Saturday 14 December 2019

माफिया उन्मूलन : सरकारी मुख्यालय से हो शुरुवात



मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों को माफिया के विरुद्ध निर्णायक मुहिम छेडऩे का जो आदेश दिया वह स्वागतयोग्य है। प्रदेश भर से आये उच्च अधिकारियों को उन्होंने जिस सख्त अंदाज में निर्देश दिए यदि उसका सही-सही पालन हो गया तो निश्चित रूप से ये बड़ी उपलब्धि होगी। माफिया शब्द से साधारण तौर पर अभिप्राय अपराधी गिरोहों से होता है लेकिन धीरे-धीरे सफेदपोश माफिया भी अस्तित्व में आता गया और आज आलम ये है कि कोई भी ऐसा क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसका माफियाकरण न हो गया हो। एक समय था जब अपराधी तत्व राजनेताओं के संरक्षण में पलते रहते थे। लेकिन कालान्तर में वे खुद ही राजनेता बन गए। हालात यहाँ तक आ गए कि देश की संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि चुनकर आने लगे जिन पर संगीन अपराधों के मुकदमे चल रहे हैं। फूलन देवी का लोकसभा के लिए चुना जाना काफी कुछ कह गया। अनेक ऐसे कुख्यात अपराधी तत्व हैं जो कत्ल या उस जैसे ही किसी अपराध के प्रकरण में जेल में बंद रहने के बाद भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। ये विडंबना ही है कि चुनाव जीतने की क्षमता वाले उम्मीदवार उतारने की रणनीति के चलते राजनीतिक दलों ने प्रत्याशी की अपराधिक अपराधिक पृष्ठभूमि को अनदेखा करने की आदत डाल ली है। राजनीति और अपराध का गठजोड़ जब पूरी तरह सफलतापूर्वक स्थापित हो गया तब अन्य क्षेत्रों में भी माफिया का प्रवेश हुआ और स्थिति यहाँ तक बिगड़ गई कि शासन, प्रशासन, उद्योग-व्यापार, सभी में सीधे या परोक्ष रूप से माफिया का दबदबा बढ़ता गया। भू माफिया, शराब माफिया, दूध माफिया से बढ़ते-बढ़ते बात मीडिया माफिया तक आ पहुँची है। किसी भी क्षेत्र में गलत काम करने वालों का संगठित गिरोह माफिया कहा जा सकता है। उस दृष्टि से देखें तो कमलनाथ ने बहुत ही सही सोच का परिचय दिया। अभी तक होता ये था कि सरकार द्वारा कड़ाई बरतने की हिदायत मिलते ही पुलिस और प्रशासन मिलकर स्थापित अपरधियों की पकड़-धकड़ कर दिया करते थे। लेकिन मुख्यमंत्री ने माफिया विरोधी मुहिम को व्यापक रूप देने का हुक्मनामा जारी करते हुए अधिकारियों को कड़े शब्दों में समझा दिया कि ढिलाई बरतने पर उनकी खैर नहीं रहेगी। जैसे समाचार मिल रहे हैं उनके अनुसार प्रशासनिक अमला माफिया विरोधी अभियान में जुट गया है। लेकिन सवाल ये है कि पुलिस और प्रशासन के अनेक जिम्मेदार लोगों का माफिया से जो याराना है उसे मुख्यमंत्री किस तरह रोक सकेंगे? सही बात तो यही है कि माफिया के विस्तार में राजनीति, पुलिस और प्रशासन का ही योगदान है। अपराधी प्रवृत्ति एक मानसिकता है लेकिन संगठित अपराध जब सरकारी संरक्षण में चलने लगते हैं तब उसे माफिया की हैसियत मिल जाती है। उस लिहाज से कमलनाथ को चाहिए कि वे माफिया विरोधी अभियान का शुभारम्भ भोपाल स्थित सचिवालय से करें। सचिवालय में घूमने वाले दलाल किस-किस अधिकारी से मिलते