Saturday 28 December 2019

लोकतंत्र को रस्ते का माल सस्ते में न समझें



उप्र की योगी सरकार द्वारा बीते दिनों लखनऊ सहित प्रदेश के कुछ और शहरों में हुए हिंसक उपद्रव और तोडफ़ोड़ के दोषियों की गिरफ्तारी के साथ ही सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाए गये नुकसान की भरपाई उपद्रवियों से किये जाने का जो फैसला किया गया उससे भले ही कुछ लोग असहमत हों लेकिन जनांदोलन के नाम पर सरकारी या निजी संपत्ति को क्षति पहुँचाने का जो चलन चल पड़ा है उस पर नियंत्रण लगाना निहायत जरूरी हो गया है। योगी सरकार ने उपद्रवियों की पहिचान कर गिरफ्तारी तो की ही, लगे हाथ उन्हें नुकसान की भरपाई का नोटिस भी थमा दिया। भुगतान नहीं करने पर उनके घर या अन्य संपत्ति की कुर्की किये जाने की घोषणा भी कर दी। इस फैसले का ये कहकर विरोध हो रहा है कि उपद्रव में भाग लेने वाले अधिकांश लोग बेहद गरीब हैं जिनसे नुकसान का हर्जाना वसूलना संभव नहीं है। इसी तरह उन्हें लम्बे समय तक जेल में रखे जाने पर उनके परिजनों के सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने तो बिना समुचित कानूनी प्रक्रिया पूरी किये नुकसान की भरपाई को गैर कानूनी बता दिया। विरोध में और भी तर्क दिए जा रहे हैं। लेकिन पूरे देश में सुलझे दिमाग के लोगों ने योगी आदित्यनाथ के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे देश भर में लागू किये जाने की जरूरत बताई। योगी सरकार के संदर्भित फैसले का एक वर्ग विशेष इसलिए विरोध कर रहा ही क्योंकि इससे प्रभावित होने वाले अधिकतर लोग मुस्लिम समुदाय के हैं। ये भी कहा जा रहा है कि अतीत में हुए पाटीदार, गुर्जर और जाट आन्दोलनों में भी सरकारी और दीगर संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया किन्तु उसके लिए दोषी लोगों को गिरफ्तार तो किया गया लेकिन उनसे नुकसान की भरपाई नहीं की गयी। लोगों को इस बात का भी ज्यादा पता नहीं है कि देश में सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 पहले से लागू है लेकिन उसका उपयोग नहीं होने से जनांदोलनों में सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाना सामान्य प्रक्रिया हो चली है। दिल्ली के जामिया मिलिया विवि में भी बस को आग लगाई गयी। देश के अनेक शहरों में बीते कुछ दिनों में जो भी आन्दोलन हुए उनमें तोडफ़ोड़ और आगजनी भी अनिवार्य रूप से हुई। आन्दोलन की पीठ पर हाथ रखने वाले नेता और संगठन भी हिंसा और तोडफ़ोड़ की आलोचना करते तो हैं लेकिन उससे हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की नैतिकता कोई नहीं दिखाता। योगी सरकार की कड़ाई का असर ये हुआ कि बुलंदशहर के मुस्लिम समुदाय द्वारा अन्दोलन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई हेतु राशि एकत्र कर प्रशासन को सौंप दी। भीड़तंत्र में बदलते जा रहे हमारे लोकतंत्र में दायित्वबोध पूरी तरह से गायब है। राजनीतिक नेतृत्व ही इसके लिए जिम्मेदार है। बिना टिकिट लिए रेलों में भरकर लोगों को दिल्ली ले जाकर रैलियाँ करने से शुरू प्रवृत्ति अब हिंसक हो चली है। योगी सरकार की वैचारिक स्तर पर कितनी भी आलोचना क्यों न हो लेकिन इस मामले में उसका कदम पूरी तरह सही है। लोकतंत्र को रस्ते का माल सस्ते में समझने वालों को ये जान लेना चाहिए कि स्वतंत्रता और स्वच्छन्दता में फर्क होता है और उनके द्वारा किये जाने वाले किसे भी गैर कानूनी कृत्य की सजा उन्हें भोगनी पड़ेगी फिर चाहे वह जेल हो या आर्थिक दंड।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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