Thursday 26 December 2019

अरुंधती राय : विकृत मानसिकता की प्रतीक



कुछ लोग सुर्खियों में बने रहने के लिए ऊलजलूल बातों का सहारा लिया करते हैं। कथित सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका अरुंधती राय भी उन्हीं में से एक हैं। इनके उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स पर जब बुकर पुरस्कार मिला तब इनकी शख्सियत का संज्ञान लिया गया। अरुंधती कहने को तो बहुत कुछ करती हैं। वे पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी लड़ती हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन में इनकी उपस्थिति यदा-कदा दिखाई देती है। इसके अलावा ये फिल्मों में अभिनय के साथ ही पटकथा लेखन से भी जुड़ी हुई हैं। लेकिन इनका जिक्र अक्सर किसी न किसी विवाद के सिलसिले में होता है। इनकी कार्यप्रणाली में वामपंथी सोच भी परिलक्षित होती है। संक्षेप में कहें तो अरुंधती चंद उन लोगों में से हैं जो मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग का दावा करते नहीं थकते और इन्हें हर चीज में खामी नजर आती है। कश्मीर की आजादी का समर्थन करते हुए टुकड़े-टुकड़े गैंग की पक्षधर बनने में भी ये न डरती हैं और न ही हिचकतीं। कभी-कभी तो लगता है अरुंधती ऐसी किसी विदेशी कार्ययोजना का हिस्सा हैं जो भारत को भीतर से कमजोर करने में जुटी हुई है। उन जैसे तमाम लोग हैं जो कभी असहिष्णुता का रोना रोते हुए देश के भीतर भय का माहौल बनाते हैं तो कभी अवार्ड वापिसी का ढोंग रचकर खुद को त्याग की प्रतिमूर्ति साबित करने से बाज नहीं आते। अरुंधती का उल्लेख करने के पीछे वजह गत दिवस दिल्ली विवि के छात्रों के बीच दिया उनका वह बयान है जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर हेतु पूछताछ किये जाने पर गलत जानकारी देने सुझाव देते हुए कहा कि अपना नाम रंगा बिल्ला या कूंग फू  कुत्ता बताने के अलावा घर का पता रेस कोर्स (नया नाम लोक कल्याण मार्ग) अर्थात दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री आवास लिखवायें। उन्होंने अपना फोन नम्बर भी गलत बताने की समझाइश दे डाली। दिल्ली विवि के छात्रों द्वारा नागरिकता संबंधी नई व्यवस्थाओं के विरोध में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए अरुंधती ने इस बात पर भय व्यक्त किया कि राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर (एनपीआर) में दर्ज जानकारी ही आगे जाकर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनसीआर) का आधार बन जायेगी। उन्होंने समूची प्रक्रिया को मुस्लिम विरोधी बताते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा। देश के नागरिक के तौर पर उन्हें या किसी और को भी सरकार की नीतियों और निर्णयों से असहमत होते हुए उनकी आलोचना करने का अधिकार है लेकिन कानून की शक्ल में लागू किसी व्यवस्था का उल्लंघन अपराध की शक्ल में आता है। उस दृष्टि से अरुंधती का बयान निश्चित तौर पर आपत्तिजनक है। किसी सरकारी दस्तावेज के लिए जान-बूझकर गलत जानकारी देने का अर्थ सरकार को धोखा देना है। दूसरे शब्दों में ये चार सौ बीसी है। जिसके लिए दंड का प्रावधान है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाली अरुंधती को क्या इतना भी नहीं पता कि अपनी पहिचान छिपाना संदेह को जन्म देता है। और फिर यदि कोई व्यक्ति अपना नाम, पता और फोन नम्बर जान-बूझकर गलत बताता है तब उसका उद्देश्य अपराधिक ही हो सकता है। डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने अरुंधती पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार किये जाने की जो मांग की है वह पूरी तरह सही है। सार्वजानिक रूप से उन्होंने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में गलत जानकारी देने की जो सलाह दी वह सरकार के विरुद्ध एक तरह की बगावत ही है। कोई अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति यदि इस तरह की बातें कहता तब उसे माफ किया भी जा सकता था लेकिन अरुंधती को तो ज्ञान का अजीर्ण है। इसलिए बेहतर होगा उनके विरूद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए जिससे कोई और उन जैसी जुर्रत नहीं कर सके। बड़ी बात नहीं ये बयान भी देश को कमजोर करने वाली ताकतों की किसी दूरगामी योजना का हिस्सा हो। ये पहला अवसर नहीं है जब अरुंधती ने देश हित के विरुद्ध बात कही हो। उन जैसे कुछ और लोग भी देश में हैं जो अदृश्य ताकतों से निर्देशित और नियंत्रित होकर देश को खंडित करने में जुटे हुए हैं। ये बात भी सर्वविदित है कि कुछ विदेशी एजेंसियां भारत के ऐसे लोगों को पुरस्कृत करते हुए उन्हें मालामाल करती हैं जो व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह का वातावरण बनाकर देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने में सहायक बन सकें। डा. स्वामी ने मांग के अनुसार यदि अरुंधती को राजद्रोह में गिरफ्तार किया जाता है तब अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे का ढोल पीटते हुए टुकड़े-टुकड़े गिरोह के सदस्य पूरे देश में छाती पीटते नजर आने लगेंगे और उनके सरपरस्त कुछ टीवी पत्रकार अपने शो के जरिये ऐसा जाहिर करेंगे मानों देश में लोकतंत्र समाप्त हो गया हो। बीते कुछ वर्षों में देश के भीतर सक्रिय विघटनकारी ताकतों के बीच परदे के पीछे गठबंधन हो चुका है। उनके नाम और चेहरे भले ही अलग-अलग हों लेकिन उनका मकसद चूँकि एक ही है इसलिए वे तमाम मतभेदों के बाद भी एकजुट हो जाते हैं। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि मोदी सरकार आने के बाद हजारों ऐसे संगठनों को मिलने वाला विदेशी अनुदान बंद हो गया जिनकी गतिविधियाँ संदिग्ध थीं। किसी भी घटना पर दिल्ली के इण्डिया गेट सहित देश के विभिन्न शहरों के मुख्य स्थलों पर मोमबत्तियां लेकर व्यक्त की जाने वाली संवेदनशीलता के पीछे दरअसल विदेशी अनुदान छिन जाने का दर्द भी है। किसी भी मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाकर देश में तनाव उत्पन्न करने में ऐसे लोगों का ही हाथ है। नागरिकता संशोधन कानून के 
विरोध में मुस्लिम समुदाय को उकसाकर उनको हिंसक आन्दोलन के रास्ते पर धकेलकर इस तबके ने उन्हें अलग थलग कर दिया जो देश को तोडऩे की दूरगामी योजना के लिए जरूरी है। लेकिन उस कदम से मुस्लिम समुदाय पूरे देश की सहानुभूति गँवा बैठा। सरकार द्वारा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के बारे में ज्योंही निर्णय किया त्योंही टुकड़े-टुकड़े गैंग ने अरुंधती के मुंह से गलत जानकारी देने जैसी बेतुकी और गैर कानूनी बात उछलवा दी। लेकिन ये अच्छा हुआ जो उनके इरादे शुरू में ही उजागर हो गए। सरकार को चाहिए अरुंधती पर कड़ी से कड़ी कानून सम्मत कार्रवाई करते हुए देशविरोधी तत्वों के हौसले पस्त करे। लोकतंत्र में वैचारिक स्वतंत्रता का तो सम्मान होना चाहिए किन्तु देशविरोधी बातें करने वालों की जुबान पर ताला लगाना भी उतना ही जरूरी है। अरुंधती के जिस उपन्यास को बुकर पुरस्कार मिला उसके कुछ हिस्सों में जिस तरह की गंदगी है उससे इनकी प्रदूषित सोच का पता किया जा सकता है।
अरुंधती राय : विकृत मानसिकता की प्रतीक

