ऐसा लगता है राहुल गांधी बोलने के पहले सोचते नहीं हैं। या फिर उन्हें आज तक ये समझ नहीं आया कि कब, कहाँ, क्या और कैसे बोलना चाहिए ? बीते सप्ताह दिल्ली में हुई कांग्रेस की रैली में उन्होंने बड़ी ही तेज आवाज में कहा कि उनका नाम राहुल सावरकर नहीं बल्कि राहुल गांधी है और वे सच्चाई की लिए मर जायंगे लेकिन माफी नहीं मांगेंगे। इसके पीछे उनके उस बयान पर माफी मांगने सम्बन्धी मांग थी जिसमें उन्होंने प्रधानमन्त्री के मेक इन इण्डिया नारे का रेप इन इण्डिया कहकर मजाक उड़ाया था। संसद और बाहर उसे लेकर काफी बवाल मचा था। दिल्ली की रैली में वे मोदी सरकार पर नीतिगत हमले करते तो किसी को ऐतराज नहीं होता किन्तु उन्होंने बेवजह खुद के सावरकर नहीं होने की बात कह डाली जो न सिर्फ अप्रासंगिक अपितु अनावश्यक भी थी। जब से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने स्वातंत्र्य वीर सावरकर को भारत रत्न देने की बात अपने घोषणापत्र में शामिल की तभी से कांग्रेस और वामपंथी लॉबी सावरकर जी को लेकर आलोचनात्मक टिप्पणियाँ करने में जुटी हुई है। ये सही है कि उन पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगा था किन्तु वे अदालत से बरी हो गये। बावजूद इसके ये कहा जाता रहा कि सावरकर जी की विचारधारा ने ही नाथूराम गोडसे को गांधी जी की हत्या के लिए उकसाया। और द्विराष्ट्र का सिद्धांत भी उन्हीं का दिया हुआ था। जेल से बाहर आने के लिए अंग्रेजों से लिखित माफी मांगने का आरोप भी उन पर लगाया गया। लेकिन सावरकर जी के प्रति कांग्रेस की नाराजगी के बावजूद स्व. इंदिरा गांधी के प्रधानमन्त्री कार्यकाल में ही उन पर डाक टिकिट जारी किया गया था। यही नहीं इंदिरा जी ने लिखित रूप में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सावरकर जी के संघर्ष की प्रशंसा भी की थी। दरअसल जब से देश के विभाजन के लिए भाजपा ने पंडित नेहरू को जिम्मेदार ठहराने का अभियान छेड़ा है तभी से कांग्रेस कभी सावरकर जी और कभी जनसंघ के संस्थापक स्व. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को विभाजन के लिए कसूरवार ठहराने की रणनीति पर चल पड़ी है। इतिहास को लेकर विभिन्न अवधारणाएं होना गलत नहीं हैं। उसकी प्रामाणिकता पर भी विवाद हो सकते हैं लेकिन सावरकर जी का इतिहास इतना पुराना भी नहीं है कि उसे लेकर अनभिज्ञता रहे। ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध उनका संघर्ष किसी प्रमाणपत्र का मोहताज नहीं है। उन्हें काले पानी की सजा के दौरान अंडमान की सेलुलर जेल में 10 वर्षों तक कठोर यातनाएं सहनी पड़ीं। उनके पूरे परिवार को प्रताडि़त किया गया। कट्टर हिंदूवादी होने के बावजूद सावरकर जी ने समाज सुधार विशेष तौर पर जातिवाद के विरुद्ध काफी जनजागरण किया। वे उच्च कोटि के लेखक थे। ऐसे व्यक्ति से वैचारिक मतभेद रखना तो सामान्य बात है लेकिन उसका अपमान करने की कोशिश किसी भी दृष्टि से शोभनीय नहीं कही जा सकती। महाराष्ट्र में जिस शिवसेना के साथ कांग्रेस ने हाल ही में मिलकर सरकार बनाई है वह सावरकर जी को अपना आदर्श और प्रेरणास्रोत मानती है। उन्हें भारत रत्न दिए जाने की भी वह पक्षधर है। राहुल के बयान पर उसने भी नाराजगी जताई है। यद्यपि संजय राउत जैसे बड़बोले प्रवक्ता ने बजाय आग उगलने के ये कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि कांग्रेस के उच्च नेताओं से बात की जायेगी। उन्होंने श्री गांधी को सावरकर जी द्वारा रचित साहित्य पढऩे के लिए दिए जाने की बात भी कही। राज्य के गृहमंत्री ने भी राहुल की बात पर ऐतराज किया है। हालांकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की खामोशी चौंकाने वाली है। बहरहाल श्री गांधी द्वारा खुद के सावरकर नहीं होने की बात से कांग्रेस को एक बार फिर जबर्दस्त नुकसान हो गया। स्वातंत्र्य वीर के तौर पर प्रसिद्ध सावरकर जी की स्वाधीनता संग्राम में जो भूमिका है उसके कारण शिवसेना और भाजपा के अलावा भी देश का एक बड़ा वर्ग उनके प्रति सम्मान का भाव रखता है। युवा पीढ़ी में भले ही उस महान नेता के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हो लेकिन श्री गांधी द्वारा की गयी टिप्पणी के बाद से सावरकर जी को पढऩे और समझने के प्रति असंख्य लोगों की रूचि जागृत हो गई है। सोशल मीडिया पर जो कुछ भी चल रहा है उससे ये स्पष्ट हो जाता है कि सावरकर जी अचानक राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बन गए। इस मुद्दे पर राजनीतिक दृष्टिकोण से भी सोचें तो राहुल ने एक बार फिर बचकानापन दिखाते हुए कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर दी है। उनकी दादी ने जिस व्यक्ति के सम्मान में डाक टिकिट जारी करवाया और स्वाधीनता संग्राम में उनकी संघर्षशीलता के प्रति आदरभाव व्यक्त किया हो उसके प्रति हल्कापन दिखाना किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं है। बसपा नेत्री मायावती ने श्री गांधी द्वारा सावरकर जी के प्रति व्यक्त किये गये उद्गार के बाद कांग्रेस पर दोहरा चरित्र रखने का आरोप लगाते हुए सवाल किया कि शिवसेना अपने एजेंडे पर कायम है। जिसके तहत उसने नागरिकता संशोधन विधेयक पर मोदी सरकार का साथ दिया और वह सावरकर जी की अनन्य भक्त भी है। फिर भी कांग्रेस उसके साथ महाराष्ट्र सरकार में क्यों बनी हुई है? महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं के साथ ही शरद पवार की एनसीपी भी श्री गांधी द्वारा सावरकर जी के बारे में जिस तरह की बातें की गईं उनसे सनाके में है। दरअसल कांग्रेस की दिक्कत ये है कि वह महात्मा गांधी से ज्यादा आज के गांधी परिवार की भक्त हो गयी जिस वजह से उसके किसी सदस्य द्वारा की गई गलतियों पर टोकने वाला कोई नहीं है।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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