Thursday 19 December 2019

कुछ लोग हैं जो कुछ समझना ही नहीं चाहते



सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने की मांग नामंजूर करते हुए केंद्र सरकार को जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक जवाब देने के निर्देश के साथ ये भी कहा कि वह इस कानून का समुचित प्रचार करे जिससे आम जनता के मन में व्याप्त भ्रम दूर हो सके। अदालत 22 जनवरी को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। तुरंत रोक नहीं लगाये जाने से याचिका से फौरन होने वाले लाभ की उम्मीद धूमिल पड़ गई। अनुभव बताते हैं कि जिस याचिका पर शुरू में ही स्थगन नहीं मिलता वह लम्बी खिंचती है और निर्णय आने तक बहुत कुछ ऐसा हो जाता है जिसके कारण मूल मुद्दा पृष्ठभूमि में चला जाता है। यदि सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाओं पर स्थगन आदेश दे दिया होता तब शायद आज देश का माहौल कुछ और होता। जवाब पेश करने हेतु समय मिल जाने से केंद्र सरकार को तो राहत मिली ही साथ में भाजपा की तेज चलती सांसें भी सामान्य हो गईं होंगी। दरअसल इस मुद्दे को ऊपरी तौर पर तो संविधान विरोधी बताकर केंद्र सरकार की घेराबंदी की जा रही है लेकिन असली बात ये है कि राजनीतिक खींचातानी में ये ले-देकर फिर वही हिन्दू और मुस्लिम वोट बैंक पर आकर केन्द्रित हो गया है। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विवि में हुए उपद्रव और पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई को लेकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति के पास जा पहुंचा। ऐसा माहौल बना दिया गया मानो उक्त विवि के छात्र पूरी तरह दूध के धुले हों। पुलिस पर हुए हमलों को नजरंदाज करते हुए केवल छात्रों की पिटाई का अतिरंजित प्रचार करते हुए पूरे देश में आन्दोलन फैलाने का सुनियोजित प्रयास जिस तरह से हुआ वह ये दर्शाता है कि विपक्ष ने नए कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी चाल को फिलहाल तो बेअसर कर दिया। सरकार को सम्बंधित कानून का समुचित प्रचार करने का निर्देश देकर न्यायपालिका ने बहुत ही सही कदम उठाया जो वाकई जरूरी था। इस कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके आधार पर देश में रह रहे मुसलमानों को इस बात के लिए डराया जा रहा है कि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए समुचित सबूत देने होंगे। अनेक पढ़े-लिखे मुस्लिम भी सोशल मीडिया पर ये लिख रहे हैं कि वे अपनी नागरिकता का प्रमाण नहीं देंगे। लेकिन जब कोई उनसे पूछता है कि उनसे प्रमाण कौन माँग रहा है तो वे निरुत्तर हो जाते हैं। केवल मुस्लिम ही क्यों अन्य समुदायों में भी इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति है कि केंद्र सरकार ने मुसलमानों को भयभीत करने के लिए ये कानून बनाया है। चूंकि बीते कुछ महीनों में हुए कुछ बड़े फैसलों को मुस्लिम हितों के विरूद्ध मान गया इसलिए उनमें ये बात तेजी से फैलाई जा रही है कि ये कानून उन्हें देश से बेदखल करने के उद्देश्य से लाया गया है। प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री लगातार कह रहे हैं कि उन मुसलमानों को डरने की कोई जरूरत नहीं जो पहले से ही विधिवत भारत के नागरिक हैं। गृहमंत्री ने तो संसद में हुई बहस के दौरान ही ये साफ कर दिया था कि ये कानून किसी की नागरिकता छीनने नहीं अपितु देने के लिए लाया गया है। सही बात तो ये है कि इस कानून में निहित देश के दूरगामी हितों को उपेक्षित करते हुए एक वर्ग विशेष ने ठीक वैसा ही रवैया अख्तियार कर लिया है जैसा कभी असहिष्णुता तो कभी अन्य किसी वजह से देखने आया है। पूर्वोत्तर के राज्यों की चिंता तो एक बार समझ में आती है क्योंकि मौजूदा कानून का सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर होगा। असम, त्रिपुरा, मणिपुर सभी इस बात को लेकर भयभीत हैं कि अब तक शरणार्थी माने जा रहे बांग्लादेशियों को नागरिकता मिल जाने से उनके राज्य की सांस्कृतिक और भाषायी पहिचान खतरे में पडऩे के साथ ही जमीन की कमी भी होगी। लेकिन देश के बाकी हिस्सों में विरोध किस आधार पर किया जा रहा है ये साफ तौर पर कोई भी बताने की स्थिति में सक्षम नहीं है। जहां तक बात संविधान की मूल भावना और धर्मनिरपेक्षता की है तो नागरिकता के मापदंड तय करने में देशहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। केंद्र द्वारा बनाया कानून एक दिन में तैयार नहीं हो गया। 1971 के बाद से ही ऐसे किसी कानून की जरूरत अनुभव की जा रही थी जो भारत को धर्मशाला बनने से रोके। आतंकवाद के मद्देनजर भी तमाम सावधानियों की आवश्यकता थी, जो शरणार्थियों की शक्ल में आतंकवादियों के आयात को रोक सके। राजनीतिक तौर पर जनता द्वारा ठुकराई गई राजनीतिक ताकतों के मन में इस बात का भय बैठ गया है कि इस तरह के फैसले लागू करते हुए मोदी सरकार देश का हिन्दुकरण कर रही है। हिन्दू राष्ट्र बनाने जैसी बातें भी उछाली जा रही हैं। लेकिन मुस्लिम समुदाय के बीच भी एक वर्ग ऐसा है जो राजनीतिक प्रपंच से परे हटकर निजी हितों के साथ ही देश के दूरगामी भविष्य की भी चिंता करता है। राम जन्मभूमि विवाद पर मुस्लिम समुदाय की जो आम प्रतिक्रिया आई उससे कट्टरवादी बेहद निराश हो उठे थे। मुस्लिमों को भाजपा का डर दिखाकर उनका भयादोहन करने वाली पार्टियों को भी अपना वोट बैंक हाथ से खिसकता दिखने लगा। यही वजह है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए तुष्टीकरण लॉबी अपनी आखिरी कोशिश में जुटी है। जामिया मिलिया में पुलिस की कार्रवाई की तुलना जलियांवाला बाग कांड से किया जाना ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि विरोध करने वालों के पास तर्क और तथ्य दोनों का पूरी तरह अभाव हो चला है। सर्वोच्च न्यायालय के कहे अनुसार केंद्र सरकार संदर्भित कानून का प्रचार करते हुए आम जनता को उसकी विस्तृत जानकारी दे तो उसमें गलत कुछ भी नहीं है किन्तु ध्यान देने योग्य बात तो ये है कि जो नासमझ हैं उन्हें तो समझाया जा सकता है लेकिन जो कुछ समझना ही नहीं चाहते उनका कुछ नहीं किया जा सकता।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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