहना कठिन है। आधार को लेकर गत दिवस केंद्र सरकार द्वारा किया गया फैसला इसका प्रमाण है। बैंक खाता अथवा मोबाइल सिम के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म कर दी गई। यदि कोई इस हेतु दबाव डाले तो भारी-भरकम जुर्माने के साथ ही सजा का प्रावधान भी कर दिया गया। हालांकि व्यक्ति स्वेच्छा से चाहे तो आधार को बतौर पहिचान दे सकता है। दरअसल ग्राहकों द्वारा बैंकों के अलावा टेलीकॉम कंपनियों को प्रदत्त आधार से उसका व्यक्तिगत डाटा डाटा चोरी होने के आरोप की वजह से सरकार को सम्भवत: ये कदम उठाना पड़ा होगा। यद्यपि इस निर्णय के बाद भी शासन की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी को आधार देना पड़ेगा। बहरहाल जो भी हो किन्तु भारी-भरकम रकम खर्च करने के बाद भी आधार को लेकर व्याप्त विवाद और अनिश्चितता से प्रमाणित हो गया कि हमारे देश में कोई भी बड़ा कदम पर्याप्त तैयारी और आवश्यक ढांचा खड़ा किये बिना ही शुरू कर दिया जाता है जिसके कारण उसके फायदे तो पीछे चले जाते हैं और नुकसान सामने आकर परेशानी पैदा करते हैं। नोटबंदी  और जीएसटी जैसे अच्छे कदम भी यदि आलोचना के भागीदार बने तो उसकी वजह भी वही रही। निजी टाटा चोरी का धंधा विश्वव्यापी है। सरकार का ताजा फैसला उसे कितना रोक सकेगा ये कहना कठिन है क्योंकि बैंक खाते और मोबाइल सिम हेतु आधार के लिए जोर देने पर कड़ी सजा एवं भारी जुर्माने के बाद भी डाटा बिकेगा। इंटरनेट के दौर में निजता भी उपभोक्ता वस्तु बनकर रह गई है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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