कुछ लोग सुर्खियों में बने रहने के लिए ऊलजलूल बातों का सहारा लिया करते हैं। कथित सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका अरुंधती राय भी उन्हीं में से एक हैं। इनके उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स पर जब बुकर पुरस्कार मिला तब इनकी शख्सियत का संज्ञान लिया गया। अरुंधती कहने को तो बहुत कुछ करती हैं। वे पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी लड़ती हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन में इनकी उपस्थिति यदा-कदा दिखाई देती है। इसके अलावा ये फिल्मों में अभिनय के साथ ही पटकथा लेखन से भी जुड़ी हुई हैं। लेकिन इनका जिक्र अक्सर किसी न किसी विवाद के सिलसिले में होता है। इनकी कार्यप्रणाली में वामपंथी सोच भी परिलक्षित होती है। संक्षेप में कहें तो अरुंधती चंद उन लोगों में से हैं जो मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग का दावा करते नहीं थकते और इन्हें हर चीज में खामी नजर आती है। कश्मीर की आजादी का समर्थन करते हुए टुकड़े-टुकड़े गैंग की पक्षधर बनने में भी ये न डरती हैं और न ही हिचकतीं। कभी-कभी तो लगता है अरुंधती ऐसी किसी विदेशी कार्ययोजना का हिस्सा हैं जो भारत को भीतर से कमजोर करने में जुटी हुई है। उन जैसे तमाम लोग हैं जो कभी असहिष्णुता का रोना रोते हुए देश के भीतर भय का माहौल बनाते हैं तो कभी अवार्ड वापिसी का ढोंग रचकर खुद को त्याग की प्रतिमूर्ति साबित करने से बाज नहीं आते। अरुंधती का उल्लेख करने के पीछे वजह गत दिवस दिल्ली विवि के छात्रों के बीच दिया उनका वह बयान है जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर हेतु पूछताछ किये जाने पर गलत जानकारी देने सुझाव देते हुए कहा कि अपना नाम रंगा बिल्ला या कूंग फू  कुत्ता बताने के अलावा घर का पता रेस कोर्स (नया नाम लोक कल्याण मार्ग) अर्थात दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री आवास लिखवायें। उन्होंने अपना फोन नम्बर भी गलत बताने की समझाइश दे डाली। दिल्ली विवि के छात्रों द्वारा नागरिकता संबंधी नई व्यवस्थाओं के विरोध में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए अरुंधती ने इस बात पर भय व्यक्त किया कि राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर (एनपीआर) में दर्ज जानकारी ही आगे जाकर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनसीआर) का आधार बन जायेगी। उन्होंने समूची प्रक्रिया को मुस्लिम विरोधी बताते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा। देश के नागरिक के तौर पर उन्हें या किसी और को भी सरकार की नीतियों और निर्णयों से असहमत होते हुए उनकी आलोचना करने का अधिकार है लेकिन कानून की शक्ल में लागू किसी व्यवस्था का उल्लंघन अपराध की शक्ल में आता है। उस दृष्टि से अरुंधती का बयान निश्चित तौर पर आपत्तिजनक है। किसी सरकारी दस्तावेज के लिए जान-बूझकर गलत जानकारी देने का अर्थ सरकार को धोखा देना है। दूसरे शब्दों में ये चार सौ बीसी है। जिसके लिए दंड का प्रावधान है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाली अरुंधती को क्या इतना भी नहीं पता कि अपनी पहिचान छिपाना संदेह को जन्म देता है। और फिर यदि कोई व्यक्ति अपना नाम, पता और फोन नम्बर जान-बूझकर गलत बताता है तब उसका उद्देश्य अपराधिक ही हो सकता है। डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने अरुंधती पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार किये जाने की जो मांग की है वह