हैं उसका पता किया जाए तो ये बात उजागर होते देर नहीं लगेगी कि माफिया राज का उद्गम स्थल सरकार का अपना मुख्यालय ही है। राजधानी में बैठे अनेक पत्रकार भी सत्ता के दलाल बनकर माफिया के कारोबार में मददगार बनते सुने जा सकते हैं। मुख्यमंत्री की मंशा पर कोई शक किए बिना ये कहना सर्वथा उचित रहेगा कि जब तक सरकार अपने घर की सफाई नहीं करती तब तक माफिया का उन्मूलन नहीं हो सकता। हाल ही में इंदौर के एक अखबार मालिक के कथित अवैध कारोबार को सरकार ने नेस्तनाबूत कर दिया। इसके पीछे जो वजह बताई गई वह हनीट्रैप नामक उस कांड से जुड़ी हुई है जिसमें अनेक राजनेताओं तथा आला अधिकारियों की रंगरेलियों की सचित्र दास्तान का पर्दाफाश हुआ। सरकार द्वारा उक्त अखबार मालिक और उसके होटलों इत्यादि पर जिस तरह से बुलडोजर चलाया गया उसे लेकर तरह-तरह की बातें सोशल मीडिया पर चल रही हैं। उक्त अख़बार मालिक की काली करतूतों से किसी को सहानुभूति नहीं हो सकती लेकिन उसको बर्बाद किये जाने की वजह यदि बड़ी हैसियत वाले तमाम नेताओं और अधिकारियों की इज्जत उतरने का खौफ  है तब मुख्यमंत्री को चाहिये वे इस मामले में उछल रहे आरोपों को लेकर अपनी सरकार की अग्निपरीक्षा देने का साहस भी दिखाएँ। कमलनाथ बहुत ही अनुभवी नेता हैं। उनकी योग्यता और दक्षता असंदिग्ध है किन्तु माफिया के सफाए के लिए उन्होंने नौकरशाहों को जो निर्देश दिए वे तब तक कारगर नहीं हो सकेंगे जब तक सत्ता से जुड़े लोगों के साथ ही प्रशासन और पुलिस की विभिन्न क्षेत्रों के अपराधी तत्वों के साथ चल रही अघोषित भागीदारी पर शिकंजा नहीं कसा जाता। बीते दिनों प्रदेश में रेत के ठेके नीलाम किये गए। मुख्यमंत्री यदि सही-सही पता कर लें कि जिन लोगों ने आर्थिक मंदी के इस दौर में भी सरकार की उम्मीद से बहुत बढ़कर बोली लगाई वे और उनके साथ कौन-कौन हैं तो उनको माफिया की वास्तविक स्थिति पता चल जायेगी। यदि पुलिस और प्रशासन ठान ले तथा राजनेता संरक्षण नहीं दें तो किसी शहर या बस्ती में चलने वाली अधिकतर अपराधिक गतिविधियों को चुटकी बजकर रोका जा सकता है। माफिया राज यदि आज समूची व्यवस्था पर हावी है तो उसके लिये सरकारी अमला सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। मप्र अपेक्षाकृत शांत राज्य है और यहाँ कानून व्यवस्था भी काफी अच्छी मानी जाती है। लेकिन समय के साथ ही इस राज्य में भी उन समस्त बुराइयों का पदार्पण होता गया जिनके लिए उप्र और बिहार को बदनाम किया जाता रहा। खैर, कमलनाथ की कोशिश को देर आयद दुरुस्त आयद मानकर उम्मीद की जानी चाहिए कि ज्यादा न सही थोड़ा सा भी कुछ हो गया तो वह भी राहत की बात होगी। लेकिन मुख्यमंत्री की निष्पक्षता तभी साबित हो सकेगी जब वे शासन -प्रशासन और अपनी पार्टी के माफिया के साथ चले आ रहे गठबंधन को तहस-नहस करने की हिम्मत दिखाएँ। यदि वे ऐसा कर सके तब मप्र को विकसित राज्य बनाने का सपना साकार हो सकेगा। वरना जो चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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