Saturday 28 December 2019

नीति-निर्णय अच्छे पर नौकरशाही को कसना होगा



मप्र की कमलनाथ सरकार अपना एक वर्ष पूरा कर चुकी है। उसके सिर पर मंडराने वाली अस्थिरता की तलवार भी दूर हो गई है। कुशल और अनुभवी राजनेता की तरह उन्होंने दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे अपने प्रतिद्वंदियों को भी ठंडा कर दिया। कमलनाथ मुख्यमंत्री के साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इस तरह सत्ता और संगठन दोनों पर उनका नियंत्रण है। बीते एक साल के दौरान उन्होंने प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने हेतु काफी प्रयास किये। इंदौर में बहुत बड़ा निवेशक सम्मलेन भी आयोजित किया। हालांकि उसमें जो निवेश प्रस्ताव आये उनमें से कितने जमीन पर उतरेंगे ये अभी स्पष्ट नहीं है किन्तु प्रदेश सरकार द्वारा नये उद्योग लगाने के लिए सरकारी औपचारिकताओं की समय सीमा तय करने की जो व्यवस्था की जा रही है , वह सही दिशा में उठाया कदम है। बीते अनेक सालों से प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए कवायद जारी है। पिछली शिवराज सरकार ने भी खूब निवेशक सम्मलेन किये लेकिन उनका समुचित लाभ नहीं मिल सका। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों को तो हलके में नहीं लिया जा सकता लेकिन नौकरशाही की कार्यशैली में अपेक्षित सुधार नहीं होने से बात आगे नहीं बढ़ सकी। कमलनाथ खुद भी औद्योगिक पृष्ठभूमि से हैं और देश के बड़े औद्योगिक घरानों से उनका निकट सम्बन्ध है। अतीत में वे केंद्र सरकार में वाणिज्य मंत्रालय भी संभाल चुके हैं। इस वजह से उन्हें उद्योग लगाने वालों को सरकारी विभागों से होने वाली दिक्कतों का पूरा एहसास है। संभवत: इसीलिये उन्होंने औद्योगिक इकाई स्थापित करने की दिशा में आने वाली परेशानी दूर करने के लिए सरकारी विभागों की तरफ  से होने वाले विलम्ब को खत्म करने की व्यवस्था की। राजनीतिक दृष्टिकोण से अलग हटकर देखें तो मुख्यमंत्री ने रचनात्मक सोच का परिचय दिया। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बनकर गये तब उन्हें शासन - प्रशासन का रत्ती भर अनुभव नहीं था। लेकिन उन्होंने बिना वक्त गंवाए राज्य की नौकरशाही को उद्योग-धंधों के प्रति उदार और सहयोगात्मक रवैया अपनाने के लिए प्रेरित किया। और जल्द ही उसके अच्छे नतीजे आने लगे। श्री मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी कार्यशैली बहुत ही सहायक बनी। कमलनाथ को बहुत ही व्यावहारिक नेता माना जाता है। एक साल के भीतर उन्होंने ये समझ लिया कि मप्र के औद्योगिक विकास में सबसे बड़ा रोड़ा यहाँ की नौकरशाही का रवैया है जो किसी भी काम में अड़ंगा लगाने में सिद्धहस्त है। शिवराज सिंह निश्चित रूप से एक लोकप्रिय जननेता थे लेकिन वे नौकरशाही पर नियंत्रण नहीं रख पाये जिसकी वजह से उनकी सरकार औद्योगिक विकास के पैमाने पर अपेक्षित सफलता अर्जित नहीं कर सकी। कमलनाथ ने उस कमी को भांपकर नौकरशाही में कसावट लाने के लिए नए उद्योग हेतु आने वाले आवेदनों से जुड़ी औपचारिकताओं को पूरा करने की समयबद्ध प्रक्रिया तय करने का जो निर्णय लिया वह निश्चित रूप से अच्छे नतीजे दे सकेगा। लेकिन पिछले अनुभवों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि सचिवालय के अलावा अन्य शासकीय दफ्तरों में बैठे छोटे और बड़े बाबू भी बहुत ही मोटी चमड़ी वाले हैं। उनमें पेशेवर सोच नाम की चीज नहीं होने से वे किसी भी अच्छी योजना का सत्यानाश करने में नहीं हिचकते। मुख्यमंत्री को ये देखना होगा कि उनके अच्छे फैसले पूरी तरह से अमल में आ जाएं। इस हेतु ऊपर से लेकर नीचे तक नजर रखनी होनी क्योंकि मप्र में सरकारी मशीनरी की कार्य संस्कृति अभी भी कई दशक पुरानी है। कमलनाथ ने यदि उसे सुधार लिया तब औद्योगिक विकास की दिशा में तय किये गए लक्ष्य हासिल किये जा सकेंगे वरना वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति बनी रहेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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