Tuesday 3 December 2019

क्या संसद के बाहर यही सुझाव देंगीं जया बच्चन



 कुछ साल पहले की बात है। नागपुर की एक अदालत में एक बलात्कारी को पेशी पर लाया जा रहा था। अचानक महिलाओं की एक भीड़ वहां आई और उस बलात्कारी को पीटने लगी। इसके पहले किसी को कुछ समझ में आता पिटाई के कारण वह मर गया। अदालत परिसर में ऐसी घटना किसी दक्षिण भारतीय फिल्मों में दिखाई जाने वाली अति नाटकीयता का हिस्सा कही जा सकती है। भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) के उस जीवंत उदाहरण पर किसी ने बवाल नहीं मचाया। उलटे उन महिलाओं के दुस्साहस को मर्दानगी बताकर उसकी तारीफ  ही हुई। हालाँकि उस तरह की घटना दोबारा नहीं सुनी गई किन्तु हैदराबाद की महिला चिकित्सक के साथ हुए अमानवीय कृत्य पर गत दिवस राज्यसभा में अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए सपा सांसद और प्रख्यात फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन ने ये कहकर सदन को सनाके में ला दिया कि बलात्कार करने वाले को जनता के हवाले कर दिया जाना चाहिए जिससे वही उसे सजा दे सके। सभापति वेंकैया नायडू तक उनके इस विचार पर सकते में आ गये। भीड़ की हिंसा मोदी सरकार के विरुद्ध विपक्ष का बड़ा हथियार रहा है। अल्पसंख्यकों और गो तस्करों के अलावा कुछ अपराधियों को भीड़ द्वारा मौत के घाट उतारने की अनेक घटनाओं के कारण ऐसा माहौल बना दिया गया कि देश में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची तथा पूरी तरह से अराजकता आ चुकी है। यहाँ तक कि विदेशों में भी मॉब लिंचिंग को लेकर भारत की बदनामी करने का सुनियोजित प्रयास हुआ। लेकिन जब जया जी ने इस तरह का सुझाव संसद के उच्च सदन में दिया तब भले ही उसका स्वागत नहीं हुआ हो लेकिन कोई भी सदस्य यहाँ तक कि सभापति श्री नायडू तक उसको कार्रवाई से निकालने का निर्णय नहीं कर पाए। वैसे वे जब भी सदन में बोलती हैं, काफी आक्रामक रहती हैं। हैदराबाद की घटना से पूरे देश की महिलाएं आक्रोशित हैं। जिस तरह की बात श्रीमती बच्चन ने सदन में कही वैसी ही सदन के बाहर आम जनता के मुंह से सुनाई दे रही है। सोशल मीडिया पर बलात्कारियों को कठोरतम दंड देने के लिए लोग अपने-अपने तरीके से सुझाव दे रहे हैं। उस लिहाज से देखें तो बतौर सांसद श्रीमती बच्चन समाज के एक तबके की भावनाओं को ही संसद में रख रही थीं। लेकिन बलात्कार करने वाले को जनता के हवाले करने या उसकी लिंचिंग जैसा सुझाव देकर उन्होंने अपने गुस्से का इज़हार तो कर दिया लेकिन व्यवहारिक तौर पर किसी इस्लामिक देश में ही ऐसा करना संभव है जहां अपराध की सजा उनके सर्वमान्य धार्मिक ग्रन्थ के मुताबिक ही दी जाती है। रही बात जनता द्वारा किसी अपराधी को उसके किये का दंड देने की तो उसे लेकर ही तो मॉब लिंचिंग को बढ़ावा देने का आरोप विपक्ष द्वारा भाजपा और मोदी सरकार पर लगाया जाता रहा है। जिसमें उनकी अपनी पार्टी सपा भी बाकायदा शामिल रही है। ऐसे में क्या जया जी द्वारा कही गई बात को अमल में लाया जा सकेगा, ये बड़ा सवाल है। और क्या वे सदन के बाहर भी यही बात कहने का साहस कर सकेंगीं? फिल्मों में ऐसे दृश्य कई बार फिल्माए जाते हैं जिनमें किसी अपराधी को नायक या भीड़ मार डालती है। लेकिन भारत सरीखे कानून के राज में इस तरह का सुझाव ऐसा व्यक्ति दे जो कानून बनाने और संविधान के पालन से सीधा जुड़ा हुआ हो, तब आश्चर्य होता है। बावजूद इसके जया जी ने जो कुछ कहा वह भले ही अटपटा लगता हो लेकिन जनभावनाएं यदि उसके पक्ष में हैं तो इससे पता चलता है कि बलात्कारियों को दण्ड देने की मौजूदा प्रक्रिया से आम जनता कितनी असंतुष्ट है। हालाँकि लोगों को सजा देने की छूट देना अराजकता को आमंत्रित करने जैसा होगा लेकिन श्रीमती बच्चन ने एक बहस को जन्म तो दे ही दिया जो वर्तमान न्याय प्रणाली की कमी को उजागर करती है। कड़ी से कड़ी सजा का साधारण तौर पर अभिप्राय मृत्युदंड ही होता है। लेकिन निर्भया कांड के अपराधी अभी तक जीवित आवस्था में हैं। यद्यपि उनकी फांसी सुनिश्चित है परन्तु उसमें इतना लम्बा समय लग जाना अपराध की गम्भीरता को हल्का कर देता है। जया बच्चन फिल्मी हस्ती हैं अत: हो सकता है उनके मन में किसी पटकथा की कल्पना जाग उठी हो। देखना ये है कि अन्य राजनीतिक पार्टियां ख़ास तौर पर उनकी अपनी पार्टी सपा उनके सुझाव पर क्या रुख अपनाती है ? बहरहाल अप्रत्यक्ष तौर पर या गुस्से में ही सही लेकिन श्रीमती बच्चन ने भीड़ की हिंसा या मॉब लिंचिंग को सकारात्मक उद्देश्य से राष्ट्रीय विमर्श का विषय तो बना ही दिया।लेकिन श्रीमती बच्चन को चाहिए कि वे अपनी फिल्मी बिरादरी पर भी इसी तरह का गुस्सा व्यक्त करें जो बलात्कार के दृष्यों को वास्तविक बनाने के फेर में तमाम स्थापित मर्यादाएं तोडऩे पर आमादा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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