Monday 30 December 2019

अपना घर भी साफ करे पत्रकार बिरादरी



मप्र की राजनीति में हलचल मचा देने वाले हनी ट्रैप कांड में हुए खुलासे के अनुसार न सिर्फ राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी अपितु कतिपय पत्रकार भी उसमें लिप्त बताये जा रहे हैं। फर्क  केवल ये है कि एक तरफ नेता और अधिकारी जहां अय्याशी के चक्कर में फंसकर ब्लैकमेल होते रहे वहीं जिन पत्रकारों के नाम उछले हैं वे उन महिलाओं के साथ इस धंधे में शामिल होकर ब्लैकमेलिंग में भागीदार बनते रहे। अखबारी रिपोर्ट के अनुसार जो प्रारंभिक आरोप पत्र दाखिल हुए उनमें नेताओं और अधिकारियों को तो अलग रखा ही गया लगे हाथ पत्रकारों को भी बख्श दिया गया है। यद्यपि ये कहा जा रहा है कि अभी जांच चल रही है और हो सकता है आने वाले दिनों में आरोपियों की सूची में उन लोगों के नाम भी दिखाई दें जो प्रतिष्ठा रूपी खजूर के झाड़ पर बैठे हुए हैं। ये सम्भावना भी जताई जा रही है कि अदालत भी स्वत: होकर आरोप पत्र से बाहर रखे गये उन लोगों को लपेटे में ले सकती है जिन्हें सरकारी जाँच एजेंसी ने अभी तक दूर रखा हुआ है। इस बारे में एक बात तो साफ है कि जिन महिलाओं को हनी ट्रैप का जाल फैलाकर करोड़ों वसूलने के आरोप में पकड़ा गया वे लम्बे समय से अपना कारोबार फैलाये हुईं थीं। बीच-बीच में कुछ सीडी भी प्रकाश में आईं लेकिन तत्कालीन सरकार ने उसकी तरफ  ध्यान क्यों नहीं दिया ये बड़ा सवाल है। शायद मौजूदा सरकार भी हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती यदि सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुँच रखने वाले कतिपय वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की इज्जत तार-तार होने की नौबत नहीं आती। संचार क्रांति के इस दौर में इस तरह की बातों को प्रसारित करना बेहद आसान हो गया है। यू ट्यूब पर इस काण्ड के सम्बन्ध में जो सामग्री उपलब्ध है उसका प्रमाणीकरण भले न हो पाया हो लेकिन उसे हांडी का एक चावल मानकर कुछ निष्कर्ष तो निकाले ही जा सकते हैं। यूँ भी राजनेताओं और उच्च पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है। सता प्रतिष्ठान में शराब और शबाब के चलन की परम्परा तो अनादिकाल से चली आ रही है परन्तु इस तरह का नंगा नाच नहीं होता था। इस सम्बन्ध में सबसे चिंताजनक और शर्मनाक बात ये है कि अब समाचार माध्यमों से जुड़े लोग भी इस तरह के धंधों में शरीक पाए जाने लगे हैं। पत्रकारिता के नाम पर राजधानियों में होने वाली दलाली भी नई बात नहीं रही। टेलीकॉम घोटाले में जिस तरह से देश के नामचीन पत्रकारों की असलियत सामने आई वह देखकर पूरे देश को आश्चर्य हुआ। भले ही वे जिस संस्थान में कार्यरत थे वहां से बाहर कर दिए गए हों लेकिन उनकी करतूतों ने पूरे पत्रकार जगत को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया। मप्र के हनी ट्रैप काण्ड में भी पत्रकारों की संलिप्तता ने समूची पत्रकार बिरादरी के समक्ष शोचनीय हालत उत्पन्न कर दिए हैं। भले ही चंद स्तरहीन लोगों के कारण पूरी पत्रकार बिरादरी को लांछित नहीं किया जा सकता लेकिन दूसरों की टोपी उछालकर खुद को परम पवित्र समझने वालों को भी ये सोचना और समझना चाहिए कि वे अपने ही बीच बैठे उन लोगों का पर्दाफाश करें जो इस पवित्र पेशे को कलंकित कर रहे हैं। खोजी पत्रकारिता की आड़ में चल रहे गोरखधंधे भी चिंता का विषय हैं। ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि कुछ लोगों के लिए पत्रकारिता भी राजनीति की तरह अपने स्वार्थ सिद्ध करने का जरिया बन गई है। कुछ अखबार और टीवी चैनलों के मालिक इस माध्यम का किस हद तक दुरूपयोग करते हैं ये किसी से छिपा नहीं है। हनी ट्रैप काण्ड में नेताओं और अधिकारियों के साथ ही पत्रकारों के नाम आने से निश्चित रूप से उन लोगों का चिंतित होना लाजमी है जो व्यवसायिकता के इस दौर में भी स्वस्थ ही नहीं अपितु स्वच्छ पत्रकारिता के प्रति संकल्पित हैं। बेहतर हो खोजी पत्रकारिता में महारत रखने वाले रोमांच प्रेमी पत्रकार अपनी बिरादरी में घुसे और छिपे उन चेहरों से नकाब उतारने का भी दुस्साहस करें जो इस पवित्र पेशे के साथ व्यभिचार करने पर आमादा हैं। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए आये दिन शासन से गुहार लगाने के साथ ही पत्रकारिता की सुरक्षा की चिंता समय की मांग है। राजनीति और प्रशासन में बैठे लोगों ने तो मान-मर्यादा को कब की तिलांजलि दे दी। लेकिन पत्रकारिता से जुड़े लोगों को अपने पेशे की प्रतिष्ठा बनाये रखने आगे आना चाहिए क्योंकि उनके पास इसके अलावा और कुछ होता भी नहीं है। इसके पहले कि मीडिया माफिया को औपचारिक मान्यता मिल जाए पत्रकार बिरादरी को अपना घर साफ करने की पहल करनी चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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