Saturday 21 December 2019

एक जैसे उपद्रव : किसी बड़े षडय़ंत्र का हिस्सा



नागरिकता संबंधी नए कानून और भविष्य में बनाये जाने वाले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर देश भर में होने वाला विरोध धीरे-धीरे हिंसक उपद्रव में तब्दील हो गया है। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विवि परिसर में पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई के बाद देश भर में ऐसा माहौल बनाया गया मानो लोकतंत्र खत्म हो गया हो। शुरुवात में तो उस घटना के विरोध में अनेक विश्वविद्यालयों में छात्रों ने अपना गुस्सा व्यक्त किया। लेकिन धीरे - धीरे ये साफ होता गया कि छात्रों को आगे कर देश विरोधी तत्वों ने अपना खेल शुरू कर दिया। दो दिन पहले लखनऊ और उसके बाद गत दिवस देश के अनेक राज्यों में जुमे की नमाज के बाद धारा 144 का उल्लंघन करते हुए जुलुस निकालने से रोके जाने पर पुलिस पर पथराव हुआ और वाहनों में तोडफ़ोड़ तथा आगजनी की गई। टीवी चैनलों पर नकाबपोश लोगों द्वारा जिस तरह पुलिस पर हमले किये जाने के दृश्य दिखाए गये वे इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं कि ये उपद्रव पूर्व नियोजित थे और इनके पीछे किसी संगठित गिरोह का हाथ है। कल दिल्ली में दोपहर बाद जुमे की नमाज तक हालात नियंत्रण में थे लेकिन अचानक भीड़ जमा हुई और पथराव तथा आगजनी शुरू कर दी गयी। पूरे देश से जो समाचार मिल रहे हैं उनके अनुसार मुख्य रूप से पुलिस थानों और वाहनों को निशाना बनाया जा रहा है। विपक्षी नेता और मुस्लिम धर्मगुरू हालाँकि हिंसा की निंदा कर रहे हैं लेकिन उन्हें रोकने के लिये उनकी तरफ  से कोई सार्थक प्रयास होता नहीं दिख रहा। गत दिवस जबलपुर के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी जो उपद्रव हुआ उसमें कम उम्र के बच्चों को चेहरे पर रुमाल बांधकर पुलिस पर पथराव करने के लिए भीड़ में आगे रखा जाना ये साबित करता है कि बलवा किये जाने की पूरी तैयारी की गयी थी। बताया जाता है कि पुलिस और प्रशासन ने मुस्लिम धर्मगुरु से मिलकर स्थिति शांतिपूर्ण बनाये रखने हेतु सहयोग भी मांगा था। खुफिया रिपोर्ट भी किसी अनिष्ट की आशंका बता चुकी थी। धारा 144 लागू होने से जुलूस पर रोक लगी हुई थी किन्तु उसके बाद भी भीड़ एकत्र हुई और पुलिस द्वारा रोके जाने पर पथराव और तोडफ़ोड़ की गई। पूरे देश विशेष रूप से उत्तर भारत में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे उपद्रव का स्वरूप और तरीका एक जैसा होने से ये संदेह मजबूत हो रहा है कि विरोध करने वालों को मानों इसका विधिवत प्रशिक्षण दिया गया हो। ये देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि कश्मीर घाटी में अलगाववादी संगठनों द्वारा युवाओं को सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने के लिए जिस प्रकार से तैयार किया गया था वैसा ही कुछ मौजूदा घटनाक्रम में भी दिखाई दे रहा है। जामिया मिलिया परिसर रहा हो या दिल्ली, लखनऊ अथवा अन्य कोई शहर, अचानक इतने पत्थर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने आये लोगों के हाथ में कहाँ से आ गए, ये यक्ष प्रश्न है। सोनिया गांधी और प्रियंका से लेकर बाकी विपक्षी नेता विरोध के अधिकार की वकालत तो कर रहे हैं किन्तु जिस तरह की पत्थरबाजी और आगजनी की जा रही है उसकी निंदा करने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही। इस पूरे खेल में जेएनयू मार्का संगठन जिस तरह सक्रिय हुए उससे भी किसी सुनियोजित षडय़ंत्र की बात को बल मिलता है। मुसलमानों द्वारा तीन तलाक और राम मन्दिर फैसले का जिस तरह शांति के साथ विरोध हुआ उससे उन लोगों की आशाओं पर पानी फिर गया जो देश को भीतर से कमजोर करने में लगे रहते हैं। दिल्ली में परसों हुए विरोध में जेएनयू का वह छात्र नेता भी शरीक था जिसे भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वालों का सरगना कहा जाता है। जंतर मंतर पर भी कुछ ऐसे चेहरे नजर आये जो टुकड़े-टुकड़े गैंग के हिस्से हैं। कुल मिलाकर ये कहना सही है कि नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर पूरे देश में पूर्व तैयारी से उपद्रव करने का तानाबाना बुना गया है। लोकसभा चुनाव में मिली जबरदस्त पराजय के बाद जब तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और फिर अयोध्या विवाद जैसे मसले आसानी से हल हो गए तब विपक्ष के एक तबके और विशेष रूप से वामपंथी समुदाय के पेट में जबर्दस्त दर्द होने लगा। वे किसी अवसर की ताक में थे ही। अब तक जो मुसलमान शांति के साथ अपने काम धंधे में लगा हुआ था उसे देश से निकाले जाने के नाम पर भयभीत करते हुए उपद्रव के लिए उकसा दिया गया। अचानक बदले इन हालातों ने मुस्लिम समुदाय को एक बार फिर मुख्यधारा से दूर कर दिया। सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि जो भी उपद्रव हुए उन्होंने मुस्लिम समाज और पुलिस के बीच संघर्ष का स्वरूप ले लिया। सरकार के किसी फैसले का विरोध तो लोकशाही का हिस्सा है किन्तु हिंसा का सहारा लिए जाने से मुस्लिम समुदाय के प्रति रही-सही सहानुभूति भी लुप्त होने लगी है। मुस्लिम समाज के अनेक धर्मगुरु भी अचानक हुए उपद्रवों से भौचक हैं। असदुद्द्दीन ओवैसी जैसे नेता को भी भाव नहीं मिल रहा। इससे ये आशंका और भी प्रबल होती है कि देशव्यापी उपद्रव किसी बड़े षडय़ंत्र का हिस्सा हैं। कश्मीर में अलगाववाद पर ऐतिहासिक प्रहार के बाद देश विरोधी ताकतों ने नए सिरे से देश को अस्थिर करने का कुचक्र रचा है और मुसलमानों को ही एक बार फिर बतौर औजार इस्तेमाल किया जा रहा है। बेहतर हो ऐसे लोगों से बचते हुए मुस्लिम समाज के समझदार लोग सक्रिय हों। वोट बैंक के शिकंजे से आजाद होते मुसलमानों को एक बार फिर अपने शिकंजे में कसने की कोशिश चल पड़ी है। यदि वे अभी भी नहीं चेते तो फिर उनके बीच व्याप्त अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी कभी दूर नहीं होगी। कुछ शरारती लोग ये प्रचारित करने में जुटे हुए हैं कि पूरा देश नए कानून के विरुद्ध सड़कों पर है। मुसलमानों को इस गलतफहमी से बचना चाहिए वरना वे अलग थलग पड़े रहेंगे। दूध में शक्कर की तरह मिलकर उसकी मिठास बढ़ाना ही सही तरीका होता है, बजाय उसमें नींबू की बूँद बनकर मिलने के, जो उसे फाड़ देती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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