Monday 9 December 2019

मुआवजा: जिम्मेदारी से बचने का आसान तरीका



केंद्र के साथ ही दिल्ली और बिहार सरकार ने मरने वालों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा कर दी। दिल्ली भाजपा संगठन ने भी आर्थिक सहायता देने की दरियादिली दिखाई है। बीते रविवार की सुबह देश की राजधानी की  अनाज मंडी नामक घनी बस्ती की एक गली में स्थित बैग बनाने वाली फैक्ट्री में आग लग गयी जिसकी वजह से वहां सो रहे 5 मजदूर तो जलकर मर गए और 38 धुंए की वजह से दम घुटने के कारण जान गँवा बैठे। गली इतनी संकरी थी कि फायर ब्रिगेड  को 400 मीटर दूर से पाइप लगाकर आग बुझानी पड़ी। जो चित्र आये हैं उनसे स्पष्ट है कि बिजली के खम्बों पर जिस तरह तारों के गुच्छे झूल रहे हैं उनकी वजह से कभी भी कुछ भी अनहोनी घट सकती है। आग कैसे लगी ये तो जाँच से पता चलेगा लेकिन जो स्थितियां घटनास्थल की बताई जा रही हैं उनके अनुसार फैक्ट्री पूरी तरह से अवैध थी। उसका पंजीयन और प्रदूषण नियंत्रण विभाग से अनापत्ति जैसी जरूरी  औपचारिकताएँ पूरी नहीं थी। इसका कारण ये था कि उस स्थान पर इस तरह के कार्य की अनुमति ही सम्भव नहीं थी। फैक्ट्री में कार्यरत अधिकतर मजदूर बिहार के बताये जाते हैं। कम मजदूरी की वजह से वे सभी उसी परिसर में रहते और सोते थे। दिल्ली के अनेक इलाके इतने घने बसे हैं कि वहां किसी तरह का विकास संभव ही नहीं है। एक तरफ तो राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण एक हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक विकसित  करने की मुहिम चला करती है वहीं बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो बदहाली का जीता जागता प्रमाण है। और वहां रह रहे लोग नारकीय हालातों में जिन्दगी गुजारने मजबूर हैं। इन इलाकों में हजारों इस तरह के कारोबार चलते हैं जिनकी कोई अनुमति नहीं ली गयी। संकरी गलियों के कारण वहां अग्नि शमन वाहनों का पहुंचना संभव नहीं है। बिजली के तार भी खतरनाक तरीके से झूलते देखे जा सकते हैं। संक्षेप में कहें तो ये इलाके अव्यवस्था के  समानार्थी हैं। चूंकि दिल्ली में विधानसभा चुनाव नजदीक है इसलिए सरकारों के अलावा दिल्ली भाजपा ने भी मरने वालों को पांच लाख देने की मेहरबानी की। दिल्ली में बिहारी मतदाता बहुत बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। इसीलिये पार्टी ने भोजपुरी गायक मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। दिल्ली में राज्य सरकार आम आदमी पार्टी की है तो नगर निगम भाजपा के कब्जे में। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी चल पड़ा है। सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों पर दु:ख व्यक्त किये जाने की औपचारिकता भी निभाई जा रही है। फैक्ट्री मालिक को गैर इरादतन हत्याओं के आरोप में गिरफ्तार भी किया जा चुका है। 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा में हुए अग्निकांड के बाद भी काफी हल्ला मचा था। लेकिन दो दशक से ज्यादा बीत जाने पर भी राष्ट्रीय राजधानी की दुर्दशा दूर नहीं हुई। बल्कि ये कहना भी गलत नहीं होगा कि हालात और बदतर हो गए हैं। जिस महानगर में केंद्र , राज्य और स्थानीय तीनों शासन एक साथ मौजूद हों वहां इंसानी जिंदगियां इस तरह सस्ते में जलने और घुटने से खत्म हो जाएँ तो डूब मरने की बात है। केवल मुआवजा  बाँट देने और फैक्ट्री मालिक को गिरफ्तार कर दण्डित कर देना ही समस्या का हल नहीं है। नगर निगम के अमले के अलावा उस क्षेत्र के पार्षद की भी ये जिम्मेदारी थी कि वह इस तरह के अवैध कारोबारों पर रोक लगवाता। लेकिन उसको तो केवल वोट बटोरने से मतलब रहता है। प्रश्न ये है कि बीते सात दशक की आजादी के बाद भी यदि देश की राजधानी के भीतर लाखों लोग कीड़े-मकोड़े की तरह बसर करने बाध्य हों तब शहरी विकास पर लुटाये जाने वाले करोड़ों-अरबों रूपये का औचित्य क्या है ? मोदी सरकार ने देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाने की जो योजना शुरू की वह कितनी सफल है उसके लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत ही क्या है जब केंद्र सरकार की नाक के नीचे आधा सैकड़ा के लगभग लोग दर्दनाक हालातों में मारे जाएँ। हमारे देश में हर समस्या का हल मुआवजा मान लिया गया है। बलात्कार और दुर्घटना के शिकार लोगों को मुआवजा, घायलों को इलाज और ज्यादा हुआ तो प्रभावित परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी जैसे तरीके अपनाकर जनाक्रोश शांत करने का प्रयास किया  जाता है। लेकिन स्थायी हल की तरफ ध्यान नहीं दिए जाने से बीमारी यथावत बनी रहती है। संदर्भित  दुर्घटना चूँकि दिल्ली में घटित हुई इसलिए वह राष्ट्रीय स्तर का समाचार बन गई किन्तु ईमानदारी से सर्वेक्षण करें तो देश के सभी हिस्सों में हादसों के ऐसे ही अड्डे मौजूद हैं जिनकी अनदेखी के पीछे लापरवाही भी है और सरकारी विभागों का भ्रष्टाचार भी। आम जनता और जनप्रतिनिधि भी उदासीन रहते है। शहरों में बढ़ती आबादी के कारण पुरानी बसाहट वाले इलाकों में सर्वत्र अव्यवस्था का बोलबाला नजर आता है। विकास के नाम पर बेतहाशा धन खर्च होने के बाद भी करोड़ों लोग बदहाली में जीने मजबूर हैं। कुछ दिन हल्ला मचेगा और सरकारी विभाग भी मुस्तैदी दिखायेंगे लेकिन इसी बीच कहीं दूसरी घटना हो जायेगी जिसके बाद पूरा ध्यान उस पर केन्द्रित हो जायेगा। गलतियों से नहीं सीखना हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन गया है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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