पूरी तरह सही है। सार्वजानिक रूप से उन्होंने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में गलत जानकारी देने की जो सलाह दी वह सरकार के विरुद्ध एक तरह की बगावत ही है। कोई अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति यदि इस तरह की बातें कहता तब उसे माफ किया भी जा सकता था लेकिन अरुंधती को तो ज्ञान का अजीर्ण है। इसलिए बेहतर होगा उनके विरूद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए जिससे कोई और उन जैसी जुर्रत नहीं कर सके। बड़ी बात नहीं ये बयान भी देश को कमजोर करने वाली ताकतों की किसी दूरगामी योजना का हिस्सा हो। ये पहला अवसर नहीं है जब अरुंधती ने देश हित के विरुद्ध बात कही हो। उन जैसे कुछ और लोग भी देश में हैं जो अदृश्य ताकतों से निर्देशित और नियंत्रित होकर देश को खंडित करने में जुटे हुए हैं। ये बात भी सर्वविदित है कि कुछ विदेशी एजेंसियां भारत के ऐसे लोगों को पुरस्कृत करते हुए उन्हें मालामाल करती हैं जो व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह का वातावरण बनाकर देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने में सहायक बन सकें। डा. स्वामी ने मांग के अनुसार यदि अरुंधती को राजद्रोह में गिरफ्तार किया जाता है तब अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे का ढोल पीटते हुए टुकड़े-टुकड़े गिरोह के सदस्य पूरे देश में छाती पीटते नजर आने लगेंगे और उनके सरपरस्त कुछ टीवी पत्रकार अपने शो के जरिये ऐसा जाहिर करेंगे मानों देश में लोकतंत्र समाप्त हो गया हो। बीते कुछ वर्षों में देश के भीतर सक्रिय विघटनकारी ताकतों के बीच परदे के पीछे गठबंधन हो चुका है। उनके नाम और चेहरे भले ही अलग-अलग हों लेकिन उनका मकसद चूँकि एक ही है इसलिए वे तमाम मतभेदों के बाद भी एकजुट हो जाते हैं। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि मोदी सरकार आने के बाद हजारों ऐसे संगठनों को मिलने वाला विदेशी अनुदान बंद हो गया जिनकी गतिविधियाँ संदिग्ध थीं। किसी भी घटना पर दिल्ली के इण्डिया गेट सहित देश के विभिन्न शहरों के मुख्य स्थलों पर मोमबत्तियां लेकर व्यक्त की जाने वाली संवेदनशीलता के पीछे दरअसल विदेशी अनुदान छिन जाने का दर्द भी है। किसी भी मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाकर देश में तनाव उत्पन्न करने में ऐसे लोगों का ही हाथ है। नागरिकता संशोधन कानून के 
विरोध में मुस्लिम समुदाय को उकसाकर उनको हिंसक आन्दोलन के रास्ते पर धकेलकर इस तबके ने उन्हें अलग थलग कर दिया जो देश को तोडऩे की दूरगामी योजना के लिए जरूरी है। लेकिन उस कदम से मुस्लिम समुदाय पूरे देश की सहानुभूति गँवा बैठा। सरकार द्वारा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के बारे में ज्योंही निर्णय किया त्योंही टुकड़े-टुकड़े गैंग ने अरुंधती के मुंह से गलत जानकारी देने जैसी बेतुकी और गैर कानूनी बात उछलवा दी। लेकिन ये अच्छा हुआ जो उनके इरादे शुरू में ही उजागर हो गए। सरकार को चाहिए अरुंधती पर कड़ी से कड़ी कानून सम्मत कार्रवाई करते हुए देशविरोधी तत्वों के हौसले पस्त करे। लोकतंत्र में वैचारिक स्वतंत्रता का तो सम्मान होना चाहिए किन्तु देशविरोधी बातें करने वालों की जुबान पर ताला लगाना भी उतना ही जरूरी है। अरुंधती के जिस उपन्यास को बुकर पुरस्कार मिला उसके कुछ हिस्सों में जिस तरह की गंदगी है उससे इनकी प्रदूषित सोच का पता किया जा सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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