यद्यपि यह आम जनता से जुड़ा हुआ विषय नहीं है इसलिए इस पर सार्वजानिक चर्चा अपेक्षाकृत कम ही होगी लेकिन सुरक्षा से सम्बन्धित होने के कारण सीडीएस (चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ ) पद का सृजन निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण निर्णय है जो वर्षों से लंबित था। मोदी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए आज ही सेवानिवृत्त हो रहे थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत को इस पद पर नियुक्त करने का आदेश पारित कर दिया। सीडीएस की आयु सीमा भी 65 वर्ष रखी गई है। सीडीएस दरअसल सेना के तीनों अंगों के बीच समन्वयक की भूमिका का निर्वहन करने के साथ ही रक्षा संबंधी जरूरतों को लेकर सलाहकार का काम भी देखेंगे। वैसे तो अजीत डोभाल के रूप में पूर्णकालिक रक्षा सलाहकार पहले से है लेकिन उनके पास और भी ऐसे कार्य है जिनकी वजह से सेना की जरूरतों के साथ रणनीतिक निर्णयों के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता लम्बे समय से अनुभव की जा रही थी। कारगिल युद्ध के दौरान सेना के सभी अंगों के बीच समन्वय की कुछ कमी की वजह से जो नुकसान उठाना पड़ा उसके बाद से ही इस पद की जरूरत पर जोर दिया जाता रहा था। लेकिन इच्छाशक्ति की कमी की वजह से बात टलती चली गई। बीते कुछ समय से केंद्र सरकार इस बारे में गम्भीर थी। विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन दोनों की तरफ से सीमा पर मौजूद खतरे को दृष्टिगत रखते हुए ये जरूरी हो गया था कि रोजमर्रे की सैन्य गतिविधियों के सुचारू संचालन में बार-बार राजनीतिक नेतृत्व का मुंह नहीं ताकना पड़े और सरकार के उच्च स्तर को भी बजाय सेना के तीनों अंगों से बात करने के एक ही सूत्र से सारी जानकारी मिलती रहे। मोदी सरकार ने सेना को सुसज्जित करने के साथ ही मोर्चे पर कार्रवाई करने के मामले में काफी छूट दी है। इसके अच्छे परिणाम भी आये। रक्षा उपकरणों की जो खरीदी मनमोहन सरकार ने धीमी कर रखी थी उसमें भी तेजी लाई गयी और बजाय एक या दो देशों पर निर्भर रहने के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न देशों से बाकायदा मोलभाव करते हुए अस्त्र-शस्त्र खरीदे जाने के अलावा देश में उनके उत्पादन संबंधी अनुबंध भी उन देशों से किये गए। ये बात भी सही है कि भारत जैसे विविधता भरे देश में आंतरिक समस्याओं में केंद्र सरकार इतनी उलझी रहती है कि उसके पास रक्षा मामलों पर समुचित ध्यान देने हेतु समय कम पड़ता है। इस वजह से महत्वपूर्ण फैसले लालफीताशाही के शिकार होकर रह जाते हैं। वाजपेयी सरकार के समय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज सियाचिन दौरे पर गए तब उन्हें मालूम हुआ कि सैनिकों को बर्फ पर चलने के लिए आइस स्कूटर दिए जाने की फाइल लम्बे समय से रक्षा मंत्रालय में दबी पड़ी है। उस पर नाराज होते हुए जॉर्ज ने आदेश दिया कि उसके लिए जिम्मेदार मंत्रालय के अधिकारियों को कुछ दिनों तक सियाचिन में रखा जाए जिससे उन्हें सैनिकों की मुश्किलों की जानकारी मिले। ये बात भी सही है कि सेना के अधिकारी सिविल प्रशासन के साथ समुचित संवाद नहीं कर पाते क्योंकि दोनों की कार्यशैली में जमीन आसमान का अंतर होता है। सीडीएस उस लिहाज से सेना की समन्वित आवाज सरकार तक पहुँचाने में सेतु का काम करेंगे। तीनों अंगों के बीच बेहतर तालमेल और संवाद के लिए सैन्य पृष्ठभूमि का व्यक्ति ही सर्वथा उपयुक्त रहेगा ये बात विभिन्न अध्ययनों से साबित हो चुकी है। प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के लिए भी तीन सेनाध्यक्षों से संवाद करने की बजाय समूची सेना के एक मुखिया से संवाद निर्णय और रणनीति दोनों के लिए फायदेमंद रहेगा। दुनिया के विभिन्न देशों में सीडीएस का पद है। और फिर जनरल रावत ने बतौर थलसेनाध्यक्ष उल्लेखनीय काम किया। सर्जिकल स्ट्राइक के अलावा सीमा पार से होने वाली घुसपैठ रोकने में उनकी रणनीति कारगर रही। चीन से सटी सीमा पर भी भारतीय सेना ने अनेक विषम परिस्थितियों में सराहनीय काम किया। सबसे बड़ी बात ये है कि वे काफी आक्रामक माने जाते हैं जो शत्रु पर मनोवैज्ञनिक दबाव बनाने में सहायक होता है। सीडीएस प्रधानमंत्री को आणविक हथियारों सबंधी सलाह देने हेतु भी अधिकृत होंगे जो बहुत ही जिम्मेदारी भरा काम है। कुल मिलाकर केंद्र सरकार का ये निर्णय रक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के साथ ही निर्णयात्मक अनिश्चितता को दूर करने वाला होगा। सेना के तीनों अंगों के लिए भी अपने ही बीच के व्यक्ति के जरिये सरकार के साथ सम्पर्क करना अपेक्षाकृत आसान रहेगा। जनरल रावत का मौजूदा सरकार के साथ अच्छा समन्वय बना रहने से ये उम्मीद की जा सकती है कि सीडीएस पद का सृजन अपनी सार्थकता को साबित करेगा।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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